पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या के कारण का पता अभी तक नहीं चला!

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आज ही के दिन वरिष्ठ पत्रकार राजदेव रंजन की 13 मई, 2016 को हत्या कर दी गई थी

राजदेव रंजन हत्याकांड के समय बिहार में नीतीश-तेजस्वी की सरकार थी

सीवान नगर थाने में 362/16 से प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क


सीवान में वरिष्ठ पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या के सात साल बाद भी इस सवाल का उत्तर किसी के पास नहीं कि आखिर उनकी हत्या क्यों की गई? देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी भी इस सवाल का जवाब नहीं ढूंढ पाई।

सीवान नगर स्थित स्टेशन रोड की वह चहल-पहल भरी 13 मई 2016 की शाम थी। जब फलमंडी के निकट गोली मारकर वरिष्ठ पत्रकार राजदेव रंजन की नृशंस हत्या कर दिया गया। पुलिस ने सक्रियता दिखाते हुए शूटरों को गिरफ्तार कर लिया। राजदेव रंजन हत्याकांड के मुख्य आरोपी लड्डन मियां का राजद के कद्दावर नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन से करीबी संबंध बताया जाता था। पुलिस के मुताबिक, पांचों अभियुक्तों की पहचान रोहित कुमार, विजय कुमार, राजेश कुमार, रिसु कुमार और सोनू कुमार के रूप में हुई। इनके पास से हत्या में इस्तेमाल देसी पिस्तौल और मोटरसाइकिल भी बरामद कर लिया गया।

उस समय सीवान में पंचायत चुनाव हो रहे थे। तत्कालीन जिलाधिकारी महेंद्र कुमार और पुलिस अधीक्षक सौरव कुमार साह ने आनन-फानन में सदर अस्पताल पहुंचकर हत्याकांड की प्राथमिक जानकारी ली। हत्या की रात में ही पुलिस ने ताबड़तोड़ छापामारी करके जिरादेई में भैंसाखल स्थित चिमनी पर से भू-माफिया उपेंद्र सिंह और उसके एक सहयोगी को गिरफ्तार कर लिया। ग़ौरतलब है कि यह वही उपेंद्र सिंह था, जिसने भाजपा सांसद के प्रवक्ता श्रीकांत भारतीय की हत्या करने वाले सुपारी किलर चवन्नी सिंह को अपने घर एवं चिमनी पर शरण दिया था।

पत्रकार राजदेव रंजन का अंतिम संस्कार 14 मई को दाहा नदी के किनारे किया गया। देश भर के पत्रकार इस मौके पर जुटे। सीवान नगर में शाम के समय कैंडल मार्च निकाला गया। सरकार विरोधी नारे लगे। भाजपा नेता सुशील मोदी का दौरा हुआ वे पत्रकार भवन में सभी पत्रकारों के व्यथा को गौर से सुना। सरकार पर काफी दबाव बढ़ गया। सरकार ने उक्त मामले की जांच सीबीआई को सौंप दिया।

पत्रकार राजदेव रंजन की पत्नी आशा रंजन रोते हुए बताती हैं, ‘मुझे एक ईमानदार पत्रकार की पत्नी होने की सजा मिली. जिस दिन उनकी निर्मम हत्या की गई थी उसके ठीक एक दिन बाद हमारी शादी की सालगिरह थी. आप ही सोचिए उस वक्त एक बीवी पर क्या बीतेगी! उसके क्या- क्या सपने होगें कितनी उम्मीदें रही होंगी… जिन्हें अपराधियों ने हमेशा के लिए छीन लिया.’

पत्रकार राजदेव पर हुआ यह पहला हमला नहीं था. वर्ष 1998 में पहली बार राजदेव रंजन पर हमला हुआ था. उस समय राजदेव अपने सहयोगी प्रो. रविंद्र प्रसाद के घर में बैठकर समाचार लिख रहे थे, जब उन पर गोली चली. हालांकि गोली राजदेव को न लगकर रविंद्र प्रसाद के हाथ में लगी थी. उसके बाद साल 2004 में भी उन पर हमला हुआ. उनके कार्यालय में घुसकर गुंडों ने लाठी-डंडे से बुरी तरह पिटाई की और साथ में जान से मारने की धमकी दी.

जैसा सर्वविदित है की सीबीआई बिहार के किसी भी मामले में बहुत कारगर साबित नहीं हुई है और वही हुआ। आज आठ साल बीत जाने के बाद भी सीबीआई मुख्य आरोपी तक नहीं पहुंच पाई है। हत्या किन कारणों से की गई यहां तक भी नहीं पहुंच पाई है। आरोपियों को सज़ा दिलवाना तो दूर की बात है।

 

 

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