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प्रधानमंत्री ने जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा को चंदन की लकड़ी से बनी बुद्ध प्रतिमा भेंट की। - श्रीनारद मीडिया

प्रधानमंत्री ने जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा को चंदन की लकड़ी से बनी बुद्ध प्रतिमा भेंट की।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत के प्रधानमंत्री ने जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा को उनकी दो दिवसीय राजकीय यात्रा के दौरान चंदन की लकड़ी से बनी बुद्ध प्रतिमा भेंट की।

  • चंदन की लकड़ी से बनी इस मूर्ति में बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे ‘ध्यान मुद्रा’ में बैठे हुए दर्शाया गया है।

चंदन:

  • परिचय: संतालम/सैंटालम एल्बम को आमतौर पर भारतीय चंदन के रूप में जाना जाता है, यह चीन, भारत, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस में पाई जाने वाली शुष्क पर्णपाती वन प्रजाति है।
    • चंदन लंबे समय से भारतीय विरासत एवं संस्कृति से जुड़ा हुआ है और विश्व के चंदन व्यापार में देश ने 85% का योगदान दिया। हालाँकि हाल में इसमें तेज़ी से गिरावट आई है।
  • विशेषता: इस उष्णकटिबंधीय पेड़ की ऊँचाई 20 मीटर तक होती है और इसकी लकड़ियाँ लाल होती हैं तथा इसकी छाल कई गहरे रंगों (गहरा भूरा, लाल तथा गहरा स्लेटी) की होती है
  • उपयोग: इसकी लकड़ी मज़बूत और टिकाऊ होती है, इसलिये इसका अधिकांश उपयोग किया जाता है।
    • भारतीय चंदन को आयुर्वेद की सबसे पवित्र जड़ी बूटियों में से एक माना जाता है।
  • भारत में वितरण: भारत में चंदन ज़्यादातर आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में उगाया जाता है।
    • कर्नाटक को कभी-कभी ‘गांधार गुड़ी’ अथवा चंदन की भूमि भी कहा जाता है। चंदन पर नक्काशी की कला सदियों से कर्नाटक की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग रही है। इसकी उत्पत्ति तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में देखी जा सकती है। राज्य ने संसाधनों का निरंतर प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये चंदन विकास बोर्ड की स्थापना की है।
  • IUCN रेड लिस्ट स्थिति: सुभेद्

बौद्ध धर्म में मुद्राएँ:

