कल्याण से कल्याण की ओर आगे बढ़ने की राह चर्चा में है।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
शोध से पता चला है कि महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS) एक विश्वसनीय सामाजिक सुरक्षा जाल के रूप में कार्य करती है जो ग्रामीण परिवारों के आर्थिक संकट को संबोधित करने में अहम भूमिका निभाती है।
अर्थशास्त्रियों की आलोचना और ग्रामीण श्रम बाज़ारों को विकृत करने की आशंकाओं के बावजूद, मनरेगा एक अस्थिरताकारी शक्ति होने के बजाय एक स्वचालित स्थिरताकारी शक्ति सिद्ध हुई है।
इस शोध ने आलोचकों को भारत की सबसे कमज़ोर या संवेदनशील आबादी के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालने वाली कल्याणकारी योजनाओं की परिवर्तनकारी क्षमता को चिह्नित करने के लिये प्रेरित किया है।
कल्याणकारी योजनाएँ क्या हैं?
- परिचय:
- कल्याणकारी योजनाएँ (Welfare Schemes) ऐसे सरकारी कार्यक्रमों या पहलों को संदर्भित करती हैं जो आर्थिक, सामाजिक या स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे व्यक्तियों या समूहों को वित्तीय, सामाजिक या अन्य प्रकार की सहायता प्रदान करने के लिये डिज़ाइन की जाती हैं।
- इन योजनाओं का लक्ष्य नागरिकों की भलाई करना और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है, जहाँ प्रायः कमज़ोर या वंचित आबादी पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- भारत में लोक कल्याण:
- भारतीय संविधान के भाग IV के अनुरूप, जहाँ राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों को रेखांकित किया गया है, स्पष्ट है कि भारत एक ‘कल्याणकारी राज्य’ (welfare state) है।
- इसके लिये अस्पृश्यता, बेगार/बलात श्रम और ज़मींदारी जैसी प्रथाओं के उन्मूलन के लिये विभिन्न विधायी प्रयास किये गए हैं ।
- समय के साथ, सरकार ने उचित मूल्य की दुकानें स्थापित की हैं, जो समाज के आर्थिक रूप से वंचित और हाशिए पर रहने वाले वर्गों को लाभ पहुँचाने के लिये सस्ती दरों पर आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराती हैं।
- सरकारी नौकरियों, शैक्षिक संस्थानों, लोक सभा, विधान सभा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिये सीटें आरक्षित करने के उपाय लागू किये गए हैं।
भारत में केंद्र और राज्यों द्वारा शुरू की गई प्रमुख कल्याणकारी योजनाएँ:
भारत में सामाजिक क्षेत्र व्यय रुझान:
भारत में कल्याणकारी योजनाओं के पक्ष में कौन-से तर्क हैं?
- निर्धनता उपशमन:
- कल्याणकारी योजनाओं का उद्देश्य ज़रूरतमंद लोगों को वित्तीय सहायता, रोज़गार के अवसर और आवश्यक सेवाएँ प्रदान कर गरीबी को कम करना है।
- कल्याणकारी योजनाएँ गरीबी या असुरक्षा का उन्मूलन नहीं करती हैं बल्कि उन्हें काफी हद तक कम कर देती हैं ताकि इन योजनाओं का लाभ उठाने वाला व्यक्ति सम्मान का जीवन जी सके और चरम भुखमरी एवं गरीबी से बच सके।
- सामाजिक समता:
- कल्याणकारी योजनाएँ वंचित समूहों को लक्षित सहायता प्रदान करती हैं, वे आर्थिक और सामाजिक असमानताओं को कम करने की दिशा में कार्य करती हैं।
- आरक्षण नीतियाँ और लक्षित कल्याण पहल ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर स्थित समूहों को सशक्त बनाती हैं, उन्हें शिक्षा, रोज़गार और राजनीतिक भागीदारी के अवसर प्रदान करती हैं।
- मानव विकास:
- कल्याण कार्यक्रम प्रायः शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो जनसंख्या के समग्र मानव विकास में योगदान करते हैं।
- स्वास्थ्य-केंद्रित कल्याण योजनाएँ चिकित्सा सुविधाओं, टीकाकरण और निवारक स्वास्थ्य देखभाल उपायों तक पहुँच प्रदान कर सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणामों को उन्नत बनाती हैं।
- शिक्षा और कौशल विकास में निवेश के रूप में कल्याणकारी योजनाएँ कार्यबल की उत्पादकता की वृद्धि में योगदान करती हैं, जिससे समग्र अर्थव्यवस्था को लाभ प्राप्त होता है।
- राजनीतिक स्थिरता:
- सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों को संबोधित करने के रूप में कल्याणकारी योजनाएँ सामाजिक स्थिरता एवं सद्भाव में योगदान करती हैं, जिससे अशांति और सामाजिक असंतोष की संभावना कम हो जाती है।
- कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से आबादी की सामाजिक-आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने से शिकायतों को दूर करने और समावेशिता की भावना को बढ़ावा देने के रूप में राजनीतिक स्थिरता में योगदान दिया जा सकता है।
- संकट प्रबंधन:
- कल्याणकारी योजनाएँ आर्थिक मंदी, प्राकृतिक आपदाओं या अन्य संकटों के दौरान सुरक्षा जाल के रूप में कार्य करती हैं, जिससे प्रभावित व्यक्तियों और समुदायों को राहत एवं सहायता प्राप्त होती है।
भारत में कल्याणकारी योजना के विरुद्ध कौन-से तर्क हैं?
