कोई अंडर करेंट था, जो भाजपा के पक्ष में नहीं था,कैसे?

कोई अंडर करेंट था, जो भाजपा के पक्ष में नहीं था,कैसे?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय जनता पार्टी को दक्षिण भारत में अपने एकमात्र दुर्ग में करारी शिकस्त मिली है। वैसे वोटिंग प्रतिशत को देखें तो पाएंगे कि कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगभग 5 प्रतिशत बढ़ा है। 2018 में वह 38 प्रतिशत था, जो इस बार 43 प्रतिशत हो गया है। बीजेपी का मत कमोबेश वही 36 प्रतिशत है, जितना 2018 में था। जेडीएस का मत 18.4 से घटकर 13.3 प्रतिशत हो गया है। उसमें करीब पांच फीसदी की गिरावट आई है।

साफ है कि जेडीएस का घटा वोट कांग्रेस को मिला और परिणामों में इतना अंतर आपके सामने है। बीजेपी के लिए इस हार से उबरना मुश्किल नहीं है, पर कांग्रेस हारती, तो उसका उबरना मुश्किल था। उसने स्पष्ट बहुमत हासिल करके मुकाबले को ही नहीं जीता, बल्कि यह जीत उसके लिए निर्णायक मोड़ साबित होगी। पर यह नहीं मान लेना चाहिए कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के प्रति जनता के बदले हुए मूड का यह संकेत है।

लोकसभा चुनाव के मुद्दे अलग होते हैं। साल के अंत में तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम विधानसभाओं के चुनाव भी होंगे। मिजोरम को छोड़ दें, तो शेष सभी राज्य महत्वपूर्ण हैं। रणनीति में धार देने के कई मौके अभी बीजेपी को मिलेंगे।

इस जीत के बाद सुनने में आ रहा है कि यह राहुल गांधी की जीत है। उनकी भारत जोड़ो यात्रा की विजय है। ध्यान से देखें, यह स्थानीय नेतृत्व की विजय है। राज्य के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर होना महत्वपूर्ण साबित हुआ, पर कांग्रेस की जीत के पीछे राष्ट्रीय नेतृत्व की भूमिका सीमित है।
खड़गे को भी कन्नाडिगा के रूप में देखा गया। वे राज्य के वोटरों से कन्नड़ भाषा में संवाद करते हैं। कांग्रेस ने कन्नड़-गौरव, हिंदी-विरोध नंदिनी-अमूल और उत्तर-दक्षिण भावनाओं को बढ़ाने का काम भी किया। इन बातों का असर आप देख सकते हैं। दूसरी तरफ बीजेपी के नेतृत्व की भूमिका देखें। 2021 में येदियुरप्पा को जिस तरह हटाया गया, वह क्या बताता है?

हिमाचल जीतने के बाद कर्नाटक में भी विजय हासिल करना कांग्रेस की उपलब्धि है।  यह फॉर्मूला है अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़ी जातियाँ। इसकी तैयारी सिद्धारमैया ने सन 2015 से शुरू कर दी थी, जब उन्होंने राज्य की जातीय जनगणना कराई। उसके परिणाम घोषित नहीं हुए, पर सिद्धारमैया ने पिछड़ों और दलितों को 70 फीसदी आरक्षण देने का वादा जरूर किया। आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं किया जा सकता था, पर उन्होंने कहा कि हम इसे 70 फीसदी करेंगे। ऐसा तमिलनाडु में हुआ है, पर इसके लिए संविधान के 76वां संशोधन करके उसे नवीं अनुसूची में रखा गया, ताकि अदालत में चुनौती नहीं दी जा सके। कर्नाटक में यह तब तक संभव नहीं, जब तक केंद्र की स्वीकृति नहीं मिले।

 

लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस मज़बूत पार्टी के रूप में उभरना चाहती है। इसी आधार पर वह विरोधी गठबंधन का राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व करना चाहती है। साथ ही वह इसे बीजेपी के पराभव की शुरुआत के रूप में भी देख रही है। इस विजय से उसके कार्यकर्ताओं का उत्साहवर्धन हुआ है। राज्य में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार दोनों शीर्ष नेता अपने चुनाव जीत गए हैं, जबकि भारतीय जनता पार्टी के कई मंत्री परास्त हुए हैं। निवर्तमान मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई जरूर जीत गए हैं। अंतिम समय में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में गए जगदीश शेट्टार हार गए हैं, जबकि लक्ष्मण सावदी को जीत मिली है।