  • बौद्ध धर्म में मुद्रा हस्त संकेत अथवा अवस्थाएँ हैं जिनका उपयोग ध्यान और अन्य अभ्यासों के दौरान किया जाता है ताकि मन को केंद्रित करने, ऊर्जा को नियंत्रित करने और बुद्ध की शिक्षाओं को प्राप्त करने में मदद मिल सके।
    • ध्यान मुद्रा: इस मुद्रा में हाथों को गोद में रखा जाता है, इसमें दाहिना हाथ बाएँ हाथ के ऊपर होता है और अँगूठे को स्पर्श करता है।
      • यह मुद्रा ध्यान, एकाग्रता और आंतरिक शांति की प्रतीक है।
    • अंजलि मुद्रा: यह बौद्ध धर्म में उपयोग की जाने वाली सबसे आम मुद्रा है और इसमें हथेलियों को छाती के सामने एक साथ दबाया जाता है, जिसमें उँगलियाँ ऊपर की ओर संकेत करती हैं।
      • यह सम्मान, अभिवादन और कृतज्ञता का प्रतीक है।
    • वितर्क मुद्रा: इस मुद्रा को “शिक्षण मुद्रा” या “चर्चा मुद्रा” के रूप में भी जाना जाता है और इसमें दाहिने हाथ को ऊपर उठाने और अँगूठे एवं तर्जनी के माध्यम से वृत्त बनाना शामिल है।
      • यह ज्ञान के संचरण और बुद्ध की शिक्षाओं के संचार का प्रतीक है।
    • वरद मुद्रा: इस मुद्रा में दाहिना हाथ नीचे की ओर फैला होता है, जिसमें हथेली बाहर की ओर होती है। 
      • यह उदारता, करुणा और इच्छाओं को पूरा करने का प्रतीक है।
    • अभय मुद्रा: इस मुद्रा में दाहिने हाथ को कंधे की ऊँचाई तक ऊपर उठाना शामिल है, जिसमें हथेली बाहर की ओर होती है।
      • यह निडरता, सुरक्षा और नकारात्मकता को दूर करने का प्रतीक है।
    • भूमिस्पर्श मुद्रा: इस मुद्रा में दाहिने हाथ की उँगलियों से ज़मीन को छूना शामिल है, जबकि बायाँ हाथ गोद में रहता है। 
      • यह बुद्ध के ज्ञानोदय के क्षण को प्रदर्शित करता है और ज़मीन की तरफ संकेत पृथ्वी उनके ज्ञानोदय की साक्षी की प्रतीक है।
    • उत्तरबोधी मुद्रा: इस मुद्रा में दोनों हाथों को जोड़ कर हृदय के पास रखा जाता है और तर्जनी  उँगलियाँ एक-दूसरे को छूते हुए ऊपर की ओर होती हैं तथा अन्य उँगलियाँ अंदर की ओर मुड़ी होती हैं, जिससे त्रिभुज के आकार का निर्माण होता है।
      •  यह मुद्रा ज्ञान और करुणा के संगम, पुरुषत्व एवं स्त्रीत्व ऊर्जा के संतुलन तथा स्वयं के सभी पहलुओं के एकीकरण के माध्यम से ज्ञान प्राप्ति का प्रतिनिधित्त्व करती है।
    • धर्मचक्र मुद्रा: इसमें हाथों को हृदय के सामने रखा जाता है और प्रत्येक हाथ के अँगूठे और तर्जनी से एक वृत्त का निर्माण किया जाता है। प्रत्येक हाथ की शेष तीन उँगलियाँ  ऊपर की ओर होती हैं, जो बौद्ध धर्म के त्रि-रत्नों- बुद्ध, धर्म (उनकी शिक्षाएँ) और संघ (अनुयायियों का समुदाय) का प्रतिनिधित्त्व करती हैं। अँगूठे और तर्जनी द्वारा निर्मित वृत्त धर्म चक्र का प्रतिनिधित्त्व करता है।
      • यह मुद्रा जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के निरंतर चक्र तथा बुद्ध की शिक्षाओं को इस चक्र से मुक्त होने के साधन के रूप में दर्शाती है।
    • करण मुद्रा: इसमें बायाँ हाथ हृदय तक ऊपर लाया जाता है और हथेली आगे की ओर होती है। तर्जनी तथा छोटी उँगलियाँ सीधी ऊपर की ओर संकेत करती हैं, जबकि अन्य तीन उँगलियाँ हथेली की ओर मुड़ी हुई होती हैं।
      • यह मुद्रा अक्सर बुद्ध या बोधिसत्व के चित्रण में देखी जाती है, जिसे सुरक्षा और नकारात्मकता को दूर करने के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। कहा जाता है कि तर्जनी ज्ञान की ऊर्जा और बाधाओं को दूर करने की क्षमता का प्रतिनिधित्त्व करती है।
    • ज्ञान मुद्रा: इसमें तर्जनी और अँगूठे को एक साथ लाकर एक वृत्त का निर्माण किया जाता है, जबकि अन्य तीन उँगलियों को बाहर की ओर रखा जाता है।
      • यह इशारा सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना की एकता और बुद्ध की शिक्षाओं के मध्य व्यावहारिक संबंध का प्रतिनिधित्त्व करता है।
    • तर्जनी मुद्रा: इसमें तर्जनी उँगुली को ऊपर की ओर बढ़ाया जाता है, जबकि अन्य उँगुलियों को हथेली की ओर मोड़ा जाता है। तर्जनी मुद्रा, जिसे “भय के इशारे” के रूप में भी जाना जाता है।
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