स्वबोध के जागरण का प्रयास ही स्वामी विवेकानंद को सच्ची श्रद्धांजलि
स्वामी विवेकानंद की जयंती सह राष्ट्रीय युवा दिवस पर विशेष आलेख
✍️डॉक्टर गणेश दत्त पाठक
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत की सांस्कृतिक प्रतिष्ठा को विश्व स्तर पर प्रकाशित करने वाले, फिरंगी हुकूमत के दौरान आम भारतीयों में आत्मविश्वास के भाव को प्रबल स्तर पर जागृत करने वाले महान आध्यात्मिक चिंतक स्वामी विवेकानंद की जयंती पर हम सभी श्रद्धा सुमन अवश्य अर्पित करते रहे हैं लेकिन उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि क्या हो सकती है? यह एक बड़ा सवाल अवश्य है।
स्वामी विवेकानंद ने स्वबोध के जागरण पर विशेष बल दिया था। अतएव मेरा मानना है कि यदि प्रत्येक व्यक्ति स्वबोध के जागरण का प्रयास करता है तो यह उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है। कभी नोबेल पुरस्कार विजेता रबिंद्र नाथ टैगोर ने कहा था कि यदि भारत को समझना हो तो सबसे पहले आप स्वामी विवेकानंद जी के व्यक्तित्व को समझने का प्रयास करें।
आज के दौर में जब हमारे युवा प्रतिस्पर्धा जनित तनाव में आ रहे हैं। कुछ युवा तो आत्महत्या तक कर ले रहे हैं ऐसे सामाजिक संदर्भ में स्वबोध की संकल्पना और स्वामी विवेकानंद के स्वबोध संबंधी विचार का प्रसार एक अनिवार्य तथ्य हो जाता है। यदि आज की हमारी युवा पीढ़ी स्वबोध के तत्व को समझती है और उसे अपने जीवन में अंगीकार करती है तो हमारे राष्ट्र में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता है।
स्वबोध एक ऐसा तथ्य है, जिसे जानते हम सभी है लेकिन समझने का प्रयास बहुत कम ही लोग करते हैं। स्वबोध का सामान्य आशय स्वयं को समझने से होता है यानी हमें अपना आत्म मूल्यांकन करते हुए यह जानना होता है कि हमारे व्यक्तित्व का मजबूत पक्ष क्या है? हमारी कमजोरियां क्या हैं? हमारी चुनौतियां क्या है? हमारे सामने उपलब्ध अवसर क्या हैं? जब हम इन तथ्यों पर गौर करते हैं तो हम अपने व्यक्तित्व को समझ पाते हैं।
यह आत्म मूल्यांकन ही हमारे अंदर प्रबल आत्मविश्वास की ऊर्जा को सृजित करता है। इसी आत्ममूल्यांकन के आधार पर आत्म निर्णय पर पहुंचते हैं । इस क्रम में सृजित निर्णय बेहद तार्किक और व्यावहारिक होता है। समय समय पर स्वबोध का एक अन्य आयाम आत्मनिरीक्षण यानी आत्म परीक्षण हमें अपने व्यक्तित्व के मूल्यांकन का सुअवसर प्रदान करता है। जिससे हमारे भटकने की आशंकाएं न्यूनतम हो जाया करती है। स्वबोध का सबसे सकारात्मक पहलू यह होता है कि जब हम अपने को समझते हैं तो समानुभूति और सहानुभूति की भावना हमारे व्यक्तित्व में समाहित होती है।
ऐसा होने पर हमारे सामाजिक संबंध बेहतर तरीके से सृजित होते हैं जिससे सामुदायिकता के अविरल प्रवाह की संभावनाएं भी सृजित होती है। साथ ही, हमारा मानस भी बेहद सुकून में रहता है जिसके स्वबोध का जागरण हो चुका है उसके तनाव में आने की संभावनाएं बेहद कम होती है। आज का चिकित्सा जगत अपने अनवरत शोधों के माध्यम से इस निष्कर्ष पर पहुंच गया है कि अधिकांश व्याधियां तनाव के कारण ही सृजित होती है। ऐसे में स्वबोध के महत्व को समझना बेहद आवश्यक हो जाता है।
स्वामी विवेकानंद जब यह कहते हैं कि आत्मा की आवाज सुनो और उसके अनुसार चलों। तुम्हारे भीतर भी एक शक्ति है जो तुम्हें सब कुछ प्रदान करने की क्षमता प्रदान करती है। उनका सीधा संदेश व्यक्ति को अपने स्वबोध के जागरण की तरफ ही संकेत करता है। यह संदेश उन्होंने उस समय दिया था जब फिरंगी हुकूमत के दौर में भारत की पीड़ित मानवता हाहाकार कर रही थी। उस समय विदेशी शक्तियां भारतीयों के आत्मविश्वास पर कठोर प्रहार कर रहीं थी। भारतीय हीन भावना के शिकार हो चुके थे।
