आज के दिन ही भारत के बंटवारे का बीज पड़ा था,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
देश के इतिहास का वो दर्द भरा समय, जब भारत मां के दो टुकड़े हुए थे और पाकिस्तान में हिंदुओं का कत्लेआम मच गया था। उस समय लम्बी-लम्बी कतारों में लोग पाकिस्तान से भारत और भारत से पाकिस्तान की ओर पैदल और रेलगाड़ियों में निकल पड़े थे। इसी समय पाक में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की आग भड़क गयी थी और लोगों को काटकर ट्रैन में भरकर भारत भेजा जाने लगा।
इस खूनी बंटवारे का बीज आज ही के दिन पड़ा था। दरअसल, 15 जून 1947 को कांग्रेस ने अपने अधिवेशन में देश के बंटवारे को मंजूरी दी थी। दिल्ली में हुए इस अधिवेशन के बाद हमेशा एक परिवार और भाइयों की तरह रहने वाले लोग दो मुल्कों में बंट गए। इस कदम से ना केवल एक मुल्क बंटा, बल्कि रिश्ते और भावनाएं भी बंट गई।
अंग्रेजों ने दिया कभी न भरने वाला जख्म
बंटवारे का प्रस्ताव तत्कालीन गवर्नर जनरल माउंटबेटन ने दिया था। कांग्रेस अधिवेशन में मंजूरी मिलने की बाद इस अंग्रेजी योजना को ब्रिटिश पार्लियामेंट ने भी 18 जुलाई को पास कर दिया। इसके बाद 15 अगस्त की तारीख बंटवारे के लिये तह हुई और अंग्रेजों ने भारत को कभी न भरने वाला जख्म दे दिया।अंग्रेजों की योजना के तहत ही भारत और पाकिस्तान में नफरत का बीज इस बंटवारे से बोया गया था। बंटवारे के बाद किसी को अपना महल तो किसी को अपना घर छोड़कर दूसरे मुल्क आना पड़ा।
इस दौरान पाकिस्तान में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा भी छिड़ गई। हिंदुओं को कल्मा पढ़ने को कहा गया और ऐसा न करने पर कत्ल कर दिया जाने लगा। यहां तक कि हिन्दू औरतों की आबरू लूटी जाने लगी और इससे बचने के लिए कुछ औरतों ने खुद को आग के हवाले कर लिया। वहीं, कुछ के माता-पिता ने बेटी की आबरू लुटने से बचाने के लिए खुद ही उसका गला घोंट मौत के घाट उतार दिया।
अंग्रेजी हुकूमत में भारत के गवर्नर जनरल रहे वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन (Lord Mountbatten) ने 3 जून 1947 को ही भारत को दो हिस्सों में बांटने का एलान कर दिया था. यही नहीं, उन्होंने रियासतों को स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया, जिसके चलते कश्मीर की समस्या पनपी. माउंटबेटन ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं से लंबी चली बात के बाद भारत के विभाजन के घोषणा की थी. मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग कर रहे थे.
ऐसे पड़ गई थी विभाजन की नींव
इतिहासकार बताते हैं कि भारत की विभाजन की पटकथा की शुरुआत 1929 में तब शुरू हो गई थी जब मोतीलाल नेहरू समिति की सिफारिशों को हिंदू महासभा ने मानने से इनकार कर दिया था. दअसल, इस समिति ने अन्य सिफारिशों के अलावा, सेंट्रल असेम्बली में मुसलमानों के लिए 33 फीसदी सीटों को आरक्षित करने की सिफारिश की थी. हिंदू महासभा इससे सहमत नहीं थी. मोहम्मद अली जिन्ना मुसलमानों के प्रवक्ता बन गए और कई मुस्लिम नेता थे जो बंटवारे के पक्ष में नहीं थे. मौलाना आजाद और खान अब्दुल गफ्फार खान इमारत-ए-शरिया के मौलाना सज्जाद, मौलाना हाफिज-उर-रहमान, तुफैल अहमद मंगलौरी जैसे कई और लोग थे जिन्होंने मुस्लिम लीग की विभाजनकारी मानसिकता और राजनीति का विरोध किया था.
मुस्लिम लीग भारत के बहुसंख्यकों पर बर्चस्व का महौल बनाने का आरोप लगाती रही और अल्पसंख्यकों को असुरक्षित बताती रही. इसके पीछे कांग्रेस में शामिल हिंदू समर्थक और हिंदू महासभा के नेताओं द्वारा भारत माता की जय, मातृभाषा और गौमाता को लेकर नारेबाजी को भी कारण बताया गया.
1932 में गांधी-अंबेडकर समझौता हुआ, जिसे पुणे पैक्ट भी कहा जाता है. इसमें हरिजनों के लिए सीटें आरक्षित करने की बात थी. इसकी वजह से सवर्णों के अलावा मुसलमानों की भी बेचैनी बढ़ गई थी. उधर बंगाल में हिंदू-मुस्लिमों का संघर्ष बढ़ता गया जो देश के विभाजन की एक और कारण पैदा करने लगा था. बंगाल में हिंदू-मुस्लिम टकराव की नींव तो अंग्रेजों ने ही रख दी जब 1905 में राज्य का विभाजन धर्म के आधार पर किया गया था.
