सर्वोच्च न्यायालय ने विधायकों की त्वरित जाँच के लिये विशेष न्यायालय की स्थापना हेतु सुझाव दिया है,क्यों?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 सर्वोच्च न्यायालय ने विधायकों की त्वरित जाँच के लिये विशेष न्यायालय की स्थापना हेतु राज्य-विशिष्ट दृष्टिकोण का सुझाव दिया है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “वन-साइज़-फिट्स-ऑल” दृष्टिकोण सांसदों और विधायकों से जुड़े आपराधिक मामलों की लंबित समस्या को हल नहीं कर सकता है क्योंकि प्रत्येक राज्य में वादों की संख्या अलग-अलग है।

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि सांसदों के लंबे समय से लंबित मुकदमों को तेज़ी से ट्रैक करने के लिये देश भर में विशेष अदालतें स्थापित की जाएँ।
    • इसके बाद 11 राज्यों में विशेष रूप से मौजूदा सांसदों और विधायकों की सुनवाई के लिये 12 विशेष न्यायालय स्थापित किये गए।
  • सितंबर 2020 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एमिकस क्यूरी (न्यायालय का मित्र) ने अपनी दो रिपोर्टों में इस बात पर प्रकाश डाला कि विधायकों के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिये न्यायालय द्वारा विशेष न्यायालयों का गठन करने के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद मौजूदा 2,556 संसद (सांसद) और विधान सभाओं के (विधायक) सदस्यों से जुड़े 4,442 आपराधिक मामले लंबित हैं।
    • इन मामलों की संख्या अब 5,000 का आँकड़ा पार कर चुकी है, जिनमें से 400 जघन्य अपराधों से संबंधित हैं।

विशेष न्यायालय:

  • परिचय:
    • विशेष न्यायालय एक सीमित क्षेत्राधिकार वाला न्यायालय है जो किसी विशेष क्षेत्रीय वार्ड के बजाय कानून के एक निश्चित क्षेत्र से संबंधित होता है। भारत में इन न्यायालयों की स्थापना विशेष न्यायालय अधिनियम, 1979 के तहत की गई है।
    • भारत में विशिष्ट प्रकार के मामलों से निपटने हेतु विभिन्न विशेष न्यायालयों की स्थापना की गई है। ये न्यायालय त्वरित न्याय प्रदान करने और कुछ प्रकार के मामलों से जुड़ी अद्वितीय कानूनी चुनौतियों का समाधान करने के लिये स्थापित किये गए हैं।
  • क्षेत्राधिकार:
    • विशेष क्षेत्राधिकार कुछ प्रकार के मामलों पर न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र है, जैसे दिवालियापन, सरकार के खिलाफ दावे, प्रमाणित वसीयत, पारिवारिक मामले, आप्रवासन और सीमा शुल्क या अधिकतम राशि या मूल्य वाले मामलों में न्यायालयों के अधिकार पर सीमाएँ। विशेष क्षेत्राधिकार को सीमित क्षेत्राधिकार के रूप में भी जाना जाता है।
      • विशेष न्यायालय बहुत ही सीमित क्षेत्राधिकार के तहत मामलों की सुनवाई करता है और इसके न्यायाधीश एक विशिष्ट अवधि के लिये ही कार्य करते हैं, जबकि संवैधानिक न्यायालय का मुख्य अधिकार यह तय करना है कि जिन कानूनों को चुनौती दी गई है, क्या वे असंवैधानिक हैं, उदाहरण के लिये संवैधानिक अधिकारों और स्वतंत्रता के साथ विरोधाभाषी हैं।

अन्य संबंधित पहलें:

  • POCSO मामलों के लिये विशेष न्यायालय
  • फास्ट ट्रैक कोर्ट के लिये योजना
  • ई-न्यायालय एकीकृत मिशन मोड परियोजना

आगे की राह

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