देवी दुर्गा की पूजन अर्चन कर कलश विसर्जन किया गया
श्रीनारद मीडिया, उतम पाठक, दारौंदा, सीवान (बिहार):
सिवान जिला सहित दारौंदा प्रखण्ड सहित विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा नौ दिनों तक अलग अलग रूपों में की गई तथा दसवें दिन विजयादशमी को मंदिरों व पूजन पंडालों में विधि विधान से देवी दुर्गा की पूजन अर्चन कर कलश विसर्जन किया गया।
उसके बाद ब्राह्मणों ने यजमानों को जयंती दाएं कान पर रख आशीर्वाद दिए। विजयादशमी को समन्वित रूप में शक्ति और मर्यादा का प्रेरक पर्व माना जाता हैं।
विजयादशमी के दिन लोगों ने अपराजिता देवी व भगवान श्री राम की भी पूजा आराधना विधि विधान से की साथ ही शमी के पेड़ और शस्त्रों की भी पूजा की।
विजयादशमी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष दशमी को तारा उदय होने के समय विजय नाम का मुहूर्त होता है,जो सब कार्यों को सिद्धि प्रदान करता हैं।
इसीलिए इसका नाम विजयादशमी रखा गया।
विजयादशमी को समन्वित रूप में शक्ति और मर्यादा का प्रेरक पर्व माना जाता हैं।
भगवान राम की विजय और शक्ति साधना की पूर्ण होने की तिथि एक ही हैं।
भगवान राम ने शक्ति की देवी मां दुर्गा की आराधना की थी जिसके आशीर्वाद के कारण दशहरे के दिन ही लंका के राजा रावण का वध किया था और इसी दिन ही मां दुर्गा ने अपने युद्ध के दसवें दिन राक्षस महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी।
इसीलिए इस दिन को “विजयदशमी” के नाम से जाना जाता हैं। उसी समय से दशहरे पर शक्ति एवं शस्त्र की पूजा का विधान है।
दशहरे के दिन किसी भी नए काम की या किसी नए व्यापार की शुरुआत करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता हैं। ऐसा माना जाता हैं कि इस दिन जो कार्य शुरू किया जाता है। उसमें विजय अवश्य प्राप्त होती हैं। इस दिन नीलकंठ के दर्शन को भी शुभ माना गया हैं।
दशहरा असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है। काम,क्रोध, मद, लोभ तथा अहंकार आदि अवगुणों के साक्षात हरण के कारण ही इस पर्व को दशहरा कहा जाता हैं।
यह पर्व अपने अंदर के क्रोध, ईर्ष्या, लालच, अमानवीयता एवं अहंकार को नष्ट करने का भी संदेश देता हैं।
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