इतिहासकारों ने क्या लिखा
एक इतिहासकार जोया चटर्जी ने लिखा हैं, “पूर्वी बंगाल में फजल-उल-हक की ‘कृषि प्रजा पार्टी’ का असर बढ़ा और पूना पैक्ट के बाद ‘हरिजनों’ के लिए सीटें आरक्षित हुईं जिसका असर यह हुआ कि सवर्ण हिंदुओं का वर्चस्व घटने लगा, इसकी उन्होंने कल्पना नहीं की थी. इसका नतीजा ये हुआ है कि बंगाल के भद्रजन ब्रिटिश विरोध के बदले, मुसलमान विरोधी रुख अख्तियार करने लगे.”
एक अंग्रेज लेखक विलियम गोल्ड ने लिखा है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेता पुरुषोत्तम दास टंडन, संपूर्णानंद और गोविंद बल्लभ पंत का झुकाव हिंदूवाद की ओर था जिसकी वजह से मुसलमान अलग-थलग महसूस कर रहे थे. कई इतिहासकारों के मुताबिक, 1937 में कांग्रेस के नेतृत्व में जब सरकार बनी तो हिंदू और मुस्लिम दोनों ओर लोगो सत्ता के बड़े हिस्से को कब्जाने के लिए सक्रिय हो गए. इसकी वजह से दोनों संप्रदायों में संबंध कड़वे होते चले गए. 1940 में मुसलमानों का कांग्रेस से मोहभंग हो गया क्योंकि वे अलग-थलग महसूस कर रहे थे. इसका फायदा उठाने में जिन्ना ने कोई कसर नहीं छोड़ी. इन्हीं नाजुक हालात में जिन्ना ने अपनी राजनीति चमकाई.
अंग्रेज हिंदू-मुस्लिम टकराव की आग को हवा देते रहे. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के चलते कांग्रेस लगभग सभी बड़े नेता जब जेल में डाल दिए गए तो मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा के सत्ता लोलुप तत्वों को और सक्रिय होने का मौका मिल गया.
डिकी बर्ड प्लान जब ब्रिटिश संसद में हुआ पास
तीन जून 1947 को माउंटवेटन ने भारत के बंटवारे की प्लान पेश किया. 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद में माउंटवेटन के प्लान को पारित कर दिया. माउंटवेटन के भारत के बंटवारे के प्लान को ‘डिकी बर्ड प्लान’ के तौर पर भी जाना जाता है. माउंटवेटन का कहना था कि भारत की राजनीतिक समस्या का हल करने के लिए आखिरी विकल्प विभाजन ही है.
इस आदमी ने खींच दी थी सीमा रेखा
जमीन को बांटने के लिए ब्रिटेन से अचानक सिरील रेडक्लिफ नाम के अंग्रेज को बुलाया गया. यह शख्स पहले कभी भारत नहीं आया था. कहा जाता है कि इस शख्स को भारत की संस्कृति, पृष्ठभूमि और लोगों के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी. यहां तक की उसे यह भी पता नहीं था कि पंजाब कहां है और बंगाल कहां है. रेडक्लिफ ने भारत और पाकिस्तान की सीमा रेखा खींच दी. 17 अगस्त 1947 को भारत-पाकिस्तान की विभाजन रेखा यानी सीमा का नाम रेडक्लिफ लाइन पड़ गया.
सवा करोड़ लोग हो गए थे विस्थापित
विभाजन के बाद लाखों लोग अपने ही देश में शरणार्थी बन गए थे. करीब सवा करोड़ लोगों को अपनी जगह छोड़ विस्थापित होना पड़ा था. इस दौरान व्यापक स्तर पर सांप्रदायिक दंगे हुए, जिनमें मरने वालों की संख्या की गिनती नहीं थी. हालांकि, छिटपुट दंगे आजादी की घोषणा से पहले से होने लगे थे. विभाजन के बाद लाखों लोग पैदल और बैलगाड़ियों के सहारे अपने पुर्खों की जमीन छोड़ पलायन करने को मजबूर हुए तो वहीं रेलगाड़ियों की छतों तक पर भी पैर रखने की जगह नहीं बची थी.
पलायन के दौरान के कई घर तबाह हो गए. दंगों में उनके अपने मारे गए थे. आजादी के बाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तो पाकिस्तान के लियाकत अली खान बने थे. पाकिस्तान बनने के 13 महीने बाद मोहम्मद अली जिन्ना की मौत हो गई थी. पाकिस्तान 14 अगस्त की रात 12 बजे भारत से अलग हो गया था. पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस भी 14 अगस्त को मनाया जाता है लेकिन हर साल रेडियो पाकिस्तान के जरिये जिन्ना की आवाज में पहला बधाई संदेश सुनाया जाता है, जिसमें वो कह रहे होते हैं 15 अगस्त की आजाद सुबह पूरे राष्ट्र को मुबारक हो.