अपने सांस्कृतिक विरासत के महत्व को नहीं समझ पा रहे थे। देश की स्वतंत्रता के उपरांत भी भारत की सांस्कृतिक विशिष्टता को प्रतिष्ठा दिलाने के सार्थक प्रयास नहीं किए गए, जो स्वामी विवेकानंद 1893 में शिकागो के विश्व धर्म संसद में कर चुके थे। स्वामी विवेकानंद फिरंगी हुकूमत के दौर में हुंकार भरते दिखते हैं कि उठो जागो और जब तक ध्येय की प्राप्ति न हो जाए तब तक रुको नहीं।
स्वामी विवेकानंद ने आजीवन इस बात पर विशेष बल दिया कि साहस ही जीवन का आधार है और आत्मविश्वास ही सफलता की गारंटी। उन्होंने बार बार कहा कि तुम्हारे लक्ष्य को पार करने के लिए तुम्हें अपने आप पर विश्वास करना चाहिए। स्वामी विवेकानंद का संपूर्ण विचार ही आत्मविश्वास को विशेष तौर पर प्रतिष्ठित करता है। यह आत्मविश्वास ही स्वबोध का महत्वपूर्ण आयाम है। इसी आत्मविश्वास की ऊर्जा से विभूषित नई पीढ़ी कमाल दिखा सकती है।
आज की सबसे बड़ी समस्या युवाओं में तनाव की है। कभी परीक्षा को लेकर तनाव, कभी नौकरी को लेकर तनाव, कभी कैरियर को लेकर तनाव, कभी पारिवारिक रिश्तों को लेकर तनाव। तनाव इसलिए हो रहा है कि कभी वे स्वबोध के जागरण का प्रयास नहीं करते। न शिक्षण संस्थाओं में कभी इस बात पर चर्चा हो पाती है न कभी पारिवारिक संवाद के दौरान। वैसे भी आज के दौर में मोबाइल, इंटरनेट के कारण पारिवारिक संवाद में बेहद कमी आती जा रही है। जिसके दुष्परिणाम अभी हमें भविष्य में देखने को मिल सकते हैं। गूगल पर स्वबोध के बारे में बहुत सारी सामग्री उपलब्ध है लेकिन उसे जानने का प्रयास हम क्यों करें? यह एक बड़ा सवाल अवश्य हो जाता है।
स्वबोध के जागरण के महत्व को हम सभी को समझना चाहिए। स्वबोध के जागरण के क्रम में अपने व्यक्तित्व की खूबियों, खामियों का परीक्षण करते हैं। ऐसा करने के क्रम में हमारे अंदर एक प्रबल आत्मविश्वास जागृत होता है, जिससे हम जो भी करते हैं उत्साह और साहस के साथ करते हैं। यह एक तथ्य है कि आज का दौर प्रतिस्पर्धा का है। प्रतिवर्ष प्रतिस्पर्धा में सिर्फ़ मात्रात्मक ही नहीं अपितु गुणात्मक वृद्धि भी हो रही है। इस कारण हमारे युवा तनाव की गिरफ्त में आ रहे हैं। ऐसा होने के कारण उनके आत्मविश्वास पर सर्वाधिक नकारात्मक असर पड़ रहा है।
इसके कारण एक प्रतिभा जिसे सफलता के मार्ग पर जाना था वह दिग्भ्रमित होकर अवसाद के गोद में जा बैठती है। तनाव सिर्फ मानसिक ही नहीं शारीरिक आरोग्य पर भी नकारात्मक असर डालती है। तनाव के कारण शरीर कई व्याधियों के गिरफ्त में भी आ जाता है। मोबाइल के दौर में जब शारीरिक सक्रियता में वैसे भी कमी आती जा रही है। कई सर्वेक्षणों में यह बात सामने आ चुकी है कि हमारे युवाओं का स्क्रीन टाइम व्यक्तिगत स्तर पर औसतन चार घंटे से ज्यादा तक पहुंच चुका है।
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार इस समस्या पर चिंता जता चुके हैं। ऐसे में जब शारीरिक सक्रियता घट रही है उस क्रम में तनाव का बढ़ना हमारी युवा पीढ़ी के लिए एक बड़े संकट का कारण बन सकता है। ऐसे में स्वबोध का जागरण हर स्तर पर अनिवार्य है। आज की उपभोक्तावादी संस्कृति के दौर में स्वबोध ही हमारे सांस्कृतिक प्रतिष्ठा और संस्कारों के महत्व को समझा जा सकता है।
स्वामी विवेकानंद की जब भी हम जयंती या पुण्यतिथि मनाएं तो हमें यह संकल्प अवश्य लेना चाहिए कि हम स्वबोध के जागरण के लिए सतत प्रयास करेंगे। अपने परिवारजन और परिचितों को भी स्वबोध जागरण के महत्व से परिचित कराएंगे। यह स्वबोध के जागरण का प्रयास ही स्वामी विवेकानंद जैसे महान व्यक्तित्व को सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है।
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