रमेश चंद्र के कहानी संग्रह ‘पारसमणि’ की कहानियां पाठकों को कर रही हैं भावविभोर
श्रीनारद मीडिया, सीवान(बिहार):
राज्य के चर्चित शिक्षाविद्,साहित्यकार और सुप्रसिद्ध कहानीकार रमेश चंद्र का ताजा कहानी संग्रह ‘पारसमणि’ आज उनकी अन्य कहानी संग्रहों की तरह साहित्य पटल पर धूम मचा रहा है। ‘पारसमणि’ शीर्षक ताजा कहानी-संग्रह की सत्रह कहानियां जनमानस की प्रतिबिंब परिलक्षित कर रही है। इन कहानियों में मौजूदा दौर के ऊबड़-खाबड़ विश्वसनीय यथार्थ के अनवरत संघर्ष और संवेदना निहित है। जिनमें युवा पीढ़ी की जीवन-शैली, जद्दोजहद और बार-बार की नाकामियों के बीच से फूटती कामयाबी की ललछौंही किरण जीने की सार्थकता एवं जूझने की शक्ति देती है।
संग्रह की अधिकांश कहानियों के कथानक गाँव के निचले तबके के अर्थाभाव में जीते पात्रों से लिये गए हैं, जो कथाकार की वैचारिक प्रतिबद्धता का द्योतक है। चाहे बेबसी में जीते कुम्हार हों या संगतराश-पात्रों की कला, जीतोड़ मेहनत और फटेहाली पाठकों के अंतर्मन में उद्वेलन पैदा करती है। सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं के चित्र भी अंतर्मंथन को विवश करते हैं।
विदित हो कि अच्छी कहानियाँ तभी बनती हैं, जब लेखक की कल्पना आकाश में उड़ान भरे,लेकिन उसकी निगाह जमीन पर टिकी हो।
कहानीकार रमेश चंद्र भीड़ में सबसे पीछे खड़े आदमी को खोजते हैं, उसकी पीड़ा, नैराश्य और संघर्ष को आत्मसात् करते हैं। अपनी नुकीली कलम की धार से पैरवी करके समाज के बहरे कानों तक उसकी अनसुनी गुहार पहुंचाते हैं। कथा संग्रह ‘पारसमणि’ की अधिकांश कहानियां संसाधन विहीन पात्रों की विषम परिस्थितियों से मुठभेड़ और विजय को दर्शाती हैं।
उनकी तमाम कहानियां गांव की पगडंडियों से निकलती है और जिंदगी के झंझवातों से टकराती है।लेकिन जिंदगी जब हारने वाली होती है तो कहानीकार की लेखनी उसे संभाल लेती है। इतना ही नहीं,उनकी लेखनी जिंदगी को रुकने और टूटने से रोकती है और मंजिल तक भी पहुंचाती है। यानी उनकी कहानियों के गांव-गंवई के संघर्षों से जूझते किरदार अंततः मंजिल को हासिल कर लेते हैं। कहानियां ऐसी कि पाठक उसी में डूबते-उतराते रहते है।
नायक भंवर में जाकर हिचकोले खाता है। लेकिन वह डूब नहीं पाता है और सकुशल साहिल को पा लेता है। तमाम कहानियां बीच में मन को उद्वेलित, आंदोलित, विचलित तो करती हैं। लेकिन अंत मे कहानी के साथ कहानी की धारा में बह रहा पाठक ऊहापोह से उबर कर प्रफ्फुलित हो जाता है। तमाम कहानियां पाठक को अंत-अंत तक बांधे रहती हैं।यही खासियत है।तभी तो गांधी मैदान, पटना के पुस्तक मेले में कभी ” रुकना नहीं राधिका” आउट ऑफ स्टॉक हो जाती है तो कभी सुधि पाठकों को “पारसमणि” के लिए भटकना पड़ता है।
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