- कल्याणकारी योजना बनाम मुफ्त सुविधाओं या फ्रीबीज़ पर बहस:
- फ्रीबीज़ (Freebies) और कल्याणकारी योजनाओं के बीच अंतर हमेशा स्पष्ट नहीं होता है, लेकिन उनमें अंतर करने का एक सामान्य तरीका यह है कि लाभार्थियों और समाज पर उनके दीर्घकालिक प्रभाव को देखा जाए। कल्याणकारी योजनाओं का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जबकि फ्रीबीज़ निर्भरता या विकृतियाँ पैदा कर सकते हैं।
- नीति आयोग की एक रिपोर्ट में आलोचना की गई है कि राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त फ्रीबीज़ (जैसे लैपटॉप आदि) स्कूल अवसंरचना, शिक्षकों की गुणवत्ता या लर्निंग आउटकम में सुधार जैसी अधिक आवश्यक आवश्यकताओं के लिये उपयोग हो सकने वाले धन को दूसरी दिशा में मोड़ते हैं।
- वित्तीय बोझ:
- व्यापक कल्याण कार्यक्रम सरकार पर उल्लेखनीय वित्तीय बोझ डाल सकते हैं, जिससे संभावित रूप से बजटीय बाधाएँ और राजकोषीय चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- कुछ लोगों का तर्क है कि कुछ कल्याणकारी कार्यक्रमों की दीर्घकालिक स्थिरता संदिग्ध होती है, विशेष रूप से यदि वे आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित किये बिना सरकारी सब्सिडी की स्थायी आवश्यकता उत्पन्न करते हैं।
- निर्भरता संस्कृति:
- कल्याण पर लंबे समय तक भरोसा बनाए रखना निर्भरता की संस्कृति (culture of dependency) को बढ़ावा दे सकती है और प्राप्तकर्ताओं के बीच आत्मनिर्भरता एवं व्यक्तिगत पहल को हतोत्साहित कर सकती है।
- विरोधियों का तर्क है कि अत्यधिक उदार कल्याण प्रावधान लोगों को सक्रिय रूप से रोज़गार की तलाश करने से हतोत्साहित कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से आबादी के भीतर कार्य नैतिकता (work ethic) नष्ट हो सकती है।
- भ्रष्टाचार और रिसाव:
- कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में भ्रष्टाचार और रिसाव/लीकेज को लेकर चिंताएँ मौजूद हैं, जहाँ लाभार्थियों के लिये लक्षित धनराशि का धोखापूर्ण तरीकों से दुरुपयोग किया जाता है।
- कुछ मामलों में, आलोचकों का तर्क है कि कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन एवं निगरानी में सीमित जवाबदेही मौजूद है, जिससे पारदर्शिता और निरीक्षण की कमी की स्थिति बनती है।
- अक्षमता और नौकरशाही की बाधाएँ:
- ऐसी चिंताएँ मौजूद हैं कि कल्याणकारी लाभ हमेशा इच्छित लाभार्थियों तक नहीं पहुँच पाते हैं, जिससे अप्रभावी लक्ष्यीकरण की स्थिति बनती है और जिन लोगों को वास्तव में सहायता की आवश्यकता होती है, वे छूट जाते हैं।
- ऐसी चिंताएँ भी मौजूद हैं कि नौकरशाही की अक्षमताएँ, लालफीताशाही और जटिल प्रक्रियाएँ कल्याण कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा बन सकती हैं, जिससे देरी एवं असमान वितरण की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
- बाज़ार की विकृतियाँ:
- कुछ लोगों का तर्क है कि कुछ कल्याणकारी उपाय, जैसे मूल्य नियंत्रण या सब्सिडी, बाज़ार तंत्र को विकृत कर सकते हैं और अर्थव्यवस्था के प्राकृतिक कार्यकरण में बाधा डाल सकते हैं।
- कुछ लोगों का तर्क है कि कुछ कल्याणकारी उपाय, यदि सावधानी से प्रबंधित नहीं किये जाएँ, तो अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त धन लाकर मुद्रास्फीति के दबाव में योगदान कर सकते हैं।
- राजनीतिक और सामाजिक प्रभाग:
- आलोचकों का सुझाव है कि राजनेता राजनीतिक लाभ के लिये कल्याणकारी योजनाओं का उपयोग कर सकते हैं, जहाँ वास्तविक विकासात्मक आवश्यकताओं के आधार पर उन्हें लागू करने के बजाय वोट सुरक्षित करने के लिये उनमें हेरफेर कर सकते हैं।
- कुछ लोगों का तर्क है कि कुछ आरक्षण नीतियाँ सामाजिक विभाजन पैदा कर सकती हैं और योग्यतातंत्र (meritocracy) में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों में असंतोष उत्पन्न हो सकता है।
- ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ के एक सर्वेक्षण से पता चला कि तमिलनाडु में 41% मतदाता मुफ्त सुविधाओं या फ्रीबीज़ को मतदान में एक महत्त्वपूर्ण कारक मानते थे।
कल्याण से भलाई/हित की ओर जाने के लिये क्या हो आगे की राह?
