हलवाई की तोंद का रहस्य है की वह दुनिया का सबसे सुखी व आनंदित जीव है,कैसे?

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हलवाई तृप्त और संतुष्ट है इसलिए वह दुनिया का सबसे सुखी व आनंदित जीव है।

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्‍क

उसकी वृहद गोलाकार तोंद और मिठाई बनाने में ध्यानस्थ उसकी मुख़ाकृति यह मौन घोषणा करते हैं — हाँ, हाँ मैं दुनिया का सबसे सुखी व आनंदित जीव हूँ, मैं हलवाई हूँ!

मुझे लगता है, हलवाई शब्द हलवा से बना है। सम्भवतः भारतवर्ष का अति प्राचीन व सबसे प्रिय मिष्ठान हलवा हीं रहा होगा। पर हलवा और सेवइयां अब बस खास अवसरों पर खाया जाने वाला एक मिष्ठान मात्र रह गया है। बाकी दिन तो कोई कामातुर पति या प्रेमी हीं इसका नाम लेते हैं — घर में जे अइबे तो हमें का खिलइबे। गरम -गरम पुरी आ हलवा खिलइबे। नरम-नरम हाथों से खा जा बालमा।
खैर यहां पाठकों को समझाने की आवशयकता नहीं है कि यहां एक दुसरा हीं हलवा खाने खिलाने की बात हो रही है जो दुनिया का सबसे टेस्टी व रेडीमेड हलवा माना जाता है।

हलवाई का धंधा बारहमासा है। मेला – ठेला है। तीज-त्यौहार है। सोलह – संस्कार है। मिठाई के बगैर भारतीयों का कोई काम नहीं होता। बच्चा हुआ तो मिठाई, पढ़ाई में अव्वल आया तो मिठाई, नौकरी लगी तो मिठाई, शादी हुई तो मिठाई।

हलवाई लगा रहता है अपनी धुन में, मौन एकदम मौन — जलेबी, गज्जक, इमरती, बर्फी, बतासे, खाजा, लड्डू, चन्द्रकला। फिर सुबह खस्ता कचौरी, घुघनी, शाम समोसा, आलुचोप, पकौड़े और धनिया – लहसुन की चटनी। शरीर स्थिर सुखासन में, चेतना को आकार देते हाथ मिठाई के सृजन में। छनोटा से छानते कुरकुरे जलेबी और उन्हें चासनी में डुबोते देख किसी साधु के चमत्कारी चिमटे का अहसास होता है।

मैंने हलवाई को कभी झगड़ते नहीं देखा। रसना के रहस्य को जानने के बाद कैसा झगड़ा।

मुझे लगता है हलवाई, ” सुगंधि पुष्टि वर्धनम ” मंत्र को आत्मसात कर लेता है यही उसके तोंद का रहस्य है।उसके चारों ओर वायुमंडल में स्वच्छ – मधुर – प्राणदायक सुगंध का घेरा व्याप्त है जिसे वो अपने नासापूटों से अहर्णिश ले रहा है। दुर्गन्ध से बीमारियां और सुगंध से स्वास्थ्य लाभ होता है।

भोजन सामने हो तो कैसी भूख, पानी सामने हो तो कैसा प्यास, तिजोरी भरी हो तो कैसा लोभ-लालच, प्रेमिका बांहों में हो तो कैसी वासना।

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