कोरोना के तीसरी लहर रोकने के ये है उपाय.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
केरल और महाराष्ट्र में संक्रमितों की संख्या बढ़ते ही तीसरी लहर पर कयासबाजी तेज हो गई है। अक्टूबर-नवंबर तक इसके चरम पर होने की बात कही जा रही है। कहा जा रहा है कि जिस डेल्टा प्लस वैरिएंट के कारण संक्रमण फैल रहा है, वह वैक्सीन के सुरक्षा कवच को धोखा दे सकता है। हालांकि, ये दावे परिकल्पनाओं पर ही टिके हैं। विशेषज्ञों के अनुसार देश में दी जा रही दोनों वैक्सीन डेल्टा प्लस वैरिएंट पर प्रभावी हैं।
अंतर सिर्फ यह है कि वैक्सीन जहां अल्फा-बीटा वैरिएंट पर 70 फीसद प्रभावी है, वहीं डेल्टा प्लस से यह 55 फीसद ही सुरक्षा देती है। ऐसे में केरल या महाराष्ट्र के संक्रमित दूसरे राज्यों में जाकर अन्य लोगों को संक्रमित कर सकते हैं, लेकिन तीसरी लहर तभी आएगी जब खुद में बदलाव कर वायरस अधिक संक्रामक रूप में सामने आएगा। इसलिए कोरोना पर चल रहे सभी शोधों की रिपोर्ट आने के बाद ही सटीक तौर पर कुछ कहा जा सकेगा।
तीसरी लहर आए यह जरूरी नहीं: जब देश में किसी निश्चित समय पर एक साथ बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होने लगें तो उसे महामारी की लहर कहते हैं। अभी तक देश में कोरोना वायरस के किसी नए वैरिएंट की पुष्टि नहीं हुई है। अभी डेल्टा प्लस वैरिएंट ही लोगों को संक्रमित कर रहा है, जिसका कहर हम दूसरी लहर में झेल चुके हैं। वैक्सीन की दोनों डोज काफी हद तक इसके घातक दुष्प्रभावों से बचाने में कारगर हैं। वहीं पूर्व में संक्रमित लोगों में विकसित एंटीबाडी भी इससे सुरक्षा मुहैया करा रही है। यही कारण है कि विशेषज्ञ मान रहे हैं कि तीसरी लहर देश में तभी आएगी जब डेल्टा प्लस से अधिक खतरनाक स्ट्रेन आएगा। केरल व दक्षिण भारत के राज्यों में भी डेल्टा प्लस वैरिएंट के ही मामले मिल रहे हैं।
तीसरी लहर रोकने के जरूरी उपाय
- वैक्सीन की दोनों डोज लें और घर के बाहर मास्क जरूर पहनें
- जिस क्षेत्र में नए वैरिएंट के मामले मिलें, उसे सील कर दिया जाए
- जिन क्षेत्रों में नए वैरिएंट का प्रकोप हो यथासंभव वहां की यात्रा से बचें
- सिर में दर्द, नाक से पानी बहने, गले में खराश, कम समय में गंभीर लक्षण दिखें तो आरटी-पीसीआर जांच जरूर कराएं
गंभीरता को कम करते टीके के दो डोज: वैक्सीन की दोनों डोज लेने वाले भले ही संक्रमण से पूरी तरह सुरक्षित न हों, लेकिन यह तय है कि उनमें गंभीर लक्षणों की मात्रा एक पायदान कम हो जाती है। इसके कारण वेंटिलेटर में भर्ती होने वाले मरीज आक्सीजन बेड और आक्सीजन बेड तक पहुंचने वाले घर पर ही स्वस्थ हो सकते हैं। अध्ययनों के अनुसार दो डोज लेने वाले 10 फीसद लोग न केवल कोरोना संक्रमित हो सकते हैं, बल्कि दूसरों को भी बीमार कर सकते हैं। इनमें से तीन फीसद को ही हास्पिटल में भर्ती करना पड़ता है। इनमें भी महज 0.4 फीसद की ही मृत्यु होने की आशंका होती है। ऐसे में खुद को संक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए समय पर दोनों डोज जरूर लें।
