आम चुनाव 1957 की कहानी, तब के पीठासीन अधिकारी की जुबानी

आम चुनाव 1957 की कहानी, तब के पीठासीन अधिकारी की जुबानी

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

जब पहली बार बूथ कैप्चरिंग का गवाह बना देश

1957 चुनाव में पहली बार संसद पहुंचे अटल

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सरदार गुरुचण सिंह 90 बसंत देख चुके हैं. 20 साल की उम्र में चंडीगढ़ से सिंदरी आए. फर्टिलाइजर कंपनी में फोरमैन थे. 1957 के दूसरे आम चुनाव में पीठासीन अधिकारी की भूमिका निभाई.कहते हैं कि तब से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है. पहले अधिकतर लोगों को अगले हफ्ते के मतदान का भी पता नहीं होता था. आम लोगों के लिए संचार का कोई साधन नहीं था. नेताओं से ही जनता को पता चलता था कि कब वोट डाले जाना है. प्रभात खबर संवाददाता से बातचीत में उन्होंने पहले और अब के चुनाव के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

जनता तक संदेश पहुंचाने के लिए नेताओं के पास होता था कम समय

गुरुचरण सिंह ने बताया कि उस वक्त के आम चुनाव में जनता तक नेताओं के संदेश पहुंचाने का एकमात्र जरिया सघन जनसंपर्क अभियान ही था. वोट से पहले अब उम्मीदवार को महीनों समय मिल रहा है, लेकिन पहले 10 दिन का समय काफी रहता था. चुनाव और उसके परिणाम आने में कई दिन लग जाते थे.

एक महीने पहले चुनाव की वजह से बाधित हो जाता था आवागमन

चुनाव प्रक्रिया संपन्न कराने के लिए एक महीने पहले से आवागमन बाधित हो जाती थी. इसके साथ ही जनता पर चुनाव खर्च का अतिरिक्त बोझ बढ़ जाता था. चुनाव कराने में भी बैलेट पेपर सहित कई मशीनों को सघन दूर स्थानों पर ले जाने और चुनाव कराकर सुरक्षित पहुंचाने तक की प्रक्रिया काफी बोझिल करने वाली थी.

अखबार और टेलीविजन से प्रत्याशियों को प्रचार में हुई सहूलियत

उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे चुनाव प्रचार में अखबार और उसके बाद टेलीविजन ने इस पर अपना कब्जा जमाया. चुनाव प्रचार में प्रत्याशियों को थोड़ी राहत मिली. परंतु इवीएम प्रक्रिया के आने से चुनाव कराने और उसे सुरक्षित पहुंचाने में आसानी हो गई. इसके साथ ही परिणाम जल्द आने लगे. उन्होंने कहा कि डिजिटल प्रक्रिया से देश का समय के साथ आर्थिक फायदा भी हुआ है.

60 के दशक में क्या थे प्रचार के साधन?

प्रचार-प्रसार के लिए आज के दिनों में उमीदवार को लाऊडस्पीकर के साथ वाहन से प्रचार करने की सुविधा मिल रही है, लेकिन 60 के दशक में एक-दूसरे के घर जाकर अपना चुनाव चिन्ह बता कर लोग मतदान के लिए लोगो को अपील करते थे ।

शांतपूर्ण चुनावों के लिए एनसीसी कैडेट की ली जाती थी मदद

अभी पूरे देश में जिला प्रशासन पुलिस बल ,सीआरपीएफ, आर्मी, बलों के प्रयोग से शान्ति पूर्ण चुनाव कराने का प्रयास कर रहा है. फिर भी कहीं न कहीं कुछ घटना घट जा रही है, उस समय शांतिपूर्ण चुनाव कराने के लिए एनसीसी कैडेटों की सेवा ली जाती थी.

