विश्व के इकलौते सिद्ध पीठ आमी मे माॅ अम्बिका के उपासना से मिलती है सिद्धि
माँ अम्बिका भवानी पर विशेष
श्रीनारद मीडिया‚ मनोज तिवारी‚ छपरा (बिहार)
बिहार राज्य के सारण जिले के आमी मे राजा सूरथ और वैश्य के कठोर साधना से प्रसन्न होकर माॅ अम्बिका प्रकट होकर वर प्रदान की। राजा सूरथ को वरदान मे खोया हुआ राज्य प्राप्त हुआ और वैरागी वैश्य को दुर्लभ ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति हुई।तभी से आमी सिद्ध पीठ के रूप मे विख्यात हुआ।यह संसार का इकलौता सिद्ध पीठ है।यहा भारत के कोने-कोने से भक्त अपने मनोरथ को पूर्ण करने हेतु मन्नत लेकर आते है और मनोकामना पूर्ण होने पर यहाॅ नवरात्रि व्रत व पाठ करते है तथा माॅ को सोने चाॅदी के छत्र,आभूषण वस्त्र और श्रृंगार अर्पित करते है।कुछ लोग चंद्घंटा को प्रसन्न करने के लिए घंटा दान भी करते है।
राजा सूरथ से महर्षि मेधाने कहा था कि “तामुपैहि महाराज शरणं परमेश्वरीम्।आराधिता सैव नृणां भोगस्वर्गापवर्गदा ।।”अर्थात मेधा मुनि ने कहा कि महाराज! आप उन्हीं भगवती परमेश्वरीकी शरण ग्रहण कीजिये।वे आराधना से प्रसन्न होकर मनुष्यों को भोग,स्वर्ग और अपुनरावर्ती मोक्ष प्रदान करती है।उपरोक्त श्लोक दुर्गा शप्तशति के तेरहवे अध्या के श्लोक संख्या 4 व 5 मे अंकित है।महर्षि मेधा ऋषि के दिशा निर्देश मे राजा सूरथ और वैश्य ने आमी गंगा तट पर एक ऊॅचे टीले पर माॅ अम्बिका के मिट्टी की पिण्डी बनाकर कठोर साधना की और माॅ को प्रसन्न किया।उन दो के तपश्या से प्रसन्न होकर माॅ ने स्वयं आमी मे प्रकट होकर दोनो को मनोवांछित वर प्रदान किया अम्बिका देबी ने कहा कि “यत्प्रार्थ्यते त्वया भूप त्वया च कुलनन्दन।मत्तस्तत्प्राप्यतां सर्वं परितुष्टा ददामि तत्।।
“राजन !तथा अपने कुल को आनंदित करनेवाले वैश्य!तुमलोग जिस वस्तुकी अभिलाषा रखते हो,वह मुझसे माॅगो।मैं संतुष्ट हूॅ,अतः तुम्हे वह सब दूॅगी।उपरोक्त श्लोग तेरहवे अध्याय के श्लोक संख्या 15 मे रचित है।दोनो के तष्या से इतनी शक्ति आ गई थी की वो माॅ के दिव्य तेज को देखने मे सफल रहे और मनोवांछित वर माॅग कर अपनी अभिलाषा पूर्ण की।उसी समय से अम्बिका स्थान ब्रम्ह भाव को प्राप्त हुआ और आमी से अम्बिका स्थल के रूप मे सुविख्यात हुआ।और वही मिट्टी की पिण्डी जिसमे माॅ प्रकट हुई वह अमर पिण्डी बनी युगो से उसी पिण्डी की पुजा आज तक होती आ रही है।
आमी मन्दिर के पूजारी सेवा निवृत प्रधान शिक्षक शिवकुमार तिवारी उर्फ भोला बाबा ने बताया कि जो भी भक्त अपने कष्टो से उब कर माॅ अम्बिका के शरण मे आते है उनके मनोकामना को मैया जरूर पूर्ण करती है बसर्ते उनकी ध्यान और उपासना पूरी निष्ठा और पवित्र भाव से होना चाहिए।जो जिस भाव से माॅ को पूजता है उसे उसी के अनुरूप मैया वरदान देती है।राजा सूरथ भौतिक सुख व राज्य की कामना से तपश्या किया तो उसे राज्य की प्राप्ति हुई।वही वैश्य मायावी संसार से खिन्न और विरक्त होकर अहंता रूप और आशक्ति का नाश करने वाला वर माॅगा तो उसे उसी के अनुरूप वरदान मिला।
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