बिहार में शराबबंदी कानून की समीक्षा की जरुरत- वर्मा.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्‍क

बिहार राज्य में लागू पूर्ण शराबबंदी कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमना द्वारा की गई सख्त टिप्पणी के मद्देनजर राज्य में शराबबंदी कानून की समीक्षा की जानी की जरूरत आ पड़ी है। ये बातें कोई और नहीं बल्कि पटना हाई कोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेश चंद्र वर्मा ने सोमवार को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करके कही है।

वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के बयान को लेकर कहा कि चीफ जस्टिस ने आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में सिद्धार्थ लॉ कॉलेज में कानूनों को, खासतौर से आपराधिक कानूनों को, बगैर समझे बुझे और बगैर किसी दूर दृष्टि के ऐसे ही लागू कर दिया जाता है तो वैसा ही होता है, जैसा कि बिहार में शराबबंदी कानून के लागू होने के बाद हो रहा है। इसकी वजह से न्यायलयों में मुकदमें इकट्ठा हो रहे हैं।

सरकार को भी राजस्व का नुकसान

राज्य में शराबबंदी कानून लागू किए जाने के बाद से हाई कोर्ट में जमानत से जुड़े मुकदमों में इजाफा हो गया है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि एक साधारण बेल के आवेदन के निपटारे में एक वर्ष का समय लग जा रहा है। वर्मा ने भी चीफ जस्टिस की बातों पर अपनी पूर्ण सहमति जताते हुए आगे कहा कि अब समय आ गया है, जब राज्य में शराबबंदी कानून की समीक्षा की जानी चाहिए। इससे सरकार को भी राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है।

शराबबंदी से बढ़ रहा भ्रष्टाचार
सरकार को अभी तक कानून को लागू करने में सफलता भी नहीं मिली है। पुलिस प्रशासन को जहां लगाया जाना चाहिए, उसे छोड़, पुलिस कर्मियों को शराब पर नियंत्रण के लिए लगा दिया गया है। और तो और पुलिस कर्मी भी शराब के नशे में पकड़े जा रहे हैं। कुल मिलाकर शराबबंदी भ्रष्टाचार का एक जरिया बन गया है।

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