पूज्य राजन जी महाराज का राम कथा वाचन अद्भुत अकल्पनीय, अविश्वसनीय है.
मैं तो कथा का ‘क’ भी नहीं जानता था-राजन जी महाराज
मेरी कोई औकात नहीं कि मैं श्री राम कथा कहूं,यह सब प्रभु मुझ से कहलवाते हैं– राजन जी महाराज
ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से हम ब्राह्मण नहीं हो जाएंगे हमें आचरण से ब्राह्मण बनना पड़ेगा
सीवान जिले के जीरादेई प्रखंड अंतर्गत हीर मकरियार गांव में नौ दिवसीय रामकथा का वाचन व श्रवण हुआ
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आप भारतीय लोक संस्कृति के मर्मज्ञ हैं।आपके कथा वाचन में भोजपुरी मैथिली अवधी बोली का पुट है जो इस वाचन व श्रवण के लालित्य को और चमत्कृत कर देता है। आपके वाचन में यह बात सदैव परिलक्षित होती है कि भारतीय संस्कृति कर्म प्रधान है इसमें कर्म की प्रधानता है। मनुष्य का चिंतन ही कर्म रूप में परिणत होता है। मनुष्य श्री राम की कृपा से अपने उत्कृष्ट चिंतन व सुंदर कर्मों से अपने भागय का स्वयं विधाता है। वह अपने संपूर्ण जीवन का वास्तुकार है। अगर आप प्रभु पर विश्वास करते हैं तो अपने आचरण व कर्म की समानता को सदैव जीवन का आदर्श बनाएं।
एक मर्यादित मनुष्य को कैसे जीना चाहिए यह राम का चरित्र है।मनु के वंश होने के कारण हम सभी मनुष्य कहलाए। राम जी के चरित्र का एक प्रतिशत भी हमारे जीवन में अगर उतर गया तो हमारे जीवन का उद्धार हो जाएगा।
आप सदैव कहते है “ मुझे कौन पूछ रहा था तेरी बंदगी से पहले
मैं खुद को ढूंढता था तेरी बंदगी से पहले
मेरी जिंदगी थी ऐसे जैसी खाली सीप मोती
मेरी बड़ी गई है कीमत तूने भर दिए है मोती
ना ये गीत ये गला था बंदगी से पहले
मुझे कौन पूछता था तेरी बंदगी से पहले।
राम कथा वाचन करने के लिए मैं लाया गया हूं मैंने राम कथा कहीं से नही सीखा। मैं तो कथा का ‘क’ भी नहीं जानता था, यह सब मेरे प्रातः स्मरणीय गुरु जी की कृपा, पिताजी का कर्म, पूर्व जन्म का फल सबका एक साथ संयोग हुआ है कि मैं यह कथा कहने लगा। कथा में आने से पहले ना तो मुझे बैठने आता था ना चलने आता था, न बोलने आता था, यह सब भगवत की कृपा है।
” मेरा राम की कृपा से सब काम हो रहा है
करते हो मेरे राघव और मेरा नाम हो रहा है
मेरा राम की कृपा से सब काम हो रहा है”
सच पूछिए तो आपके जीवन में भगवान की बहुत बड़ी कृपा है, आप रात में सो रहे हैं और सुबह उठ जा रहे हैं, आप देख रहे हैं ,आप हंस रहे हैं, इन सब पर भगवान की कृपा है। उपलब्धि प्राप्त होने के बाद हमारे अन्दर सबसे पहला काम होता है अभिमान का आना, जब प्राप्त उपलब्धि को हम अपना पुरुषार्थ मान लेते हैं तो हमें अभिमान आना प्रारंभ होता है, जब उपलब्धि को आप भगवत कृपा मान लेंगे तो कितनी भी ऊंचाई पर जाने पर भी आपको भी अभिमान नहीं होने वाला।
यह उक्ति बार-बार मै अपने भजन के माध्यम से याद दिलाता हूं और कहता हूं।
राम कथा में संगीत के पुट पर महाराज जी का कहना है कि संगीत वेद का अंग है सामवेद से संगीत निकला है। संगीत का संबंध मनुष्य की आत्मा से है, वह नीरस भी है तो अपनी ओर खींचता है, यही कारण है कि रामकथा में संगीत का पुट होने से वह सरस सरल सहज रूप से हमारे मन मस्तिष्क मैं अपना जगह बना लेता है।
