नाटक जाति ही पूछो साधु की ने किया वर्ण व्यवस्था पर प्रहार 

नाटक जाति ही पूछो साधु की ने किया वर्ण व्यवस्था पर प्रहार

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श्रीनारद मीडिया, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक, कुरूक्षेत्र (हरियाणा):

हास्य-व्यंग्य के साथ समाज के कईं पहलूओं को दिखा गया नाटक जाति ही पूछो की साधु की।

हरियाणा कला परिषद द्वारा कला कीर्ति भवन में आयोजित होने वाली साप्ताहिक संध्या में जालंधर पंजाब के कलाकारों द्वारा नाटक जाति ही पूछो साधु की मंचित किया गया। विजय तेंदूलकर द्वारा लिखित तथा वसंत देव द्वारा अनुवादिन नाटक का निर्देशन डा. अजय कुमार शर्मा द्वारा किया गया। साप्ताहिक संध्या में मुख्यअतिथि के रुप में कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के सदस्य डा. एम.के. मौदगिल पहुंचे। वहीें कार्यक्रम की अध्यक्षता अशोक रोशा ने की। कार्यक्रम से पूर्व हरियाणा कला परिषद के निदेशक नागेंद्र शर्मा ने पुष्पगुच्छ भेंटकर मुख्यअतिथि का स्वागत किया। कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलित कर की गई। मंच का संचालन हरियाणा कला परिषद के मीडिया प्रभारी विकास शर्मा ने किया।

लवली प्रोफेशनल विश्वविद्यालय के रंगमंच विभाग के विद्यार्थियों द्वारा अभिनीत नाटक की कहानी महीपत बबरुवाहन नामक एक आदमी के इर्द-गिर्द घूमती है। महीपत पिछड़ी जाति का बेरोजगार युवक है। जो किसी तरह थर्ड डिवीजन से हिदी भाषा एवं साहित्य में एमए पास कर लेता है। वह लेक्चरर बनना चाहता है, लेकिन पैसे के आभाव व बड़ी सिफारिश न होने के चलते किसी भी सरकारी और प्राइवेट कॉलेज में उसे नौकरी नहीं मिलती। जब भी वह किसी इंटरव्यू में जाता, तो उसे रिजेक्ट कर दिया जाता। इंटरव्यू में विषय से संबंधित प्रश्न पूछने के बजाय उससे उसकी जाति से संबंधित सवाल जवाब किए जाते।

इसी बीच थोड़ी मशक्कत करने के बाद उसका सपना साकार हो जाता है। लेक्चरर पद के लिए अकेला उम्मीदवार होने के कारण महिपत को ग्रामीण महाविद्यालय में नौकरी मिल जाती है। वहां उसका सामना बबना नाम के एक शरारती बच्चे से होता है, लेकिन महीपत का स्वभाव उस बच्चे को बदल देता है। धीरे-धीरे दोनों में गहरी दोस्ती हो जाती है। एक दिन कालेज कमेटी का चेयरमैन अपनी भतीजी नलिनी को लेक्चरर बनाकर कॉलेज ले आता है। नलिनी और महीपत एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं। इसकी भनक कॉलेज प्रिसिपल को लग जाती है और वह चेयरमैन को इस बारे में सब कुछ बता देता है।

चेयरमैन महीपत को उसकी जाति पर काफी बुरा भला कहता है। महीपत नलिनी को हर हाल में पाना चाहता है और उसे भगा कर ले जाने की योजना बनाता है। इसमें उसका साथ शरारती बच्चा बबना देता है। लेकिन गलती से बबना नलिनी की बजाय उसकी मौसी को उठाकर ले आता है। जब चेयरमैन को इसकी जानकारी मिलती है तो महीपत की काफी पिटाई होती है और नलिनी भी उसका साथ छोड़ देती है। महीपत एक बार फिर पढ़े-लिखे बेरोजगार की पोजीशन में पहुंच जाता है।

नाटक के अंत में वह नलिनी को तो खो ही देता है, साथ ही में नौकरी से भी हाथ धो बैठता है। इस प्रकार कलाकारों ने अपने अभिनय के माध्यम से नाटक का मंचन किया। नाटक में बबना की भूमिका में रणवीर, महिपत की भूमिका अभिमन्यु तथा नलिनी की भूमिका मुस्कान ने निभाई। अन्य किरदारों में हंसराज, पार्थ, आशुतोष, युवराज, तेजस, निखिल, राहुल, सोनू आदि शामिल रहे। अंत में मुख्यअतिथि डा. एम.के. मौदगिल ने अपने विचार सांझा करते हुए कलाकारों की प्रतिभा की सराहना की। हरियाणा कला परिषद की ओर से नाटक निर्देशक डा. अजय कुमार शर्मा तथा मुख्यअतिथि डा. एम.के. मौदगिल को स्मृति चिन्ह भेंटकर आभार व्यक्त किया गया।

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