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1971 की राजनीतिक चूक आज तक बनी है आतंक की वजह.

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श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क

वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच तीन दिसंबर से 16 दिसंबर तक हुए युद्ध में देश के दुश्मनों को बुरी तरह परास्त किया था। हजारों की तादाद में पाकिस्तानी सैनिक बंदी बनाए जाने के बाद पाकिस्तान ने हार समझौते की पेशकश की थी। भारत की ओर से लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह के सामने पाकिस्तानी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी ने समझौते नामे पर दस्तखत किए थे। तब युद्ध में हिस्सा लेने वाले और अब पूर्व सैनिकों को उस जीत की खुशी तो है लेकिन आज तक इस बात की टीस है कि इतनी बड़ी जीत के बावजूद समझौते और हजारों पाकिस्तानी सैनिकों को रिहा करने के बदले भारत ने पाकिस्तानी अधिकृत कश्मीर (पीओके) को वापस नहीं लिया।

तब हुई चूक की वजह से आज तक बलिदान हो रहे जवान 

एक्स सर्विसमैन कोआर्डिनेशन कमेटी के जिलाध्यक्ष व सेवानिवृत्त वायु सैनिक राकेश कुमार विद्यार्थी बताते हैं कि 16 दिसंबर 1971 में हमारे जवानों के आगे जब पाकिस्तानी सेना ने घुटने टेके। तब संधिनामा की शर्त के तौर पर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को वापस लेना चाहिए था। तब हुई इस राजनीतिक चूक आज तक उस इलाके की वजह से आतंक की वजह बनी। इसका खामियाजा यह हुआ कि अब तक सैकड़ों वीर जवान पाकिस्तान के आतंकी मंसूबों की वजह से बलिदान हो चुके हैं, वहीं कई बेगुनाह लोगों ने भी अपनी जान गंवाई है।

धारा 370 हटने के बाद अब जम्मू-कश्मीर का सुधार 

सेवा निवृत्त कैप्टन रामलाल बताते हैं कि भारतीय सेना के जवानों के हौसले तब काफी बुलंद थे। यही वजह रही कि सीमित संसाधनों के बावजूद हमने विजय हासिल की। वह बताते हैं कि सेवानिवृत्त होने के बाद सामान्य नागरिक के तौर समाज में काफी अजीब लगता है। क्योंकि सैन्य जीवन में रहन-सहन, अनुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण मिलता है। वहीं आम जिंदगी में कई व्यवस्थाओं से धीरे-धीरे सामंजस्य बनाया जाता है। उन्होंने कहा कि धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में आम हालातों में काफी सुधार होगा। लोगों को अच्छी शिक्षा-दीक्षा के अवसर मिलेंगे।

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