चरित्र बल मनुष्य का निर्माण करता है। चरित्र चित्र बनाता है और चित्र व्यवहार विचार चरित्र बनाता है और जैसा हमारा चरित्र रहेगा समाज में वैसा ही हमारा चित्र बनेगा। राम जी का चरित्र मन,कर्म वचन अनुसरण करने योग्य है इसलिए राम का चरित्र पुरुषोत्तम है, आदर्श है भारत की सनातन संस्कृति की शिखर है।
सीवान इस वर्ष अपने स्थापना के 50 वर्ष पूरे कर रहा है और भगवान की सोची समझी यह रचना है कि मैं इस वर्ष सीवान की धरा पर राम कथा का वाचन कर रहा हूं। मेरा यह संदेश है कि प्रत्येक घर में तुलसी जी का चौरा होना चाहिए, उन्हें दीपक अवश्य दिखाना चाहिए, साथ ही प्रत्येक घर के आंगन में मानस का वाचन अवश्य होना चाहिए। जीवन में यह कभी नहीं न सोचना कि हमें इसके जैसे बनना है क्योंकि जब आप ऐसा सोचते हैं तो आप अपने को चारों ओर से एक रेखा में खींच डालते हैं और उसी में सिमट कर रह जाते हैं। आपको सदैव आप जैसा बनना है आपमें अनंत संभावनाएं हैं और इसमें आप आगे बढ़े।
आप धर्म की रक्षा करें आप धर्मानुसार आचरण करें।
जो सनातनी होगा वह कभी आतंकवादी नहीं हो सकता।
ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से हम ब्राह्मण नहीं हो जाएंगे हमें आचरण से ब्राह्मण बनना पड़ेगा।
धर्म एक है सर्वभौम सनातन धर्म, बाकी सब पंथ है। सनातन धर्म में शांति की बात कि जाती है।
” करना था सब है बाकी
जो किया था उसे नहीं था करना”
यहां शांति मिलती है, मनुष्य मशीन नहीं है यहां मनुष्य का मौलिक मूल्यांकन होता है। हम अपनी संस्कृति से दूर हो रहे हैं क्योंकि हम प्रगतिशील बनना चाहते हैं। आप देखेंगे कि किसी भी समाज के निर्माण में कथाकार, चित्रकार, अदाकार,नीतिकार और गीतकार का महत्वपूर्ण स्थान होता है यह पांच स्तंभ है जो अगर व्यवस्थित हो जाएं तो समाज का कायाकल्प हो जाएगा। हमें अपने सनातन पद्धति के अनुसार आचरण व्यवहार करना चाहिए, आज हम अपने माथे पर तिलक क्यों नहीं लगाते,हम माला क्यों नहीं पहनते? माथे का तिलक भक्तों का सिंदूर है, और गले का माला उसका मंगलसूत्र है, जो बताता है कि मैं अनाथ नहीं हूं मेरे राम मेरे साथ हैं।
जो अपनी संस्कृति को नहीं बचा सकता, वह अपनी सभ्यता को नहीं बचा सकता फिर उसे भगवान भी नहीं बचा सकते। ऐसे में क्या हम प्रश्न करने के अधिकारी हैं? सोचिए आप में और जानवर में क्या अंतर है।
आगे राजन जी महाराज बताते हैं कि मैं अपने ही गांव में छोटी-छोटी कथा किया,लेकिन पहली बार विधिवत 6 अगस्त 2011 से 14 अगस्त 2011 तक नौ दिवसीय राम कथा का वाचन पश्चिम बंगाल में हावड़ा की कृष्णा भवन के सभागार में हुआ,जिसकी वीडियो आज भी यूट्यूब पर आपको मिल जाएंगे। इसके बाद में विदेशों में पहली बार अमेरिका गया बैंकॉक गया, आने वाले वर्षों में कई जगह से आमंत्रण हैं, देखिए प्रभु की क्या इच्छा है।
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