भारत की जनता सबसे ज्यादा प्रसन्न रहने वाले लोगों में से एक है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एक ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट आई थी, जिसमें भारत को 122 देशों में 107वें क्रम पर रखा गया था। हंगर इंडेक्स में भारत को उत्तर कोरिया, इथियोपिया, सूडान, रवांडा, नाइजीरिया और कॉन्गो से भी पीछे पाया गया था! तब भी मेरे मन में सवाल उठा था कि हम इस तरह की त्रुटिपूर्ण रिपोर्टों को इतनी गम्भीरता से क्यों लेते हैं और दुनिया में उन्हें इतना कवरेज क्यों मिलता है?

अब वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट में आंकड़ों की मशक्कत से बेतुके नतीजे निकाले गए हैं। रिपोर्ट में भारत को 136 देशों में से 126वें क्रम पर पाया गया है। यानी भारत दुनिया के सबसे नाखुश देशों में से एक है! रिपोर्ट के मुताबिक युद्धों या अंदरूनी टकरावों की मार झेल रहे या लगभग दिवालिया हो चुके यूक्रेन, इराक, बुर्कीना फासो, फलस्तीन, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देश भारत से अधिक प्रसन्न हैं। चलो, कम से कम हमारे पड़ोसी तो खुश हैं!

वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र द्वारा समर्थित एक एनजीओ ने जारी किया है, जिसका नाम है सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशंस नेटवर्क। कितना भला नाम है, नहीं? यह एक छोटी-सी संस्था है, जिसका सालाना राजस्व 11 मिलियन डॉलर का है। इसमें भी अधिकतर हिस्सा अनुदानों से प्राप्त होता है। उसके द्वारा जारी रिपोर्ट एक पीडीएफ डॉक्यूमेंट है, जिसमें तीन ऐसी चीजें हैं, जो इस तरह की रिपोर्ट्स के लिए जरूरी मानी जाती हैं।

पहली, यह रंग-बिरंगी है और इसका आकल्पन बहुत सुंदरता से किया गया है, दूसरी, इसमें बहुत सारे आंकड़े और तालिकाएं हैं और इसमें ‘रिग्रेशन को-इफिशिएंट’ जैसे शब्दों का उपयोग किया गया है, जिन्हें सुनकर हमें लगे कि हम कोई बहुत एकेडमिक चीज पढ़ रहे हैं, तीसरी, इसमें विभिन्न नस्ली समुदायों के लोगों की बहुत सारी तस्वीरें हैं।

इस तरह की रिपोर्टों में प्रस्तुत की जाने वाली तस्वीरों के लिए भी इस तरह की गाइडलाइंस होती हैं

एक, वे किसी परिवार की तस्वीरें होनी चाहिए या उनमें किसी महिला को बच्चों के साथ दिखाया जाना चाहिए, दो, चित्रों में दिखाई देने वाले लोग गरीब होने चाहिए, इसके बावजूद उनके चेहरों पर मुस्कराहटें होनी चाहिए, तीन, चित्रों में किसी विकासशील देश के लोग गांव में खड़े दिखाए जाने चाहिए, जिनके पास उनकी फसलें या मवेशी हों और चार, तस्वीरों के साथ एक वर्चु-सिगनलिंग वाला उद्धरण होना चाहिए, जिसमें एक बेहतर दुनिया के निर्माण की कामना की गई हो।

वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में यह सब है। यह हर देश में प्रसन्नता के स्तरों को मापने और उसे रैंकिंग देने का दावा भी करती है। प्रसन्नता- यह शब्द कितना बड़ा और भावपूर्ण है, भूख की तरह। लेकिन आप प्रसन्नता की माप कैसे करेंगे? क्या पूरी दुनिया में घूमकर लोगों से पूछा जाएगा कि क्या आप खुश हैं? यकीनन नहीं। वह तो बहुत ही आसान हो जाएगा। वैसे भी तीसरी दुनिया के गरीब लोगों को क्या पता कि खुशी किस चिड़िया का नाम है? हम उन्हें बताएंगे कि खुशी क्या होती है और उसके मानदंड भी हम ही तय करेंगे।