- कल्याण और फ्रीबीज़ के बीच अंतर करना:
- फ्रीबीज़ को आर्थिक दृष्टिकोण और करदाताओं के धन से जुड़ाव की दृष्टि से समझा जाना चाहिये।
- कल्याणकारी नीतियाँ साक्ष्य और डेटा पर आधारित होनी चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संसाधनों को वहीं निर्देशित किया जाए जहाँ उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
- समग्र विकास को प्राथमिकता देना:
- समग्र विकास को प्राथमिकता दिया जाए जो महज तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करने तक सीमित नहीं हो। दीर्घकालिक भलाई की नींव रखने के लिये नीतियों को शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, कौशल विकास और अवसंरचना पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- ऐसे कार्यक्रम डिज़ाइन करें जो व्यक्तियों को स्थायी आजीविका सुरक्षित करने के लिये आवश्यक कौशल और ज्ञान प्रदान कर सशक्त बनाते हैं।
- उद्यमिता और रोज़गार के अवसरों को प्रोत्साहित करना:
- उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करें और ऐसे वातावरण का निर्माण करें जो रोज़गार सृजन को सुविधाजनक बनाए।
- इसमें लघु एवं मध्यम उद्यमों का समर्थन करना, नवाचार को बढ़ावा देना और व्यापार-अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना शामिल है।
- सशक्त सामुदायिक भागीदारी:
- स्थानीय समुदायों को उनकी आवश्यकताओं की पहचान करने, समाधान प्रस्तावित करने और अपने स्वयं के विकास में सक्रिय रूप से योगदान करने के लिये सशक्त बनाया जाए।
- सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना। सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) जटिल चुनौतियों का अधिक प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिये संसाधनों, विशेषज्ञता और नवाचार को एक साथ ला सकती है।
- समावेशिता को बढ़ावा देना:
- कमज़ोर और हाशिए पर स्थित आबादी की आवश्यकताओं को संबोधित कर समावेशिता सुनिश्चित करें। समग्र भलाई/हित की राह में कोई भी पीछे नहीं छूटना चाहिये।
- विकास के सभी पहलुओं में लैंगिक समानता सुनिश्चित करें। महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाएँ क्योंकि उनकी भलाई पूरे समुदाय की भलाई से जटिल रूप से जुड़ी हुई है।
- चुनौतीपूर्ण समय के दौरान सुरक्षा प्रदान करने वाले सामाजिक सुरक्षा जाल को मज़बूत करें। सुनिश्चित करें कि ये सुरक्षा जाल कुशल, पारदर्शी और उन लोगों तक पहुँच के लिये लक्षित हैं जिन्हें इनकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
- पर्यावरणीय संवहनीयता को एकीकृत करना:
- पर्यावरणीय संवहनीयता को विकास पहलों में एकीकृत करें ।
- पर्यावरण-अनुकूल अभ्यासों और संवहनीय संसाधन प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करना व्यक्ति एवं समुदाय दोनों की भलाई में योगदान देता है।
निष्कर्ष
कल्याणवाद से भलाई की ओर (Welfarism to Well-being) संक्रमण के लिये एक व्यापक और एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो सशक्तीकरण, संवहनीयता और व्यक्तियों एवं समुदायों के जीवन की गुणवत्ता में समग्र सुधार पर केंद्रित हो। नीति के संदर्भ में, क्षमता दृष्टिकोण (Capability Approach) केवल लोगों की आय बढ़ाने के बजाय उनकी क्षमताओं और स्वतंत्रता के विस्तार पर ध्यान केंद्रित करने का उपयुक्त सुझाव देता है।
- यह भी पढ़े…………
- बिहार के शिक्षकों की तैनाती को भारी गड़बड़ी,क्यों?
- बिहार में शिक्षकों की छुट्टी को लेकर जारी हुआ आदेश,क्यों?
- ज्ञान, शिक्षा तथा न्याय के देवता है भगवान चित्रगुप्त : सांसद