भारतीय सिनेमा को सार्थक बनाने के आवश्यकता है,क्यों ?

भारतीय सिनेमा को सार्थक बनाने के आवश्यकता है,क्यों ?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय सिनेमा ने एक स्वर्णिम इतिहास रचते हुए पहली बार दो ऑस्कर जीत कर जश्न का अभूतपूर्व अवसर प्रदत्त किया है। आजादी के अमृत महोत्सव की अमृत बेला में 95वें ऑस्कर पुरस्कारों ने भारत सिनेमा में विशेष रूप से अमृतकाल को जन्म दिया है। अंतरराष्ट्रीय सिनेमा के सबसे चमकदार भव्य मंच पर एक साथ दो अलग अलग भारतीय फिल्मों ने बाजी मार कर हर भारतीय को गौरवान्वित किया है।

तेलुगु फिल्म “आरआरआर” और डॉक्यूमेंट्री ‘द एलिफेंट विस्पर्स’ ने दो अलग-अलग श्रेणियों में ऑस्कर पुरस्कार जीत लिए हैं। हालांकि 91 साल के ऑस्कर इतिहास में अब तक किसी भी भारतीय फिल्म को ऑस्कर नहीं मिल सका है। कुछ ऐसे भारतीय कलाकार भानु अथैया, सत्यजीत रे, एआर रहमान एवं गुलजार जरूर रहे हैं, जिन्होंने अपने बेहतरीन प्रदर्शन के दम पर अकादमी पुरस्कार प्राप्त कर देश को गौरवान्वित करने का मौका दिया है।

फिल्म ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ के लिए ही रेसुल पोक्कुट्टी को ऑस्कर अवॉर्ड मिला था। उन्हें यह पुरस्कार ‘बेस्ट साउंड मिक्सिंग’ कैटेगरी में दिया गया था। वर्ष 2023 के ऑस्कर अवार्ड ने दुनियाभर में भारतीय फिल्म उद्योग की बढ़ती धमक का अहसास करा दिया है। लेकिन यह अनंत अथाह की एक लहर भर है। फिर भी यह अवसर है विजेताओं को बधाई देते हुए जश्न बनाने का एवं भविष्य में और अधिक ऑस्कर पुरुस्कार जीतने के लिये कमर कसने एवं संकल्पित होने का।

‘आरआरआर’ फिल्म के गीत ‘नाटू-नाटू’ को मिली कामयाबी के पीछे छिपी अहमियत का अंदाजा इसे देखते-सुनते हुए हो जाता है। नृत्य निर्देशन और गीत के शब्दों का संयोजन ऐसा अनूठा प्रभाव पैदा करता है, जिसे देखते हुए आम दर्शक भी मंत्रमुग्ध हो जाता है। इसमें दो राय नहीं कि भारतीय सिनेमा की दुनिया में जितनी फिल्में भी बनी हैं, उनमें से कई को देश-विदेश में अलग-अलग मानकों पर बेहतरीन रचना होने का गौरव मिला। जहां तक वैश्विक स्तर पर सिनेमा के सबसे ऊंचा माने जाने वाले आस्कर पुरस्कारों का सवाल है, बहुत कम भारतीय फिल्मों को उसमें कुछ महत्त्वपूर्ण हासिल करने का मौका मिला।
लेकिन इस वर्ष के अकादमी पुरस्कारों यानी ऑस्कर में भारत में बनी दो मुख्य कृतियों को जो ऐतिहासिक उपलब्धि मिली है, वह निश्चित रूप से भारतीय सिनेमा प्रेमियों के लिए खुश होने वाली बात है। दूसरी बड़ी कामयाबी के तहत ‘द एलिफेंट विस्पर्स’ को सबसे अच्छे लघु वृत्तचित्र का तमगा मिला। हालांकि इसी श्रेणी में नामांकित ‘आल दैट ब्रीद्स’ को अपेक्षित उपलब्धि नहीं मिल सकी। ऑस्कर विजेता ‘द एलिफेंट विस्पर्स’ को देखना एक विलक्षण एवं अद्भुत अनुभव है,
लेकिन इसकी सफलता तब मानी जाएगी जब भारतीय वन्यजीवों के प्रति लगाव एवं संवेदना जगाने वाले और भी कुछ अनूठे काम सामने आयें। वन्य जीवों के प्रति उपेक्षा एवं स्वार्थी-लोभी, खतरनाक इंसानों के हाथों उनकी जान जाने की घटनाएं पर्यावरण एवं सृष्टि असंतुलन का बड़ा कारण है। ऑस्कर के बहाने ही सही यदि हम वन्य जीवों के प्रति जागरूक होते हैं तो यह इस बड़े पुरस्कार मिलने की सार्थकता होगी।

सच यह है कि आस्कर 2023 में भारत ने बेहतरीन सिनेमा के मामले में अपने स्तर पर एक अहम इतिहास दर्ज किया है। फिर भी यह अपने आप में एक सवाल है कि हर साल भारत में संख्या के लिहाज से करीब डेढ़ हजार फिल्में बनने के बावजूद उनमें से गिनती की कुछ फिल्मों को ही स्थायी महत्त्व की और वैश्विक स्तर पर प्रशंसा हासिल कर पाने वाली कृतियों के रूप में दर्ज किया जाता है।

