विश्व के पहले मैनेजमेंट गुरु थे लीलाधर भगवान श्रीकृष्ण.
कुशल रणनीतिकार, उद्देश्य पर नजर, साधनों का सदुपयोग.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
विश्व के पहले प्रबंधन गुरु लीलाधर भगवान श्रीकृष्ण थे। वे अपने हर स्वरूप में हर उम्र के व्यक्ति के लिए रोल मॉडल हैं। पेश है सीआईएमपी के मुख्य प्रशासनिक पदाधिकारी राजीव रंजन से श्रीकृष्ण के प्रबंधकीय कौशल पर हिन्दुस्तान के संवाददाता चंदन द्विवेदी की बातचीत पर आधारित रिपोर्ट…।
धैर्य के साथ निष्काम भाव से अपना कर्म करते रहें
भगवान श्रीकृष्ण निष्काम कर्म की बात कहते हैं। हम सबका अधिकार कर्म पर ही है, लेकिन यह भी है कि अगर हम मन से कोई कार्य करते हैं और अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं तो सफलता मिलती है। भगवान धैर्य के साथ कर्मशीलता को प्रोत्साहन देते हैं। कर्म पकता है। वे कहते हैं -कर्मण्येवाधिकरास्ते मा फलेषु कदाचन।
उद्देश्य पूर्ति की प्रतिबद्धता पर पूरा फोकस
श्रीकृष्ण जानते थे कि उनके अवतार का मुख्य उद्देश्य कंस को मारकर वासुदेव और देवकी को मुक्त कराना है। अपने इस उद्देश्य को लेकर वे इतने प्रतिबद्ध थे कि बचपन से ही इसकी तैयारी करनी शुरू कर दी थी। मात्र 11 साल की उम्र में उन्होंने नंदगांव, यशोदा मैया, राधा, बाल सखाओं को सिर्फ इसलिए छोड़कर मथुरा चले आये।
अपने ज्ञान को बिना हिचकिचाए साझा करें
जो कुछ भी आपको पता है वह दूसरों से साझा करें। इससे आपके ज्ञान में वृद्धि होगी। इसकी पहल अपनी ओर से करें। वे अपने विचारों को दूसरों के साथ बांटने में नहीं हिचकिचाते थे। जब अर्जुन ने कौरवों संग युद्ध से मना कर दिया तो उन्होंने अपने ज्ञान को अर्जुन के साथ साझा करते हुए उन्हें युद्ध के वास्तविक उद्देश्य के बारे में बताया।
अपने लक्ष्य से कभी मत भटकें, कदम बढ़ाते रहें
उनका हर कदम, प्रत्येक विचार, हर युक्ति उन्हें अपने लक्ष्य के और निकट लेकर आती थी। वे तीन लक्ष्य थे- परित्राणाय साधुनाम् यानि सज्जनों का कल्याण, विनाशाया दुष्कृताम् यानि बुराई और नकारात्मक विचारों को नष्ट करना एवं धर्म संस्थापना अर्थात जीवन मूल्यों एवं सिद्धातों की स्थापना करना।
साधनों और प्रतिभाओं का सदुपयोग करे
भगवान चाहते तो सिर्फ एक सुदर्शन चलाकर 18 दिन चलने वाले महाभारत के युद्ध को क्षण भर में समाप्त कर देते। लेकिन उन्होंने एक अच्छे शिक्षक के रूप में विश्व को धर्म का पाठ पढ़ाने के लिए पांडवों को खड़ा किया।
टीम या समाज के लिये प्रेरणास्रोत बनें
प्रेरणा में बहुत ऊर्जा है जो अंसभव को संभव बनाने की क्षमता रखती है। अपनी लीलाओं और कृत्यों से उन्होंने हमेशा इस बात को सिद्ध किया है। इंद्र के विरुद्ध उन्होंने गोकुल के लोगों को प्रेरित किया।
हमेशा मृदु एवं सरल बने रहें
ईश्वरीय अवतार होने, राज परिवार और नंदगांव में समृद्ध घर में पालन पोषण के बावजूद वे हमेशा साधारण जीवन जीते थे। उनके व्यवहार में अहंकार नहीं था। हमेशा सरल और मृदुभाषी बने रहिए।
पक्षपात न करें
चाहे अपने मामा कंस का वध करना हो, बलराम का विरोध कर पांडवों की मदद करना हो या पांडवों को युद्ध के लिए प्रेरित करना हो। कृष्ण ने कभी संबंधियों और परिवार के लिए धर्म को नहीं छोड़ा। उन्होंने हमेशा न्याय के पक्ष में खड़े होकर अन्याय का विरोध किया। उनके प्रबंधन का यह नियम हमें सभी का विश्वासपात्र और सार्वजनिक सहमति प्रदान करता है।
कुशल रणनीतिकार
कृष्ण एक कुशल प्रमाणित रणनीतिकार हैं। उन्हें मालूम था कि दुर्योधन गदा युद्ध में भीम से ज्यादा योग्य है। उन्होंने गांधारी के सामने नग्न होकर जाने पर उन्हें टोका जिससे दुर्योधन जांघों को ढंककर सामने गया। गांधारी ने उसके शरीर को हीरे सा सख्त बना दिया है लेकिन जांघों पर इसका प्रभाव नहीं पड़ा जो उसके अंत का कारण बना।
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