तो क्या हैं वे मानदंड? इसके लिए वे गैलप वर्ल्ड पोल पर निर्भर रहते हैं। पोल में लोगों से पूछा जाता है कि वे अपने जीवन में किस मुकाम पर होना चाहते हैं और उसकी तुलना में वर्तमान में वे कहां हैं। इसे 1 से 10 तक के स्केल पर मापा जाता है।

अगर कोई व्यक्ति खुद को कम रैंकिंग देता है तो इसका यह मतलब है कि उसका देश नाखुश है! यानी अगर मुझको लगता है कि मुझे जीवन में किसी मुकाम पर पहुंचना चाहिए, लेकिन मैं अभी उस मुकाम पर नहीं हूं तो इसका यह मतलब है कि मैं अप्रसन्न हूं? सर्वेक्षण में इस तरह के सवाल हर देश के 500 से 2000 लोगों से पूछे जाते हैं। इसका यह मतलब है कि 2000 लोगों के द्वारा कही गई बातों के आधार पर 1 अरब 40 करोड़ लोगों वाले देश के बारे में निर्णय ले लिए जाते हैं!

रिपोर्ट बनाने वाले मेधावियों ने खुशी की माप के लिए कुछ और फैक्टर्स जोड़े हैं, जैसे प्रतिव्यक्ति आय (यानी वो पहले ही इस नतीजे पर पहुंच जाते हैं कि जो अमीर है वह सुखी है), आप कितनी दान-दक्षिणा देते हैं (यह बात भी अमीरों के पक्ष में जाती है), आपके यहां कितना भ्रष्टाचार है, आपको समाज-कल्याण के कितने लाभ मिलते हैं (अमीर देशों के खाते में एक और पॉइंट), आप निर्णय लेने के लिए कितने स्वतंत्र हैं (पश्चिम के व्यक्तिवादी समाज की तुलना में हमारा समूहवादी समाज इस बिंदु पर जाहिर है, अच्छा स्कोर नहीं कर सकेगा) आदि इत्यादि।

इन मानदंडों पर दुनिया का सबसे खुशहाल देश कौन-सा है? फिनलैंड, जो कि लगातार छह सालों से पहले स्थान पर आ रहा है। यह देश उत्तरी ध्रुव के निकट है और इसके कुछ स्थानों पर सर्दियों में तापमान शून्य से 40 डिग्री नीचे चला जाता है। उसके कुछ हिस्सों में तो दो महीने तक सूर्य नहीं निकलता।

वहां के लोग ज्यादा बातें वगैरा नहीं करते। आप इसे दुनिया का सबसे खुश देश कहते हैं? क्या आप कभी हमारा आईपीएल देखने आए हैं, सर? या आपने हमारी शादियों और त्योहारों को देखा है? और क्या इस तरह की रिपोर्ट बनाने वालों ने दुनिया में डिप्रेशन के स्तरों को मापा है?

क्या उन्होंने तलाक की दरें देखी हैं? या इस बात का आकलन किया है कि बूढ़े लोग पश्चिम की तुलना में भारत में अपने बच्चों या नाती-पोतों से कितनी आसानी से मिल पाते हैं? या ईश्वर से अपने सम्बंधों के चलते लोग जीवन में कितनी शांति का अनुभव करते हैं? क्या ये तमाम बातें अप्रासंगिक हैं और केवल पैसों से जुड़े मानदंडों को ही प्रासंगिक माना जाएगा?

चेहरों पर मुस्कान और रिश्तों में प्यार
मैं हैप्पीनेस रिपोर्ट बनाने वालों को सुझाव दूंगा कि वो भारत आएं और यहां लोगों के चेहरों पर मुस्कान और उनके बीच मौजूद प्यार को देखें और सोचें कि क्या उन्हें अपनी रिपोर्ट पर फिर से काम करने की जरूरत नहीं है? मैंने दुनिया देखी है और मैं बिना किसी तालिका और रिपोर्ट की मदद के आपको बता सकता हूं कि भारत के लोग दुनिया के सबसे ज्यादा प्रसन्न रहने वाले लोगों में से एक हैं!

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