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यह चैत्र अब तक का सुंदरतम चैत्र है। - श्रीनारद मीडिया

यह चैत्र अब तक का सुंदरतम चैत्र है।

यह चैत्र अब तक का सुंदरतम चैत्र है।

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ए रामा चइत महिनवा!…………

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पता नहीं कब से, शायद जब से धरा धाम पर राम आये तभी से सभ्यता के लिए चैत्र मास का अर्थ ही ‘राम’ होता है। फगुआ की शाम को ढोलक पर पड़ती एक मदमाती थाप, और अनेक उल्लासित कंठों का सम्मिलित स्वर! “ए रामा चइत महिनवा, ए राम के जनमवा ए रामा…” यदि आपका माटी से तनिक भी जुड़ाव बचा है, तो यकीनन आप झूम उठेंगे। हाथ अपने आप ताली पीटने लगेंगे, कंठ में अपने आप राम उतर आएंगे।

भोर में गेहूं की कटनी करने खेतों में उतरे लोग हों या शाम के समय ढोलक झाल लेकर बैठते पुराने लोग, वे यदि गुनगुनाएं तो जो जिह्वा पर राम ही आते हैं। ए रामा… यह देश युग युगांतर से ऐसे ही जीता रहा है न! थोड़ा सा रङ्ग बदला है अब, पर बहुत अधिक नहीं। अब भी सब राममय ही तो है। सभ्यता वस्त्र बदलती है, देह नहीं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि अबकी का चैत पिछले कुछ वर्षों ही नहीं, पाँच शताब्दियों का सबसे सुन्दर चैत है। इतना सुंदर कि इस महान समय में अपना होना ही सबसे बड़ा सुख लगता है।

सुख, आनन्द अनुभव करने का विषय है। इसका कोई स्पष्ट स्वरूप नहीं होता। यदि आप घटनाओं, परिस्थितियों को महसूस करेंगे तो ही सुख प्राप्त कर सकते हैं, अन्यथा समय हाथ से सरक जाएगा और आप जान भी नहीं सकेंगे। सोच कर देखिये, कि यह पिछली पाँच शताब्दियों का पहला चैत्र मास है, जब अयोध्याजी की अपनी जन्मभूमि में प्रभु श्रीराम विराज रहे हैं। हमारे आपके अनेक पूर्वज जो दिन भर राम-राम जपते रहे, उनके जीवन में भी यह क्षण नहीं आया। वे इस क्षण की राह तकते तकते स्वर्ग को प्रस्थान कर गए। यह दिन हमारे हिस्से में था। महसूस करिए इस बात को, एकाएक आपका मन आनन्द से भर जाएगा।

हम पौराणिक ग्रन्थों में पढ़ते हैं कि अमुक अमुक व्यक्तियों ने प्रभु के आने की युगों तक प्रतीक्षा की थी। जैसे माता अहिल्या, महर्षि शरभंग, माता सबरी आदि युगों से प्रभु की प्रतीक्षा कर रहे थे। जैसे महाराज मुचुकुन्द, जामवंत युगों से भगवान श्रीकृष्ण की प्रतीक्षा कर रहे थे। पर यह कथाएं सतयुग द्वापर की हैं, तब मनुष्य की आयु बहुत अधिक होती होगी। मुझे लगता है कलियुग में किसी महान घटना की प्रतीक्षा व्यक्ति नहीं बल्कि उसका वंश करता है। अयोध्या में रामलला के विराजमान होने की प्रतीक्षा हर कुल की अनेक पीढियां करती रहीं।

ठीक वैसे ही, जैसे इक्ष्वाकु के वंशज माता गङ्गा के अवतरण की प्रतीक्षा पीढ़ी दर पीढ़ी करते रहे थे। महाराज सगर से लेकर भगीरथ तक… जिसदिन महात्मा भगीरथ की प्रतीक्षा पूरी हुई, उस दिन वस्तुतः उनके सभी पूर्वजों की प्रतीक्षा पूरी हुई थी। अयोध्याजी में जन्मभूमि मन्दिर का बनना केवल हमारी प्रतीक्षा का अंत नहीं है, बल्कि हमारी अनेक पीढ़ी के पूर्वजों की प्रतीक्षा की सुखद समाप्ति है। इससे अधिक सुंदर और क्या ही होगा…

यह चैत्र अबतक का सुंदरतम चैत्र है। आधुनिक काल में अयोध्या इतनी सुन्दर कभी नहीं रही होगी, सरयू के तट पर इतना उल्लास कभी न रहा होगा, चइता की तान कभी भी इतनी प्यारी न लगी होगी। महसूस कीजिये प्रकृति के इस उत्सव को, यह आपको आनन्द से भर देगा।

आभार-सर्वेश तिवारी श्रीमुख, गोपालगंज, बिहार।

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