इससे पहले भारतीय संदर्भों के साथ बनी ‘स्लमडाग मिलियनेयर’, ‘गांधी’ और ‘लाइफ आफ पाइ’ जैसी फिल्मों को आस्कर में अच्छी उपलब्धियां मिलीं थीं। खासतौर पर ‘स्लमडाग मिलियनेयर’ में ‘जय हो’ गाने के लिए एआर रहमान को पुरस्कार मिला था, लेकिन यह भी तथ्य है कि इन फिल्मों को भारतीय निर्देशकों ने नहीं बनाया था। हो सकता है कि ऑस्कर में भारत के हिस्से कम उपलब्धियां आई हों, लेकिन दुनिया भर में इन पुरस्कारों को जिस स्तर का माना जाता है, उसमें कुछ हासिल करना बहुत बड़ी चुनौती होती है। अब इस बार की कामयाबी के बाद उम्मीद की जानी चाहिए वैश्विक स्तर पर टक्कर देने वाली कुछ बेहतरीन फिल्में भी बनेंगी।

सिनेमा जगत का सबसे बड़ा अवार्ड ऑस्कर दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखता है। सिनेमा से जुड़े लगभग सभी कलाकार इस अवार्ड को जीतने की चाहते रखते हैं। दुनिया में वैसे तो सिनेमा के क्षेत्र में सैंकड़ों पुरस्कार दिये जाते हैं। लेकिन ऑस्कर को मनोरंजन के क्षेत्र में दिया जाने वाला विश्व का सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है।

इस बार ऑस्कर अवार्ड से भारतीय फिल्म उद्योग को दुनियाभर में नई पहचान मिली है, दुनिया का ध्यान अपनी ओर खिंचा है। सवाल मुंबई फिल्म उद्योग और दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग के बीच अंतर करने का नहीं है। सवाल भारतीय सिनेमा को सार्थक बनाने का है। दशकों पहले विश्व सिनेमा से भारतीय दर्शकों को इतना भर परिचय था कि हॉलीवुड के बड़े स्टार्स के प्रेम-संबंध और स्कैंडल अखबारों में जगह पा जाते थे या कुछ फिल्मों के नाम सुनाई पड़ जाते थे। विश्व-सिनेमा अब भारतीय दर्शक के जीवन का एक कोना है। यही कारण है कि अब सार्थक सिनेमा की दृष्टि से भारत में प्रगति हो रही है।

भारतीय सिनेमा को ऑस्कर में लगातार खनक पैदा करने एवं अपनी उपस्थिति का अहसास कराने के लिये विश्व-सिनेमा के अनुरूप फिल्मों का निर्माण करना होगा, जो एक बिल्कुल अलग परिघटना है। इस सिनेमा में विषयों का अपार विस्तार है, भावों की विस्मित करती दुनिया है, इंसानी संबंधों के गहनतम आख्यान है। इनमें देश हैं, समाज हैं, संस्कृतियों और इतिहास है।

यह बड़ा ही विराट लोक है। विश्व इतिहास के चरित्रों और घटनाओं पर बनी स्पार्टाकस, ग्लैंडिएटर, नीरो, ट्रॉय, रोम, जैसी वृहत कैनवास पर रची महत गाथाएं हैं, तो समकालीन इतिहास को टटोलती नाजी कैंपों और विश्वयुद्धों की अनगिनत घटनाएं हैं। विश्व साहित्य की शायद ही कोई ऐसी महत्वपूर्ण कृति हो, जिस पर बेहतरीन फिल्म न बनी हो।

विश्व सिनेमा आज विश्व संस्कृति का एक नुमाइंदा है, भारत जिसका अभिन्न हिस्सा है, जिसके परिवेश, इतिहास, कला, साहित्य एवं संस्कृति पर दुनिया रोमांचित है। सारी दुनिया आज एक वैश्विक नागरिकता तलाश रही है। इस दृष्टि से सिनेमा की महत्वपूर्ण भूमिका है, भारतीय सिनेमा को इसमें कुछ अनूठे, खोजपूर्ण एवं सार्थक उपक्रम करने चाहिए।

अफसोस यह है कि हमारी खोज एवं उपक्रम आर्थिक और उपभोगगत दायरे में सिमटे हैं। हालांकि इसी आर्थिक राह से चलती संस्कृति भी अपने पंख फैलाती सारे विश्व में विचरण कर रही है। पर विश्व साहित्य, किसी पराए संसार के प्रतिनिधि हैं। पर वास्तव में ऐसा है नहीं। विश्व सिनेमा पर रचे गए पात्र समूची मानवता के दुख-सुख के प्रतिनिधि हैं। वे मनुष्य की सामूहिक पीड़ा और सामूहिक स्वप्नों से मिलकर बने हैं।

जैसे फिल्म ‘द एलिफेंट विस्पर्स’ हाथियों के संरक्षण पर बनी मार्मिक फिल्म है। ऑस्कर का विश्व-सिनेमा, मानव-हृदय का विशाल दर्पण है। हमें अपनी सोच को बदलना होगा। हजारों अविस्मरणीय किरदार और जिंदगी की असंख्य सच्चाइयों को खोलती हजारों कहानियां हमारे अपने मन और जीवन के आयाम बनने के रास्ते में खड़ी हैं। विश्व-सिनेमा के विशाल सागर में ऑस्कर से सम्मानित होने का अवसर सिर्फ एक लहर है, एक छोटी-सी झलक मात्र जो यह संदेश देना चाहती है कि जिंदगी उतनी ही नहीं हैं,

जितनी हमने जी या देखी-जानी है। भारतीय जिंदगी के रंग बेशुमार हैं, कला-संस्कृति की अविस्मरणीय धाराएं हैं, अनूठा एवं बेजोड़ इतिहास और उसकी कहानियां भी अनंत-अथाह। भारतीय सिनेमा अपना अजेंडा बदले एवं भारत की खिड़की से विश्व को देखने एवं विश्व को भारत दिखाने की पहल करें तो यही ऑस्कर की सीढ़ियां बन जायेगा।

Leave a Reply

error: Content is protected !!