भारत वर्ष का यह विशाल वटवृक्ष सम्पूर्ण विश्व में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के रूप में प्रसिद्ध
श्रीनारद मीडिया, छपरा, (बिहार):
सम्पूर्ण भारतवर्ष 26 जनवरी के दिन को हर साल बड़े धूमधाम से मनाता है क्योंकि इसी दिन 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ था। इस खास दिन पर भारतीय संविधान ने शासकीय दस्तावेजों के रुप में भारत सरकार के 1935 के अधिनियम का स्थान ले लिया। आज अगर हम खुली हवा में साँस ले रहे हैं तो इसकी वजह वे असंख्य शहीद और स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी हैं, जिन्होंने आजादी का बीज रोपा और उसे अपने लहू से सींचकर बड़ा किया और वह बीज आज विशाल वटवृक्ष का रूप धारण कर चुका है। भारतवर्ष का यह विशाल वटवृक्ष सम्पूर्ण विश्व में भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के रूप में प्रसिद्ध है।
-भारतीय संस्कृति के अनुरूप चलता है हमारा संविधान:
हमारी संस्कृति अपनी सभ्यता के दम पर ही अपना अस्तित्व बनाये हुये है, वैसे तो भारतीय संस्कृति का इतिहास बहुत पुराना है जो सनातन से जुड़ा है लेकिन इसके विशाल स्वरुप एवं व्यापकता को दुनिया ने आजादी के बाद ही करीब से पहचाना है। हमारा एक संविधान है जो भारतीय संस्कृति के अनुरूप अलग-अलग जाति-धर्म और भाषा-बोली को स्थान देता है तथा सभी को समान रूप से एक माला मे पिरोकर रखता है। आज़ादी मिलने के बाद तत्कालीन सरकार ने देश के संविधान को फिर से परिभाषित करने की ज़रूरत महसूस की और संविधान सभा का गठन किया जिसकी अध्यक्षता डॉ. भीमराव अम्बेडकर को मिली, संविधान सभा का चुनाव मताधिकार पर हुआ और सभा के सभी निर्णय सहमति और समायोजन के आधार पर लिये गए थे तथा संविधान सभा में 70 देशी रियासतों के प्रतिनिधि थे।
-राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ को फहराकर भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्म की हुई घोषणा:
भारत में संविधान सभा गठित करने का आधार कैबिनेट मिशन योजना (1946 ई.) था, कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार संविधान सभा में 389 सदस्य होने थे, संविधान के पुनर्गठन के फलस्वरूप 1947 तक संविधान सभा में सदस्यों की संख्या 299 रह गई थी। संविधान को बनाने में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा तथा 26 नवम्बर, 1949 को 211 विद्वानों द्वारा तैयार देश के संविधान को चर्चा के लिए संविधान सभा के सामने रखा गया ठीक इसके दो माह बाद 26 जनवरी 1950 को यह लागू कर दिया गया और भारतीय राष्ट्रीय ध्वज ‘तिरंगा’ को फहराकर भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्म की घोषणा की गई।
-26 जनवरी को विशेष दिन के रूप में किया गया चिह्नित:
भारतीय संविधान को सबसे बड़ा लिखित संविधान कहा जाता है, जिसमें 444 अनुच्छेद, 22 अध्याय और 12 अनुसूचियाँ हैं। लिखित होने के साथ ही हमारा संविधान लचीला है और यही वजह है कि समय-समय पर इसमें संशोधन होते रहते हैं। अब तक लगभग 110 से अधिक संविधान संशोधन हो चुके हैं। सबसे पहले संविधान का संशोधन लागू होने के एक वर्ष बाद यानी की सन् 1951 में हुआ था तब से संशोधन का यह सिलसिला जारी। भारत के संविधान को लागू किए जाने से पहले भी 26 जनवरी का बहुत महत्त्व था। और इस दिन को विशेष दिन के रूप में चिह्नित किया गया था, 31 दिसंबर सन् 1929 के मध्य रात्रि में राष्ट्र को स्वतंत्र बनाने की पहल करते हुए लाहौर अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित हुआ जिसमें यह घोषणा की गई कि यदि अंग्रेज़ सरकार 26 जनवरी, 1930 तक भारत को उपनिवेश का पद (डोमीनियन स्टेटस) नहीं प्रदान करेगी तो भारत अपने को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर देगा।
-पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाता हैं गणतंत्रता दिवस:
26 जनवरी, 1930 तक जब अंग्रेज़ सरकार ने कुछ नहीं किया तब आजादी की लड़ाई का नेतृत्व करने वाले महापुरुषों ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा कर अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ कर दिए। साथ ही इस दिन सर्वसम्मति से एक महत्वपूर्ण फैसला लिया गया कि हर 26 जनवरी का दिन पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन सभी स्वतंत्रता सेनानी पूर्ण स्वराज का प्रचार करेंगे। इस तरह 26 जनवरी अघोषित रूप से भारत का स्वतंत्रता दिवस बन गया था। उस दिन से सन् 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा और संविधान लागू होने के बाद गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
-सामाजिक स्तर पर नैतिक मूल्यों का हो रहा है निरंतर छय:
आजादी के इन वर्षों मे भारत ने लगभग हर क्षेत्र में तरक्की की, विज्ञान, तकनीक, कृषि, साहित्य, खेल, शिक्षा आदि। सभी क्षेत्रों में तिरंगा लहराया। लेकिन इस बीच हमने बहुत कुछ खो भी दिए हैं, स्वार्थ की जंजीर में इस तरह जकड़े हुए हैं कि प्रेम और परस्पर भाईचारे के भाव देखने को नही मिल रहे, नैतिक मूल्य का निरंतर छय हो रहा है, धर्म के प्रति सम्मान की भावना का आभाव देखने को मिल रहा है, हमारी समाज में बढ़ती नशा की लत चिंता का विषय बनी हुई है, संस्कृति की पहचान आधुनिकता की चकाचौंध में गुम होते जा रही है।
-आधुनिकता की दौड़ में संस्कृति का सम्मान नज़र नही आता:
आज हम आजाद तो हैं हमारा संविधान, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है लेकिन हम कहीं न कहीं एक तरह की मानसिक गुलामी में जकड़ चुके हैं। हमारी आँखों पर आधुनिकता की ऐसी धूल जम चुकी है कि हमें हमारी संस्कृति का सम्मान ही नजर नही आ रहा। आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम अपनी ही संस्कृति को भूलने लगे हैं, उससे दूर होने लगे हैं। इसका परिणाम हमे देखने को भी मिल रहा है, समाज का जो विशुद्ध रूप हमारे सामने आ रहा है, समाज में जो विकृतियां हमें देखने को मिल रहीं हैं, यह हमारी संस्कृति से भटकने का ही परिणाम है।
-सशक्त राष्ट्र निर्माण के बाद ही कायम रहेगा संविधान:
किसी भी राष्ट्र की पहचान और अस्तित्व उसकी संस्कृति से होती है। संस्कृति की रक्षा एवं सम्मान किये बिना हम एक सशक्त राष्ट्र की कल्पना कर ही नही सकते क्योंकि राष्ट्र की नींव संस्कृति से ही जुडी हुई होती है और बिना राष्ट्र के संविधान का महत्व शून्य हो जाता है। अगर हम भारतीय संविधान की रक्षा और उसका सम्मान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, हमारा यह भी कर्तव्य बनता है कि हम हमारी संस्कृति-समाज और राष्ट्र का सम्मान भाव के साथ रक्षा करें। हम हमारी संस्कृति का सम्मान करेंगे, रक्षा करेंगे तभी सुंदर समाज निर्मित हो सकेगा तभी एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण होगा और मजबूत स्वस्थ संविधान कायम रहेगा।
इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि जिस विशाल वटवृक्ष को हमारे असंख्य शहीदों एवं वीर सेनानियों ने अपने रक्त से सींचकर खड़ा किया है, उसकी रक्षा करना, सुन्दर बनाना, हरा-भरा रखना हम सबकी जिम्मेदारी है, इसलिए अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए ईमानदारी के साथ पूर्ण रूप से उसका निर्वहन करें। भारतीय संस्कृति, संविधान एवं राष्ट्र का सम्मान करें, उसकी रक्षा करें।
आलेख : धर्मेन्द्र कुमार रस्तोगी
पत्रकार
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