भारतीय परम्परा से आए ज्ञान की विश्व को नितान्त आवश्यकता : सी.आर. मुकुंद 

भारतीय परम्परा से आए ज्ञान की विश्व को नितान्त आवश्यकता : सी.आर. मुकुंद

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श्रीनारद मीडिया, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक, कुरूक्षेत्र /

विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान में पुस्तक विमोचन समारोह आयोजित।

कुरुक्षेत्र, 18 जून : विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान एवं पुनरुत्थान विद्यापीठ के संयुक्त तत्वावधान में पुस्तक विमोचन समारोह का आयोजन नैमिषारण्य सभागार में किया गया। कार्यक्रम में मुख्यातिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह सी.आर. मुकुंद थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने की। विशेष अतिथि रविन्द्र महाजन रहे। मंचासीन अतिथियों में पुनरुत्थान विद्यापीठ की कुलपति सुश्री इन्दुमति काटदरे एवं विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी भी रहे। अतिथियों द्वारा संस्थान की 6 पुस्तकों एवं एकात्म मानव दर्शन संकल्पना कोश का विमोचन किया गया व लेखकों का शॉल और स्मृति चिह्न से सम्मान किया गया।

विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने विमोचन होने वाली पुस्तक परिचय कराते हुए लेखकों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि संस्कृति शिक्षा संस्थान का प्रकाशन विभाग प्रत्येक वर्ष शिक्षा एवं संस्कृति से ओतप्रोत ऐसी पुस्तकों का प्रकाशन करता है जो बालकों एवं आम जनमानस हेतु उपयोगी हों। संस्कृत बोध परियाजना के विषय संयोजक दुर्ग सिंह राजपुरोहित ने मंचासीन अतिथियों का परिचय कराया।

मुख्यातिथि सी.आर. मुकुंद ने एकात्म मानव दर्शन के विभिन्न पहलुओं पर विचार डालते हुए कहा कि आज दुनिया जिस परिस्थिति में है, उसमें भारतीय परम्परा से आए ज्ञान की नितान्त आवश्यकता है। व्यावहारिक रीति से इसको क्रियान्वित करने हेतु जो प्रयास होना चाहिए, उसमें भारतीय ज्ञान परम्परा का अत्यंत महत्व है। उन्होंने कहा कि इस दुनिया में कोई व्यक्ति, परिवार, समाज, समुदाय अन्य लोगों व प्रकृति के साथ लम्बे समय तक रहकर कैसे जी सकते हैं, ऐसा अपने पूर्वजों, ऋषि-मुनियों का अनुभव एकात्म मानव दर्शन के रूप में पं. दीनदयाल उपाध्याय जी ने दिया है। श्री मुकुंद ने आज के परिप्रेक्ष्य में एकात्म मानव दर्शन संकल्पना कोश जैसे ग्रन्थ को अत्यंत आवश्यक बताया। भारतीय और पाश्चात्य जगत में जीवन मूल्यों की अवधारणा बहुत अलग है। हमारे ऋषि-मुनियों ने शाश्वत मूल्यों के आधार पर अपनी जीवन रचना खड़ी की है। हमारे दीर्घकालीन चिंतन के आधार पर जीवन रचना का हमारे समाज और ऋषि-मुनियों ने मार्गदर्शन किया, वह शाश्वत मूल्यों के आधार पर था।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 को इसके सभी प्रावधानों के साथ सर्वप्रथम कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में लागू किया है। यदि कहा जाए कि एन.ई.पी.-2020 भी एकात्म मानव दर्शन पर आधारित है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। एकात्म मानव दर्शन आत्मनिर्भरता और स्वावलम्बन की बात करता है। यह शिक्षा प्रणाली भी रोजगारपरक है ताकि छात्र आत्मनिर्भर बन सकें। उन्होंने कहा कि एकात्ममानव दर्शन का उद्देश्य परम्परिक भारतीय मूल्यों को आधुनिक आवश्यकताओं के साथ एकीकृत करते हुए ऐसा समाज बनाना है जोकि न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक दृष्टि से भी समृद्ध हो।

पुनरुत्थान विद्यापीठ की कुलपति इन्दुमति काटदरे ने कहा कि भारत में शिक्षा भारतीय होनी चाहिए यह तो हमारी स्वाभाविक अपेक्षा है परन्तु भारत में इतने वर्षों से भारतीय शिक्षा नहीं है, यह भी एक दारूण वास्तविकता है। एकात्ममानव दर्शन पर उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षा में हमारे ज्ञान और दर्शन का आधार होना चाहिए। यह हमारी बुद्धि सम्पदा है। जो अनुभूत ज्ञान है, उसको बुद्धि के माध्यम से विद्वत्जनों में स्थापित करना और फिर भारत के प्रत्येक नागरिक तक भारतीय सम्पदा का परिचय कराना, इस दृष्टि से हमें एक वैचारिक आधार चाहिए। भारत का ज्ञान औपनिषदिक चिंतन में रहा है। इस चिंतन की 20 वीं शताब्दी की युगानुकूल प्रस्तुति एकात्म मानव दर्शन है। इसलिए हमारी संपूर्ण शिक्षा का आधार, देश जिन व्यवस्थाओं से चलता है, उन सभी का आधार एकात्म मानव दर्शन ही हो सकता है। अंत में संस्थान के अध्यक्ष डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी ने कार्यक्रम में आने पर सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में संस्थान के सचिव वासुदेव प्रजपति, रत्नचंद सरदाना, कुवि कुलसचिव हुकम सिंह, कृष्ण कुमार भंडारी, अनिल कुलश्रेष्ठ, नारायण सिंह, संतोष देवांगन सहित लेखकगण और नगर के गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।

इन पुस्तकों का हुआ विमोचन।
डॉ. मंजरी शुक्ला द्वारा लिखित पुस्तक ‘भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन की महिला वैज्ञानिक’, वासुदेव प्रजापति द्वारा लिखित पुस्तक ‘ज्ञान की बात-4’, नीलम राकेश द्वारा लिखित ‘बच्चों के राम’, डॉ. रमेश चौगांवकर द्वारा अनुवाद की गई पुस्तक ‘प्रातः वन्दे’, नम्रता दत्त द्वारा लिखित ‘माता की पाठशाला’, गोपाल माहेश्वरी द्वारा लिखित पुस्तक ‘संस्कृति के रंग कहानियों के संग’ रत्नचंद सरदाना द्वारा अनुवादित ‘एकात्म मानव दर्शन संकल्पना कोश’।

विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान में आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह में नगर के गणमान्य व्यक्तियों एवं लेखकों को संबोधित करते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह सी.आर. मुकुंद।
विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान में आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह सी.आर. मुकुंद को स्मृति चिह्न प्रदान करते संस्थान के अध्यक्ष डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी।
पुस्तक विमोचन समारोह में मंचासीन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह सी.आर. मुकुंद, प्रो. सोमनथ सचदेवा, डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी, सुश्री इन्दुमति काटदरे, डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी, रविन्द्र महाजन।

 

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