 

राज्य में कांग्रेस के अंतर्विरोधों पर भी नजर डालनी होगी। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार में से किसी एक का चयन आसान नहीं होगा। अब सवाल होगा कि मुख्यमंत्री कौन होगा? अभी तक पार्टी अपनी एकता का प्रदर्शन करती रही है। पिछले साल अगस्त में सिद्धारमैया के 75वें जन्मदिवस पर राहुल गांधी ने मंच पर दोनों को गले लगने का सुझाव देकर इस एकता को ही व्यक्त किया था, पर व्यावहारिक दृष्टि से अब एकता कायम करने की जरूरत होगी।

कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में गृह ज्योति, गृह लक्ष्मी, अन्न भाग्य, युवा निधि एवं शक्ति की पांच गारंटी दोहराईं हैं।  पार्टी ने अपने घोषणापत्र में जनता से वादा किया है कि अगर वे सत्ता में आए, तो गृह ज्योति के तहत 200 यूनिट नि:शुल्क बिजली दी जाएगी। इसके साथ ही कांग्रेस ने पशुपालन को बढ़ावा देने और गांवों में कम्पोस्ट खाद केंद्र स्थापित करने के लिए गाय का गोबर 3 रुपये प्रतिकिलो खरीदने का वादा किया है। युवा निधि के तहत बेरोजगार स्नातकों को एक माह में तीन-तीन हजार रुपये तथा डिप्लोमाधारी बेरोजगारों को डेढ़-डेढ़ हजार रुपये दिए जाएंगे। शक्ति योजना के तहत सभी महिलाओं को राज्य भर में केएसआरटीसी/बीएमटीसी बसों में निशुल्क यात्रा की सुविधा दी जाएगी। इन वायदों की परीक्षा इसके बाद होगी।

 

बीजेपी को उम्मीद थी कि कांग्रेस की तरफ मुसलमानों के झुकाव के कारण हिंदुओं का झुकाव भाजपा की तरफ होगा, जो लगता है कि उसकी उम्मीद के मुताबिक नहीं हुआ। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में पीएफआई की तरह बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की जो घोषणा की थी, उससे अंदेशा था कि वोटर की नाराजगी व्यक्त होगी। पर ऐसा हुआ नहीं। राज्य में ध्रुवीकरण हिजाब के विवाद के साथ ही शुरू हो गया था। बीजेपी ने राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने का वायदा किया था और चुनाव के ठीक पहले मुसलमानों को मिलने वाले चार फीसदी आरक्षण को खत्म करके लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों के बीच बांट दिया था।

लगता है कि कांग्रेस को राज्य में जेडीएस के पराभव का लाभ भी मिला। जेडीएस को मिलने वाले मुस्लिम और दलित वोट कांग्रेस के पाले में गए हैं। राज्य में मुसलमान वोटर 13 से 16 प्रतिशत के बीच हैं। 35 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमानों की आबादी बीस प्रतिशत या उससे ज़्यादा है। इसके अलावा 90 सीटों पर मुसलमान वोटर चुनाव को प्रभावित करते हैं। किसी न किसी स्तर पर कांग्रेस और मुस्लिम पार्टी एसडीपीआई के बीच भी सहमति रही है। एसडीपीआई ने पहले 100 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की थी, पर बाद में केवल 18 पर ही प्रत्याशी खड़े किए।

बीजेपी को 2018 के विधानसभा चुनाव में 104 सीटें मिली थीं। इस लिहाज से तो उसे धक्का लगा ही है, पर ज्यादा बड़ा धक्का 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के समानांतर लगा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में मिले 51.7 प्रतिशत वोटों से विधानसभा क्षेत्रवार विश्लेषण करने पर 177 सीटें बनती थीं।  बीजेपी मानकर चल रही थी कि इस चुनाव में कोई लहर नहीं है, पर 73.19 प्रतिशत के रिकॉर्ड मतदान से यह समझ में आ जाना चाहिए कि कोई अंडर करेंट था, जो बीजेपी के पक्ष में नहीं था।

Leave a Reply

error: Content is protected !!