समय पर दूसरी डोज नहीं लेना खतरे की घंटी: हर वैक्सीन अलग-अलग सिद्धांत पर बनी है। ऐसे में पहली डोज के कितने दिन बाद दूसरी डोज लेने पर अधिकतम सुरक्षा मिलेगी यह अध्ययन के आधार पर निश्चित किया जाता है। ऐसे में निर्धारित समय पर वैक्सीन की दोनों डोज नहीं लेने पर कम एंटीबाडी विकसित होती है। वहीं जो लोग दूसरी डोज नहीं लेते हैं, निर्धारित अवधि के कुछ समय बाद वे बिना वैक्सीन लिए व्यक्ति के बराबर ही खतरे में होते हैं। यही नहीं पहली डोज लेने के कारण कई लोगों को लक्षण उभरने के बाद भी लगता है कि कोरोना के बजाय उन्हें सामान्य फ्लू हुआ होगा। नतीजा, कई बार अचानक उनमें गंभीर लक्षण उभर आते हैं और हास्पिटल में भर्ती कराना पड़ता है।
हर्ड इम्युनिटी आएगी काम: मेडिकल जर्नल के अनुसार यदि किसी वायरसजनित रोग के खिलाफ 70 फीसद लोगों में एंटीबाडी विकसित हो जाती है तो माना जाता है कि समाज में हर्ड इम्युनिटी बन चुकी है। इसका मतलब यह हुआ कि अब यह श्रंखला के रूप में बढ़ते हुए सामुदायिक संक्रमण का रूप नहीं ले सकेगा। हालांकि, इसका यह मतलब नहीं कि कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा। यह हमारे साथ अब हमेशा रहेगा, लेकिन टीकाकरण आदि के कारण इसका रूप सामान्य सर्दी-जुकाम जैसा रह जाएगा। संभव है कि कई बार एक साथ बड़ी संख्या में कहीं पर इसके मरीज मिलें, लेकिन यह महामारी का रूप नहीं ले सकेगा और रोगियों की संख्या इतनी कम रहेगी कि अस्पताल पूरी क्षमता से उनका इलाज कर उन्हें स्वस्थ कर सकेंगे।
सितंबर के अंत तक आ सकती बच्चों की वैक्सीन: बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं। इनकी सुरक्षा के लिए हर देश चिंतित है। हालांकि, पहली और दूसरी लहर में बच्चों पर कोरोना संक्रमण का बहुत कम असर दिखा था। आइसीयू व वेंटिलेटर पर जाने वाले बच्चों की संख्या तो न के बराबर रही। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि बच्चों का इम्यून पावर कोरोना संक्रमण के प्रति काफी मजबूत है। इसके बावजूद हर्ड इम्युनिटी विकसित करने के लिए उन्हें वैक्सीन की सुरक्षा देना जरूरी है। 12 से 18 वर्ष के बच्चों के लिए चार से अधिक वैक्सीन का प्रभाव परीक्षण में काफी बेहतर पाया गया है।
बूस्टर डोज कब, अध्ययन जारी: 16 जनवरी से देश में शुरू हुए टीकाकरण अभियान को करीब आठ माह हो रहे हैं और एंटीबाडी अभी कारगर हैं। यही कारण है कि अभी तक यह निश्चित नहीं हो सका है कि दोनों डोज के बाद बूस्टर डोज कब देनी है। इसके लिए अध्ययन और शोध जारी हैं। अलग-अलग सिद्धांतों पर विकसित वैक्सीन की बूस्टर डोज का समय भी अलग-अलग होगा। इसके अलावा एक वैक्सीन की दोनों डोज लेने पर या अलग-अलग वैक्सीन की एक-एक डोज लेने से अधिक एंटीबाडी बनने के कारण मिक्स डोज पर अभी कोई दिशा-निर्देश नहीं आया है। अधिक सुरक्षा के लिए लोगों को खुद से ऐसे प्रयोग नहीं करने चाहिए, क्योंकि शरीर पर इनका क्या प्रभाव या दुष्प्रभाव होगा इस पर अभी अध्ययन चल रहे हैं।
हर वैरिएंट से बचाता है मास्क: फेफड़े को संक्रमित करने वाला कोरोना वायरस का कोई भी वैरिएंट हो वह प्रवेश नाक व मुंह से ही करता है। यदि वातावरण और नाक-मुंह के बीच एक परत हो तो कोई भी वैरिएंट हो उससे सुरक्षित रह सकते हैं। ऐसे में जरूरी है कि लोग नाक व मुंह को ढककर रखने को अपनी आदत बना लें और जरूरी नहीं है कि लोग इसके लिए महंगे मास्क खरीदें। अस्पताल, यात्रा या भीड़भाड़ वाली जगहों पर जहां संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है, एन-95 मास्क पहनना ज्यादा फायदेमंद है। नाक व मुंह को ढककर रखने से कोरोना संक्रमण के साथ ही धूल, धुआं और अन्य कई संक्रमण से भी सुरक्षा मिलती है।
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