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जंग के दौरान भारतीय कूटनीति की असल परीक्षा अब,क्यों? - श्रीनारद मीडिया

जंग के दौरान भारतीय कूटनीति की असल परीक्षा अब,क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

रूस यूक्रेन जंग ने भारतीय कूटनीति को मुश्किल में डाल दिया है। भारत पर वैश्विक महाशक्तियों के बीच अमेरिका या रूस में से किसी एक को चुनने का दबाव बढ़ रहा है। ऐसे हालात में भारत की कूटनीति काफी मुश्किल परिस्थितियों से गुजर रही है। भारत ने जैसे ही रूस से रूबल में तेल खरीदने का ऐलान किया, वैसे ही अमेरिका ने चेतावनी जारी कर दी। भारत दौरे पर आए अमेरिका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह और अमेरिका के वाणिज्य मंत्री जीना रायमुंडो ने भारत के इस कदम की निंदा की है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि भारत को क्‍या करना चाहिए? क्‍या भारत को अपनी तटस्‍थता की नीति का त्‍याग कर देना चाहिए? उसे रूस या अमेरिका में से किसी एक ध्रुव के साथ चले जाना चाहिए? आखिर, भारत के पास अब क्‍या विकल्‍प है?

1- प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि भारत, रूस से मधुर संबंध के कारण पश्चिमी देशों के निशाने पर है। अमेरिका के उप राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह के बयान को इसी कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए। सुरक्षा परिषद की बैठक में भारत दोनों देशों से तत्काल युद्ध को खत्म करने और वार्ता के जरिए विवादों को हल करने का आह्वान कर चुका है।

सुरक्षा परिषद में रूस के खिलाफ मतदान में हिस्‍सा नहीं लेने पर भारत पर अमेरिका की टेढ़ी नजर थी, लेकिन हाल में भारत ने रूस से रूबल में तेल खरीदने के ऐलान के बाद अमेरिका सख्‍त हो गया है। अब अमेरिका की नाराजगी साफ दिख रही है। गौरतलब है कि अमेरिकी उप राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने कहा कि भारत को यह उम्‍मीद नहीं करनी चाहिए कि अगर चीन वास्‍तविक नियंत्रण रेखा का उल्‍लंघन करता है तो रूस उसके बचाव में आएगा। अमेरिका के इस स्‍टैंड के बाद भारत कूटनीति की मुश्किलें बढ़ गई हैं।

2- उन्‍होंने कहा कि यह भारतीय कूटनीति के लिए एक बड़ी परीक्षा की घड़ी है। अमेरिका ने यह इशारा कर दिया है कि भारत को तय करना होगा कि वह रूस के साथ रहे या अमेरिका के नजदीक। रूस यूक्रेन जंग में भारत का दृष्टिकोण साफ रहा है कि वह जंग का किसी भी सूरत में हिमायती नहीं है, लेकिन वह रूस का विरोध नहीं करेगा। अमेरिका भारत की इस मजबूरी को समझता है। यही कारण है कि भारत के तटस्‍थता की नीति का उसने अभी तक खुलकर विरोध नहीं किया था।

3- उन्‍होंने कहा कि अब अमेरिका इस बात की खुली धमकी दे चुका है कि रूस पर लगे प्रतिबंधों में रुकावट डालने वालों को अंजाम भुगतने होंगे। ऐसे में भारत इससे कैसे निपटता है, यह देखना होगा। उन्‍होंने कहा कि भारत अमेरिका को लगातार यह समझाने की कोशिश में जुटा है कि वह भारत की जरूरतों के लिहाज से कदम उठा रहा है। वह इस जंग का समर्थन नहीं करता, लेकिन अपनी जरूरतों का ख्‍याल रख रहा है।

अब सवाल यह है कि अमेरिका भारत की इस विवशता को कितना तरजीह देता है। उन्‍होंने कहा कि अमेरिका को भारत की असल चुनौती को समझना होगा। भारत में तेल की कीमते बढ़ रही हैं, भारत सरकार पर इसका दबाव है। इसका भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था और राजनीति पर सीधा असर पर रहा है। अमेरिका को इस बात को बारीकी से समझना होगा। उन्‍होंने कहा कि मित्र होने के नाते अमेरिका को भारत की आंतरिक दिक्‍कतों को समझना भी चाहिए। अब भारतीय कूटनीति की यह परीक्षा है कि वह बाइडन प्रशासन को कैसे समझाए।

4- प्रो पंत का कहना है निश्चित रूप से यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस को घेरने में जुटे अमेरिका व इसके सहयोगी देश भारत पर भी लगातार दबाव बनाने की रणनीति अपनाए हुए हैं। यही कारण है कि क्‍वाड के दूसरे वर्चुअल शिखर बैठक के दौरान आस्‍ट्रेलिया और जापान ने एक रणनीति के साथ भारत पर रूस के विरोध में दबाव बनाया था। इस बैठक में आस्‍ट्रेलिया के पीएम स्‍काट मारिसन ने इस घटनाक्रम को हिंद प्रशांत महासागर की स्थिति से जोड़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस क्षेत्र में लोकतांत्रिक देशों का नेतृत्‍व करने का भी प्रस्‍ताव रखा था। उन्‍होंने कहा कि इस बात को इसी कड़ी से जोड़कर देखा जाना चाहिए।

5- उन्‍होंने कहा कि भारत ने रूस यूक्रेन जंग के दौरान अपनी स्‍वतंत्र व तटस्‍थ कूटनीति का पालन किया है। यही कारण रहा कि संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में भारत किसी भी वोटिंग में मौजूद नहीं रहा। इतना ही नहीं, वह रूस के साथ कच्‍चे तेल की खरीद भी कर रहा है। यह बात शायद क्‍वाड देशों को हजम नहीं हो रही है। उन्‍होंने कहा कि इसके अन्‍य बड़े कारण भी है। भारत इसको नजरअंदाज नहीं कर सकता। भारत अपनी रक्षा जरूरतों का एक बड़ा हिस्‍सा रूस से लेता है। देश में करीब 60 फीसद हथियार रूस के हैं। सैन्‍य क्षेत्र में भारत की रूस के प्रति आत्‍मनिर्भरता है।

1998 जैसी मुश्किल में फंस गया भारत

1998 के दौरान भारत ने अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों को परमाणु परीक्षण को लेकर मजबूरियों को समझाने में सफलता पाई थी। यही कारण था कि अमेरिका ने भारत के ऊपर लगाए गए अधिकतर प्रतिबंधों को खत्म कर दिया था। उसके बाद से 2008 के दौरान भारत-अमेरिका परमाणु समझौते से दोनों देशों के रिश्तों को नया आयाम मिला।

भारत का कहना है कि हमारी विदेश नीति स्वतंत्र है और सभी देशों के साथ रिश्तों की अहमियत भी अलग है। गौरतलब है कि भारतीय कूटनीति एक बार फिर 1998 जैसे दबाव से गुजर रही है। उस वर्ष भारत ने एक के बाद एक कई परमाणु परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया था। इसके चलते अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा था।

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