Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
साहस और बलिदान को परिभाषित करती है 'प्रीतिलता वादेदार' की कहानी. - श्रीनारद मीडिया

साहस और बलिदान को परिभाषित करती है ‘प्रीतिलता वादेदार’ की कहानी.

साहस और बलिदान को परिभाषित करती है ‘प्रीतिलता वादेदार’ की कहानी.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अनेक स्वातंत्र्य वीरों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। संघर्ष की इस बेला में भारतीय महिलाओं ने भी पुरुष क्रांतिकारियों के कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया, किंतु यदि हम स्वतंत्रता संग्राम के शुरुआती दौर में महिलाओं के योगदान पर गौर करें तो उस समय महिलाओं की भूमिका ज्यादातर अप्रत्यक्ष थी अर्थात महिला क्रांतिकारी अन्य क्रांतिकारियों के मध्य संदेश पत्रों और हथियारों के वाहक के रूप में कार्य करती थीं या फिर क्रांतिकारियों को आश्रय देने का।

अहिंसक गतिविधियों में भी महिलाओं की कोई निर्णायक भूमिका नहीं थी। जब 10 अप्रैल, 1930 को गांधीजी ने भारत की महिलाओं से सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने का आह्वान किया, तब भारतीय इतिहास में पहली बार महिलाएं समाज, जाति और लैंगिकता की बेडिय़ां तोड़कर व्यापक रूप से राष्ट्रीय सेवा में सम्मिलित होने लगीं। वे सामूहिक रूप से विदेशी कपड़ों की होली जलाने, शराब की दुकानों पर धरना देने और अंग्रेजी शासन की कुत्सित नीतियों का विरोध करते हुए जेल जाने के लिए तैयार होने लगीं। इसी दौरान क्रांतिकारी गतिविधियों में भी महिलाओं की सक्रिय व प्रत्यक्ष भागीदारी को बल मिला।

महिला क्रांतिकारी अब केवल संदेशवाहक के रूप में कार्य नहीं कर रही थीं, वे भी पुरुष क्रांतिकारियों की तरह गुलामी, असमानता और शोषण के प्रतीक अंग्रेजी सत्ता का जवाब गोलियों और बंदूकों से देने लगी थीं।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की इसी कड़ी में हम आज याद करेंगे ऐसी एक वीरांगना को जिन्हें अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने वाली पहली बंगाली महिला होने का गौरव प्राप्त है। उन्होंने मात्र 21 वर्ष की आयु में अपने प्राणों को न्यौछावर कर असमानता के प्रतीक यूरोपियन क्लब पर धावा बोलकर अंग्रेजों के होश फाख्ता कर दिए।

पूर्वी भारत (वर्तमान बांग्लादेश) में एक गांव है चटगांव। इसी गांव में पांच मई 1911 को पिता जगत बंधु और माता प्रतिभामयी के घर एक कन्या का जन्म हुआ, नाम रखा गया प्रीतिलता वादेदार। वह अपने पिता की दूसरी संतान थी। पिता जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय में बड़े बाबू थे और मां महिला जागरण में काम करती थीं। प्रीतिलता बचपन से ही बहुत प्रतिभाशाली थीं। बारहवीं कक्षा में वह पूरे ढाका कालेज में प्रथम स्थान पर रहीं। उन्होंने कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के बेथुन कालेज से स्नातक किया, किंतु अंग्रेज अधिकारियों ने उनकी डिग्री पर रोक लगा दी। आजादी के 65 वर्ष बाद साल 2012 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम. के. नारायणन की पहल पर प्रीतिलता की डिग्री रिलीज की गई।

प्रीतिलता के अंदर क्रांति के बीज स्कूली जीवन के दौरान ही प्रस्फुटित होने लगे थे। दरअसल स्कूली जीवन के दौरान वह बालचर संस्था की सदस्य बन गईं। जिसमें सेवाभाव व अनुशासन का पाठ पढ़ाते हुए ब्रिटिश सम्राट के प्रति आस्था और कर्तव्यनिष्ठ की शिक्षा दी जाती थी, प्रीतिलता के बाल मन में कहीं न कहीं यह बात अखरने लगी थी। धीरे-धीरे वह क्रांतिकारी मास्टर सूर्य सेन के संपर्क में आईं, जो ïवर्ष 1930 में हुए चटगांव शस्त्रागार कांड के नेता थे। प्रीतिलता वादेदार क्रांतिकारी सूर्य सेन से भेष बदलकर मिलने लगीं और चटगांव रिवाल्यूशनरी पार्टी की सक्रिय सदस्य बन गईं।

उन दिनों भारत सहित अन्य ब्रिटिश उपनिवेशों में अनेक यूरोपियन क्लब हुआ करते थे। जिनके बाहर एक तख्ती पर लिखा होता था डाग्स एंड इंडियंस आर नाट अलाउड अर्थात कुत्तों और भारतीयों का आना सख्त मना है यानी भारतीयों को अपने ही देश में हर जगह आने-जाने की आजादी नहीं थी।

अंग्रेज भारतीयों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करते थे। 23 सितंबर 1932 को मास्टर सूर्य सेन ने चटगांव के यूरोपियन क्लब पर हमले की योजना बनाई। इसके लिए सात क्रांतिकारियों को चुना गया और इनके नेतृत्व का दायित्व प्रीतिलता को दिया गया। उन्होंने यूरोपियन क्लब की खिड़की पर बम लगा दिया। बम फटने और पिस्तौल से गरजती गोलियों के कारण करीब 13 अंग्रेज जख्मी हो गए,

जबकि बाकी वहां से भाग गए। जवाबी फायरिंग में एक गोली प्रीतिलता को भी लगी। उन्होंने साथी क्रांतिकारियों को भागने का आदेश देते हुए स्वयं पोटेशियम साइनाइड खाकर बलिदान देने का निर्णय लिया। प्रीतिलता के बलिदान के बाद ब्रिटिश उपनिवेशवादियों को तलाशी के दौरान एक चिट्ठी मिली। इसमें लिखा था, चटगांव शस्त्रागार कांड के बाद जो रास्ता अपनाया जाएगा, वह भावी विद्रोह का प्राथमिक रूप होगा। यह संघर्ष भारत को पूरी स्वतंत्रता मिलने तक जारी रहेगा। इस प्रकार वीरांगना प्रीतिलता का संक्षिप्त, किंतु साहसी एवं गरिमामय जीवन समाप्त हुआ।

प्रीतिलता का जीवन हमें अनेक रूप से प्रेरित करता है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि साहसी चरित्र की भारतीय महिलाएं युद्ध के मैदान में भी पुरुषों से पीछे नहीं रहेंगी। उन्होंने चिट्ठी में स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी को प्रेरित करते हुए लिखा- आज महिलाओं ने एक दृढ़ संकल्प लिया है कि वे पृष्ठभूमि में नहीं रहेंगी… मुझे पूर्ण विश्वास है कि हमारी बहनें अब यह महसूस नहीं करेंगी कि वे कमजोर हैं… अपने दिल में यह आशा लिए मैं आत्म बलिदान के लिए आगे बढ़ रही हूं।

Leave a Reply

error: Content is protected !!