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धनुष यज्ञ देखकर भावविह्वल हुए दर्शक - श्रीनारद मीडिया

धनुष यज्ञ देखकर भावविह्वल हुए दर्शक

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श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):

राजा जनक महान ज्ञानी हैं ।श्रीमद्भागवत गीता जी मे उपदेश करते समय भगवान कृष्ण को जनक महाराज याद आते हैं। प्रभु ने किसी दूसरे का नाम नहीं लिया, श्रीकृष्ण ने जनक का दृष्टांत दिया। राजा जनक की पदवी थी विदेह। जनक देह में होते हुए जिसको देह धर्म यानी इन्द्रियों की कामना न सतावे, स्पर्श न करे, देह में होने पर भी देह से अलग रहे। उसको विदेह अथवा जीवन मुक्त कहते हैं।

उक्त बातें प्रसिद्ध श्रीराम कथा वाचक डॉ रमाशंकर नाथ दास जी महाराज नें कही।श्री महाराज प्रखंड के गिरधरपुर गांव में चल रहे श्रीराम कथा ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन श्रद्धालुओं को कथा का रसपान करा रहे थे।श्री महाराज नें आगे कहा कि प्रारब्ध के अनुसार देह तो प्राप्त हुई है ,परन्तु जो जीवन मुक्त है वह नया प्रारब्ध खड़ा नही होने देता । वह संकल्प विकल्प रहित होता है ।प्रारब्ध कर्म से प्राप्त वासना के कारण वह संसारियों की तरह संसार के भोग भोगता हुआ देखा जाता है। लेकिन वह जानता है कि आत्मा और शरीर अलग अलग हैं ।

शरीर का धर्म अलग है आत्मा निर्लेप है। आत्मा मन का द्रष्टा हैं, साक्षी हैं । ज्ञानी पुरुष आत्म स्वरूप में स्थित हैं। उन्होंने कहा कि जब राम और लखन गए तो विश्वामित्र ने उनसे कहा कि तुम परीक्षा करके देखो राजन ये ये कौन हैं तब जनक राजा एक तक श्रीराम लखन को निहारने लगे ।

चरण से मुखार विंद तक सर्वांग को सूक्ष्म रूप से देखकर जनक महराज को विश्वास हुवा की श्रीराम ऋषिकुमार नही राज कुमार नही कोई मानव नहीं कोई देव् नही स्वयं परमात्मा हैं ।मेरे मन आँखों का आकर्षण केवल परमात्मा ही कर सकते हैं । कोई सुन्दर स्त्री दिखे पुरुष दिखे जगत की कोई भी सुन्दर पदार्थ दिखे फिर भी मेरे मन मे जरा भी आकर्षण नही होता । मैं संसार मे रहता हूँ पर संसार की कामना प्रभु की कृपा से हमे सताती नहीं हैं ।

इसलिए श्रीराम अगर ईश्वर नही होते तो मेरे मन को इतना आकर्षित नहीं करते । जनक महराज का मन परमात्मा ने खिंच लिया जनक महराज सतत व्रह्म चिंतन करते हैं उन्हें मन के ऊपर विश्वास है कि मेरे मन का आकर्षण परमात्मा को छोड़ कर कोई कर ही नही सकता ।

मेरा मन पवित्र है। मैं संसार मे रहता हूँ, परन्तु मेरा मन संसार में नहीं है। महाराज जी ने कहा कि संसार में महापुरुष सदा सावधान रहते हैं कि बाहर का संसार अंदर नहीं आवे, मन मे प्रवेश न कर पावे। नाव जल में रहती है परंतु नाव में जल आ जाये तो डूब जाती है । इसी प्रकार संसार में में आ जाये तो तो मन को डूबा देता है ज्ञान भक्ति में विध्न कर देता है । संसार बाधक नहीं, संसार के विषयों का चिंतन बाधक है ।

विषयों के चिंतन से ही मन चंचल होता है । मन में रहने वाले संसार से ही मन जीवित है।मन में विषय न रहे,संसार न रहे तो मन शांत हो जाता है । वेद नेति नेति कहकर जिसका वर्णन करते हैं. भगवान शंकर जिस स्वरूप का नित्य ध्यान करते हैं वे परब्रह्म यही हैं। आज तक मैं निराकार व्रह्म का ध्यान करता था। वे निराकार ब्रह्म ही साकार रूप में श्रीराम पधारे हैं। श्रीराम ही परमात्मा हैं, यह जानकर राजा जनक को अतिशय आनन्द हुआ।

गुरु जी सहित राम लखन का यथा योग्य सेवा किया गया। तुलसीदासजी महराज कहते हैं कि कौशल देशवासी महा भाग्यशाली हैं उन में से जिस जिस ने श्रीराम का स्पर्श किया उनके साथ बाते की उनका अनुगमन किया अरे जिसने रामजी का केवल दर्शन किये वे सब उस परम धाम गए जहाँ बड़े बड़े योगी जाते हैं श्रीराम चरित्र का जो श्रवण करता है वह कर्म के बंधनों से मुक्त हो जाता है श्रीराम की शरणा गति प्राप्त हो जाती है ।

इस अवसर पर मटकोर कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें काफी संख्या में ग्रामीण महिलाओं ने मांगलिक गीतों के साथ मटकोर की विधि की। मौके पर विहिप के जिला सह मंत्री परमेश्वर कुशवाहा,डॉ सतेंद्र कुमार गिरी,उपेंद्र गिरी,अभय भारती, सुजीत कुमार डबलू,अमित कुमार सिंह,युवा कथा वाचक सुशील विनायक सूर्यवंशी आदि मौजूद रहे।

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