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न्यायपालिका में महिलाओं के लिए 50 फीसद आरक्षण होने चाहिये-एनवी रमना,प्रधान न्यायाधीश.

न्यायपालिका में महिलाओं के लिए 50 फीसद आरक्षण होने चाहिये-एनवी रमना,प्रधान न्यायाधीश.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कार्यपालिका से लेकर विधायिका तक में महिलाओं के लिए अभी 33 फीसद आरक्षण की ही मांग पूरी नहीं हुई है कि प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) एनवी रमना ने न्यायपालिका में महिलाओं के लिए 50 फीसद आरक्षण का समर्थन किया है। उन्होंने महिला वकीलों का आह्वान किया है कि वे न्यायपालिका में 50 फीसद आरक्षण के लिए जोरदार तरीके से मांग उठाएं।

आपको गुस्‍से से चिल्‍लाना होगा 

रविवार को प्रधान न्यायाधीश ने इस मांग को अपना पूरा समर्थन जताते हुए कहा, ‘मैं नहीं चाहता कि आप रोएं, बल्कि आपको गुस्से के साथ चिल्लाना होगा और मांग करनी होगी कि हम 50 प्रतिशत आरक्षण चाहती हैं।’ यह हजारों सालों के दमन का विषय है और महिलाओं को आरक्षण का अधिकार है।

यह दया का विषय नहीं अधिकार का सवाल है

जस्टिस रमना ने कहा, ‘यह अधिकार का विषय है, दया का नहीं।’ जस्टिस रमना ने कहा, ‘मैं देश के सभी विधि संस्थानों में महिलाओं के लिए एक निश्चित प्रतिशत आरक्षण की मांग की पुरजोर सिफारिश और समर्थन करता हूं ताकि वे न्यायपालिका में शामिल हो सकें।’

मैं चाहता हूं कि आपको रोना ना पड़े 

सुप्रीम कोर्ट की महिला अधिवक्ताओं द्वारा तीन महिला न्यायाधीशों समेत नव नियुक्त नौ न्यायाधीशों के सम्मान में आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘आप सब हंस रही हैं। मैं भी यही चाहता हूं कि आपको रोना नहीं पड़े, बल्कि आप गुस्से के साथ चिल्लाएं और मांग उठाएं कि हमें 50 प्रतिशत आरक्षण चाहिए।’

यह हजारों साल के दमन का विषय 

मुख्‍य न्‍यायाधीश ने कहा कि यह छोटा मुद्दा नहीं है बल्कि हजारों सालों के दमन का विषय है। यह उचित समय है जब न्यायपालिका में महिलाओं का 50 प्रतिशत प्रतिनिधित्व होना चाहिए।’

कुछ चीजें बहुत देरी से आकार लेती हैं

जस्टिस रमना ने कहा कि दुर्भाग्य की बात है कि कुछ चीजें बहुत देरी से आकार लेती हैं और इस लक्ष्य की प्राप्ति होने पर उन्हें बहुत खुशी होगी। उन्होंने कहा कि लोग अक्सर बड़ी आसानी से कह देते हैं कि 50 प्रतिशत आरक्षण मुश्किल है क्योंकि महिलाओं की अनेक समस्याएं होती हैं लेकिन यह सही नहीं है।

निकाय बनाने का दिया प्रस्ताव

मुख्‍य न्‍यायाधीश ने कहा, ‘मैं मानता हूं कि असहज माहौल है, बुनियादी सुविधाओं की कमी है, खचाखच भरे अदालत कक्ष हैं, प्रसाधन गृहों की कमी है, बैठने की जगह कम है। जो कुछ बड़े मुद्दे हैं।’ उन्होंने कहा कि देश में अदालतों की स्थिति के बारे में सूचना एकत्र करने के बाद ही उन्होंने न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए एक निकाय बनाने का प्रस्ताव किया है।

दशहरा बाद सामान्य सुनवाई शुरू होने की उम्मीद

सुप्रीम कोर्ट में सामान्य सुनवाई यानी व्यक्तिगत उपस्थिति के साथ सुनवाई की वकीलों की मांग पर सीजेआइ ने कहा कि दशहरा बाद इसकी उम्मीद है। वरिष्ठ वकील सामान्य सुनवाई में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे। जूनियर वकील आना चाहते हैं। पूरी तरह से सामान्य सुनवाई शुरू करने का जोखिम भी नहीं उठाया जा सकता, क्योंकि कब तीसरी या चौथी लहर के आने की बात कही जाने लगे। इसलिए उम्मीद है कि दशहरा बाद सामान्य सुनवाई शुरू हो सकती है।

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