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प्रत्येक वर्ग की चिंताओं का ख्याल रखते हुए लाया जाना चाहिए प्रस्ताव,क्यों? - श्रीनारद मीडिया

प्रत्येक वर्ग की चिंताओं का ख्याल रखते हुए लाया जाना चाहिए प्रस्ताव,क्यों?

प्रत्येक वर्ग की चिंताओं का ख्याल रखते हुए लाया जाना चाहिए प्रस्ताव,क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

विवाह की आयु तो कानून में तय है लेकिन दो बालिगों के हम बिस्तर होने या लिव इन में रहने पर कानून में किसी तरह की रोक टोक नहीं है। कानून में 18 वर्ष की आयु होने पर व्यक्ति बालिग हो जाता है और उसे अपनी मर्जी से जीवन जीने और साथी चुनने का अधिकार है। समस्या तब उठती है जब 18 से 21 वर्ष के युवक युवती बालिग होने के आधार पर लिव इन में रहने लगते हैं और माता पिता या परिजनों के दखल देने पर बालिग होने के आधार पर मर्जी से जीने के अधिकार की दुहाई देते हुए कोर्ट में जाकर सुरक्षा की गुहार लगाते हैं।

लिव इन रिलेशन के बारे में कानून की शून्यता के चलते कोर्ट के पास ऐसे बालिगों को सुरक्षा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। इस स्थिति ने लिव इन रिलेशन को कानून में बांधने की एक नयी बहस को जन्म दिया है। कोर्ट ने सरकार से इस पर जवाब मांगा है।

पिछले दिनों पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने बहुतायत में आ रहे ऐसे मामलों का जिक्र करते हुए केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या 18 से 21 के बीच की किशोरवय के बालिग युवाओं के लिव इन रिलेशन को नियंत्रित करने के बारे में कोई प्रस्ताव है। सरकार कोर्ट में जब जवाब देगी तब देगी लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इसे रेगुलेट किया जा सकता है और किया जाना चाहिए लेकिन ऐसा करते वक्त जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए। इसे रेगुलेट करते वक्त समाज के हर वर्ग की चिंताओं का ख्याल रखते हुए प्रस्ताव लाया जाना चाहिए और यह ध्यान रखा जाए कि समाज का तानाबाना न बिगड़ने पाए।

वयस्क को मर्जी से जीवनजीने और साथी चुनने का है अधिकार

वयस्कता अधिनियम 1875 के मुताबिक 18 वर्ष की आयु पूरी होने पर व्यक्ति वयस्क माना जाएगा। वयस्क को मर्जी से जीवनजीने और साथी चुनने का भी अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट भी कई फैसलों में इस पर मुहर लगा चुका है। इसी के तहत लिव इन में रह रहे, सुरक्षा की मांग कर रहे दो वयस्कों को कोर्ट सुरक्षा प्रदान करता है।

इस बारे में संसद में पेश हो चुका है विधेयक

पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने गत 7 मार्च को 18 से 21 वर्ष के ऐसे किशोरवय बालिग जोड़ों की सुरक्षा की गुहार वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र से यह सवाल किया था। सुनवाई के दौरान जब केंद्र ने कोर्ट को बताया कि बाल विवाह कानून 2006 में संशोधन कर लड़कियों की भी विवाह की आयु बढ़ा कर 21 वर्ष करने का प्रस्ताव है और इस बारे मे संसद में विधेयक भी पेश हो चुका है। तब हाईकोर्ट ने कानूनन बालिग हो गए किशोरवय जोड़ों के लिव इन का मुद्दा उठाते हुए पूछा कि क्या लिव इन रिलेशन के बारे में भी कोई प्रस्ताव है।

बहुत सोच समझ कर कानून बनाया जाए

लिव इन पर कानून के प्रस्ताव पर पूर्व विधि सचिव पीके मल्होत्रा कहते हैं कि लिव इन को कानून के जरिए रेगुलेट करने का समय आ गया है लेकिन वह कहते हैं कि इसमें जल्दबाजी में कुछ नहीं होना चाहिए। बहुत सोच समझ कर कानून बनाया जाए जिसमें समाज के हर वर्ग की ¨चताओं का ख्याल रखते हुए प्रस्ताव लाया जाना चाहिए क्योंकि हमारी कुछ सामाजिक बाध्यताएं और मान्यताएं हैं जिनका पालन करना होगा। सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके गर्ग का मानना है कि इस पर संसद को कानून बनाना चाहिए। सरकार को अभी जवाब देना है लेकिन यह तो माना ही जा रहा है कि शादी की उम्र 21 साल होने के बाद लिव इन को लेकर भी कुछ फैसला हो सकता है।

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