सीवान में शहाबुद्दीन के बिना पांच विधानसभा सीटों में होगा बदलाव,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
शहाबुद्दीन सीवान जिले के लिए ‘साहब’ थे। यहां उनकी एक समांतर सरकार चलती थी। बस भाड़ा से लेकर डॉक्टर की फीस तक शहाबुद्दीन तय करते थे। इसलिए वो सीवान के रॉबिनहुड भी कहे जाते थे। वैसे दो बार विधायक और चार बार सांसद रह चुके शहाबुद्दीन का असर सीवान से बाहर ज्यादा नहीं था। लेकिन सीवान के मुसलमानों के लिए ‘साहब’ तो थे ही।
सीवान जिले में कुल 8 विधानसभा सीटें हैं, इनमें से 5 पर शहाबुद्दीन का असर माना जाता था। यह 5 सीटें सीवान सदर, जीरादेई, रघुनाथपुर, बड़हरिया और दरौंदा हैं। खासतौर पर सीवान, बड़हरिया और रघुनाथपुर की ऐसी सीटें हैं, जहां की सियासत पूरी तरह शहाबुद्दीन के नाम पर टिकी हुई थी। सीवान सदर विधानसभा में व्यवसायी और मुस्लिम वोटर काफी अहम भूमिका निभाते हैं। व्यवसायियों का झुकाव BJP की तरफ होता है तो मुस्लिम वर्ग का वोट एकमुश्त BJP के खिलाफ जाता रहा है। शहाबुद्दीन के निधन के बाद इन इलाकों पर असर पड़ेगा।
NDA सरकार बनते ही शुरू हुई शहाबुद्दीन के किले को तोड़ने की भरपूर कोशिश
शहाबुद्दीन जब से जेल में थे, तब से बिहार और सीवान की राजनीति में काफी बदलाव आया। वर्ष 2009 से सीवान लोकसभा सीट पर दूसरे दल का कब्जा हो गया। पहले निर्दलीय ओम प्रकाश यादव जीते. फिर ओम प्रकाश यादव BJP से दोबारा 2014 में जीते। 2019 में यह सीट JDU के कब्जे में चली गई और वहां से कविता देवी सांसद हो गईं। दूसरी तरफ BJP ने सीवान से ही मंगल पाण्डेय को बिहार का प्रदेश अध्यक्ष बनाया और अब वो सूबे के स्वास्थ्य मंत्री हैं। जब से बिहार में NDA की सरकार बनी, तब से शहाबुद्दीन के किले को तोड़ने की भरपूर कोशिश की गई। हालांकि, लंबे समय से RJD का सत्ता से दूर रहना भी शहाबुद्दीन को कमजोर करता गया।
सीवान में सड़क-स्कूल बने, उद्योग-धंधे बैठ गए
शहाबुद्दीन के सांसद रहते सीवान में सड़कों-स्कूलों और सरकारी अस्पताल का निर्माण हुआ। लेकिन, यहां के उद्योग-धंधे चौपट हो गए। 1939 में सीवान में तीन चीनी मिलों की शुरुआत की गई थी। इनमें SKG शुगर मिल, पचरुखी शुगर मिल, न्यू शुगर मिल शामिल हैं। उस वक्त सीवान में 15 से 20 हजार हेक्टेयर तक गन्ने की खेती हुआ करती थी, लेकिन एक-एक कर साल 1994 के आसपास तीनों चीनी मिल बंद हो गईं। वहां काम करने वाले हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो गए। सीवान जो कभी एक औद्योगिक क्षेत्र के रूप में जाना जाता था, आज की तारीख में एक छोटा कारखाना भी नहीं है। जबकि तीन-तीन चीनी मिल, एक सूत फैक्ट्री, एक चमड़ा फैक्ट्री बंद पड़ी हुई हैं।
जेल से निकले थे शहाबुद्दीन, लेकिन बयान ने फंसाया
RJD सुप्रीमो लालू यादव के खास रहे शहाबुद्दीन की अपनी राजनीति थी। उनके अपने समर्थक थे। वह अपने मन की राजनीति भी करते थे और बयान भी देते थे। यही वजह रही कि साल 2016 में शहाबुद्दीन को जमानत पर जेल से बाहर निकलने का मौका मिला। लेकिन जेल से बाहर निकलते ही उन्होंने CM नीतीश कुमार को परिस्थितियों का मुख्यमंत्री बता दिया। तब बिहार में RJD और JDU गठबंधन की सरकार चल रही थी। RJD के समर्थन से नीतीश कुमार CM बने थे। शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने को लेकर बिहार में जमकर बवाल मचा। इसका नतीजा यह हुआ कि जमानत रद्द कर दी गई और उन्हें दिल्ली के तिहाड़ जेल शिफ्ट कर दिया गया। शहाबुद्दीन तब से तिहाड़ जेल में थे।
शहाबुद्दीन के काम करने का स्टाइल था कि वे अपने इलाके के रॉबिनहुड थे। यानी दूसरे इलाके के लोगों को भले सताते थे लेकिन अपने इलाके में गरीबों के मसीहा बने हुए थे। हां, अपने इलाके में भी किसी की चुनौती उन्हें बर्दाश्त नहीं थी।
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