जब पहली बार बूथ कैप्चरिंग का गवाह बना देश

पहली लोकसभा ने अपना कार्यकाल पूरा किया और 1957 में देश का दूसरा आम चुनाव हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने एक बार फिर प्रचंड जीत हासिल करते हुए सरकार बनाई। कांग्रेस ने कुल 494 सीटों में से 371 पर जीत का परचम लहराया। ये चुनाव कई मायनों में विशेष रहे। भारतीय जनता पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार संसद पहुंचे थे। पहली बार इसी साल बूथ कैप्चरिंग की घटना भी घटी।

साढ़े 3 महीने तक चली वोटिंग प्रक्रिया
दूसरा आम चुनाव 1957 में 24 फरवरी से 9 जून तक यानी करीब साढ़े 3 महीने तक चला। पहले आम चुनाव में सीटों की कुल संख्या 489 थी, जो दूसरे आम चुनाव में बढ़कर 494 कर दी गई थी। कुल रजिस्टर्ड वोटरों में 45.44 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया।

4 राष्ट्रीय दलों समेत 15 छोटे-बड़े दलों में मुकाबला
दूसरे आम चुनाव में 4 राष्ट्रीय दलों- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, भारतीय जन संघ (आगे चलकर वही बीजेपी बना) और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने हिस्सा लिया। इसके अलावा 11 राज्यस्तर की पार्टियों ने देश के अलग-अलग हिस्सों में अपने उम्मीदवार उतारे। इस बार भी बड़ी तादाद में निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव मैदान में ताल ठोकी।

दूसरे आम चुनाव में कुल 403 संसदीय सीटों से लोकसभा के कुल 494 सांसदों को चुना गया। 91 संसदीय क्षेत्र ऐसे थे, जहां से 2 सांसद चुने गए- एक सामान्य वर्ग का तो दूसरा एससी-एसटी समुदाय का। 312 संसदीय क्षेत्र इकलौते सांसद वाली रहीं। हालांकि, इसी आम चुनाव के बाद एक संसदीय क्षेत्र से 2 प्रतिनिधियों के चुने जाने के प्रावधान खत्म कर दिया गया।

पहली बार चुनाव में बूथ कैप्चरिंग
दूसरे आम चुनाव के दौरान ही देश पहली बार बूथ कैप्चरिंग जैसी घटना का गवाह बना। यह घटना बिहार के बेगूसराय जिले में रचियारी गांव में हुई थी। यहां के कछारी टोला बूथ पर स्थानीय लोगों ने कब्जा कर लिया। इसके बाद तो अगले तमाम चुनावों तक बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं आम हो गईं, खासकर बिहार में, जहां राजनीतिक पार्टियां इसके लिए माफिया तक का सहारा लेने लगीं।

सीपीआई दूसरे पायदान पर काफी पीछे रही, जिसे 27 सीटों पर जीत मिली और उसका वोटशेयर 8.92 प्रतिशत रहा। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी 19 सीटों (वोटशेयर 10.41 प्रतिशत) के साथ तीसरे पायदान पर रही। भारतीय जन संघ ने 4 सीटों पर जीत हासिल की और उसका वोटशेयर 5.97 प्रतिशत रहा। गैर-राष्ट्रीय दलों में गणतंत्र परिषद का प्रदर्शन भी काबिले गौर था, जिसका वोटशेयर तो 1.07 प्रतिशत ही था लेकिन उसके 7 उम्मीदवार संसद पहुंचे। इसी तरह झारखंड पार्टी और शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन ने 6-6 सीटों पर जीत हासिल की।

इसी चुनाव में पहली बार संसद पहुंचे अटल
1957 के लोकसभा चुनाव में ही अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार संसद पहुंचे। उन्होंने यूपी की बलरामपुर सीट से जीत हासिल की। आगे चलकर वह न सिर्फ देश के प्रधानमंत्री बने बल्कि पहले ऐसे गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने सफलतापूर्वक कार्यकाल पूरा किया।

Leave a Reply

error: Content is protected !!