सीवान को बनाए एवं बचाए रखने की हठ ने मुरलीधर शुक्ल उर्फ़ आशा शुक्ल को चरितार्थ किया
आपकी संपादित कृति सोनालिका को सीवान सदैव स्मरण में रखेगा
✍️ राजेश पाण्डेय
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
विख्यात विद्वान बेंजामिन फ्रैंकलिन का कहना था कि अगर आप नहीं चाहते की मृत्यु के बाद आपकी स्मृति को भुला दिया जाए तो कुछ ऐसा लिखिए जो पढ़ने लायक हो या कुछ ऐसा कीजिए जो लिखने लायक हो। इन पंक्तियों को याद करते हुए आज हम सभी मुरलीधर शुक्ल उर्फ आशा शुक्ल को उनके श्राद्ध संस्कार दिवस पर संस्मरण कर रहे है।
सीवान को बनाए एवं बचाए रखने की हठ ने मुरलीधर शुक्ल को चरितार्थ किया है। अपने जीवन के 85 बसंत निहार चुके आशा शुक्ल ने सीवान के उस सामाजिक-सांस्कृतिक वैभव को नजदीक से निहारा है, जिसके लिए आज नई पीढ़ी उत्कंठित- उद्धत-उत्सुक रहती है। नगर में काशी का टुकड़ा कहे जाने वाले शुक्ल टोली में शुक्ल जी के का परिवार रहता है। शुक्ल जी अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़ गए है। बड़े बेटे दैनिक समाचार पत्र हिंदुस्तान के वरीय संवाददाता है तो वहीं छोटे बेटे अपने ही घर में बच्चों की पाठशाला का संचालन करते है। प्रारंभ से ही परिवार शिक्षा-विद्या- अध्यात्म से संबद्ध रहा है।
निडर साहसी व्यक्तित्व के धनी थे शुक्ल जी
आरंभ से ही सरस्वती के आराधना करने वाला यह परिवार आध्यात्मिक उर्जा से उत्साहित रहा है। उन्हें याद करते हुए कई विद्वान यह कहते हैं कि उनका व्यक्तित्व नई पीढ़ी के लिए अनुकरणीय है। वैसे व्यक्ति पर स्मारिका निकालनी चाहिए उनकी जयंती मनाई जानी चाहिए। कई ऐसे पहलू हैं जिनको याद करके व्यक्ति रोमांचित हो जाता है।
शुक्ल जी निडर साहसी व्यक्तित्व के धनी थे, सीवान नगर के कई प्रकार के विस्तार, उतार-चढ़ाव को उन्होंने नजदीक से देखा था। उस पर उनका चिंतन मनन हम सभी के लिए उत्सुकता का केंद्र है। उनकी कालजयी कृति ‘सोनालिका’ जिसका उन्होंने संपादन किया था, वह सीवान की थाती है। सभी को सीवान से एक बार अवश्य परिचय करा जाती है। सीवान को समझने के लिए नगर स्थित शुक्ल टोली स्थित मुरलीधर शुक्ल के ‘सोनालिका’ जिसे सीवान का गजेटियर कहते हैं, उसका मनन-चिंतन करना, आपके लिए आवश्यक होगा।
पत्रकारों के लिए एक लकीर खींच गए हैं शुक्ल जी
एक समय शुक्ल टोली को काशी का टुकड़ा कहा जाता था। इस शब्द को चरितार्थ करते हुए मुरलीधर शुक्ल उर्फ आशा शुक्ल ने अपने समय में पत्रकारिता को चरम प्रणति दी। उन्होंने यह राह भी दिखाई की सीवान को कैसा होना चाहिए। एक निर्भीक, निडर व साहसी लेखनी से उन्होंने सीवान को जीवंत बनाए रखा। कद में छोटे परन्तु आसमान की ऊंचाइयों को मापने वाले मुरलीधर शुक्ल सीवान के इतिहास में सदैव याद किए जाएंगे।
जब-जब सीवान की भौगोलिक, ऐतिहासिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विषयों पर चर्चा होगी तब मुरलीधर शुक्ल की अमर कृति अवश्य याद आएगी। उनकी कृति का यह परिणाम है कि आज 27 वर्षों के बाद भी सोनालिका का दूसरा रूप स्वरूप सरकारी और गैर सरकारी रूप से सामने नहीं आया। यह एक कृति के कालजयी होने का प्रमाण है। हम सभी पत्रकारों के लिए एक लकीर खींच गए हैं शुक्ल जी। उन्होंने यह चुनौती भी दी है कि आप सोनालिका को अधतन करे,इसमें नए-नए आयामों का समावेश करें।
व्यक्तिगत रूप से आप मृदुभाषी, समय के प्रति प्रतिबद्ध व कटिबद्ध व्यक्ति, सदैव साहस बढ़ाने वाले, उत्साह बढ़ाने वाले और सहयोग करने वाले जान जाएंगे।व्यक्ति चला जाता है परन्तु उसकी यादें बनी रहती हैं और वह तब तक बनी रहेगी जब तक हमारी स्मरण शक्ति व प्रज्ञा सीवान की वसुंधरा में विद्यमान रहेगी।
और अंततः मैं फूल हूॅं, खिल जाना मेरी प्रकृति है
परन्तु समय आने पर विदा हो जाना मेरी नियति है।
पूरा श्रीनारद मीडिया परिवार आपके प्रति अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।
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