अगले 30 साल में बांग्लादेश में कोई भी हिंदू नहीं बचेगा,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बांग्लादेश से अब तक लगभग 2.4 करोड़ हिंदू पलायन कर चुके हैं। वर्ष 1964 से 2013 के बीच रोजाना लगभग 600 से ज्यादा हिंदू देश छोड़कर गए। यह क्रम अब भी जारी है। यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले 30 साल में बांग्लादेश में कोई हिंदू नहीं बचेगा। ढाका विश्वविद्यालय में पदस्थ प्रोफेसर डा. अबुल बरकत ने 30 साल के लंबे शोध के बाद जब वर्ष 2016 में प्रकाशित अपनी पुस्तक (पालिटिकल इकनामी आफ रिफार्मिंग एग्रीकल्चर लैंड-वाटर बाडीज इन बांग्लादेश) में यह लिखा था तो बांग्लादेश ही नहीं विश्वभर में उनके इस आकलन की निंदा की गई थी। कई लोगों ने चुनौती दी थी।
सिर्फ पूजा पंडालों पर ही नहीं, घर के मंदिरों को भी तोड़ जा रहा है।
डा. अबुल बरकत तब भी अपने आंकड़ों के साथ खड़े थे और आज भी हैं। दूरभाष पर हुई चर्चा में उन्होंने कहा- 30 साल को आप लगभग 25 साल कर लीजिए, क्योंकि मैंने यह आकलन वर्ष 2016 में दिया था। उस बात को लगभग पांच साल बीत चुके हैं। यह क्रम इसी दर से अब भी बना हुआ है।
डा. बरकत के आंकड़ें जितने सीधे व सपाट हैं, उनकी आवाज भी उतनी ही स्पष्ट हैं। दो देशों (भारत-बांग्लादेश) के बीच की दूरी, रीति-नीति, धर्म का फर्क कुछ भी इसके आड़े नहीं आता है। वे कहते हैं शोध के दौरान जब बांग्लादेश के गांव-गांव में पहुंचकर आंकड़े जुटा रहा था तो तस्वीर और उभरती जा रही थी। मुझे अंदाजा था कि जब मैं इन आंकड़ों के आधार पर अपना आकलन दुनिया के सामने रखूंगा तो विरोध सहना पड़ेगा। मैं अभी यह तो नहीं कह सकता कि हाल ही में दुर्गोत्सव के दौरान पंडालों में हमले के बाद कितने हिंदू पलायन कर गए, लेकिन इस तरह की घटनाएं पलायन के आंकड़ों में थोड़ी और तेजी ला देती है।
सही मायने में तो 3.4 करोड़ हिंदू गायब हैं डा. बरकत कहते हैं कि सीधे तौर पर देखें तो बांग्लादेश से 2.4 करोड़ हिंदू पलायन कर गए हैं। जिसे हम मिसिंग पाप्यूलेशन (गुमशुदा आबादी) कहते हैं, लेकिन सही मायने में लगभग 3.4 करोड़ हिंदू गायब हैं। दरअसल, जो लोग पलायन कर गए हैं, उनमें से 15 से 49 साल (इस अवधि को मातृत्व क्षमता वाला आकलन माना जाता है) की जितनी महिलाएं शामिल हैं, उनके साथ भविष्य में जन्म लेने वाली पीढ़ी का भी पलायन हो गया। यदि उसका आकलन किया जाए तो यह लगभग 3.4 करोड़ है। यदि पलायन नहीं होता तो यह आबादी बांग्लादेश में जन्म लेती और हिंदुओं की संख्या में इजाफा होता।
बांग्लादेश ढाका विवि के अर्थशास्त्री डा अबुल बरकत ने बताया कि चिंता यह है कि जिस भूभाग पर आज बांग्लादेश है, उसकी मूल प्रवृत्ति 100 साल के भीतर बदलने के कगार पर पहुंच गई है। 47 में से 16 आदिवासी समूह विलुप्त हो गए। पलायन का असर सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर पड़ रहा है।
बांग्लादेश जातीय हिंदू महाजोट के महासचिव गोविंद चंद्र प्रमाणिक ने बताया कि पूजा पंडाल में तोड़फोड़ की घटना की चर्चा तो विश्वव्यापी हुई, लेकिन आए दिन होने वाली घटनाएं सामने नहीं आ पाती हैं। रोज किसी न किसी हिंदू का घर जल रहा है, मंदिर तोड़े जा रहे हैं। हिंदू भय और आशंका के बीच जी रहे हैं।
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