बाघ हमारी संस्कृति तथा जीवन का अभिन्न हिस्सा.

बाघ हमारी संस्कृति तथा जीवन का अभिन्न हिस्सा.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वन एवं वन्य जीवों का संरक्षण भारतीय सभ्यता का एक अभिन्न अंग रहा है, परंतु बढ़ती जनसंख्या एवं इसके कारण बढ़ते जैविक दबाव को पूरा करने के लिए पिछले दशकों में वनों का दोहन भी खूब हुआ है। भारत में वन तथा वन्यजीवों को बचाने तथा इनके संरक्षण के लिए संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना की गई है। वर्ष 2020 तक भारत में कुल 104 राष्ट्रीय उद्यान तथा 566 वन्य जीव अभयारण्य की स्थापना की जा चुकी थी।

भारत के पहले राष्ट्रीय उद्यान ‘हेली राष्ट्रीय उद्यान’ (इसे आज कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान के नाम से जाना जाता है) की स्थापना वर्ष 1936 में हुई थी, परंतु सही मायने में वर्ष 1973 में भारत सरकार की ‘बाघ परियोजना’ लागू होने के बाद संरक्षित क्षेत्रों के तंत्र में अधिक मजबूती आई। 1972 में भारत में वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम लागू किया गया जिसमें देश के संरक्षित क्षेत्रों एवं वन्यजीवों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की गई है। देश के संरक्षित क्षेत्र जैविक संसाधनों के भंडार हैं। ये संपूर्ण मानव जाति के लिए आवश्यक प्राकृतिक सेवाएं जैसे-हवा तथा जल का शुद्धीकरण, वषा, बाढ़ तथा तापमान नियंत्रण और फसलों का परागण इत्यादि करते हैं।

jagran

भारत में अधिकांश संरक्षित क्षेत्रों का क्षेत्रफल लगभग 400 से 500 वर्ग किलोमीटर ही है। संरक्षित क्षेत्रों का आकार में कम होना कुछ वन्यजीवों जैसे-बाघ तथा हाथी के संरक्षण के दृष्टिगत चिंता का विषय है, क्योंकि इन जीवों को अपने जीवन चक्र की पूíत के लिए बड़े क्षेत्रों की आवश्यकता होती है। वन क्षेत्र में एक वयस्क नर बाघ के रहने के लिए आवश्यक क्षेत्र की सीमा लगभग 200 वर्ग किमी तथा एक वयस्क नर हाथी के लिए यह सीमा क्षेत्र 400 वर्ग किमी तक हो सकती है। अर्थात इन वन्यजीवों को अपने देश में संरक्षित करने के लिए हमें और अधिक तथा बड़े वन क्षेत्रों की आवश्यकता है। अपने छोटे आकार के अतिरिक्त कुछ संरक्षित क्षेत्र अन्य संरक्षित क्षेत्रों से आंशिक अथवा पूर्ण रूप से पृथक हैं जिससे इन क्षेत्रों में पाए जाने वाले जीवों का दीर्घकालीन संरक्षण चुनौतीपूर्ण प्रतीत होता है।

विभिन्न विखंडित संरक्षित क्षेत्रों के मध्य वन्यजीवों के आवागमन को सुगम एवं सुरक्षित बनाने के लिए इन क्षेत्रों को ‘जैविक गलियारों’ के माध्यम से जोड़े जाने की आवश्यकता है। जैविक गलियारे दो अथवा अधिक वन प्रखंडों के मध्य वन्यजीवों के आवागमन तथा विचरण के लिए प्राकृतिक मार्ग हैं। ये मार्ग विभिन्न स्वरूपों में हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर-कृषि भूमि, नदी और बहुउद्देशीय वन। विभिन्न क्षेत्रों के मध्य वन्यजीवों का आवागमन कई कारणों से होता है। पहला, इससे प्रजातियों में अंत: प्रजनन की संभावना कम होती है। अंत: प्रजनन से वह प्रजाति हमेशा के लिए विलुप्त भी हो सकती है।

दूसरा, वन्यजीव प्राकृतिक आपदाओं जैसे-बीमारी का फैलाव, बाढ़, अग्नि इत्यादि से अपना बचाव कर सकते हैं। जाहिर है ये जैविक गलियारे महत्वपूर्ण पारिस्थितिकीय क्षेत्र हैं, परंतु कभी-कभी इनका संरक्षण एक अत्यधिक दुरूह कार्य भी होता है, क्योंकि सामान्य तौर पर जैविक गलियारे वन तथा संरक्षित क्षेत्रों के बाहर पाए जाते हैं। ऐसी स्थिति में वन अधिकारियों तथा कर्मचारियों द्वारा इनका संरक्षण दुष्कर हो जाता है।

उत्तर प्रदेश में भारत सरकार के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण एवं भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा संचालित अखिल भारतीय बाघ गणना वर्ष 2018 के अनुसार कुल 173 बाघ हैं। इनमें से बाघों की अधिकांश आबादी पीलीभीत तथा दुधवा टाइगर रिजर्व में विचरण करती है। जैसे एक अवयस्क बाघ जिसको सर्वप्रथम किशनपुर वन्य जीव विहार में पाया गया था। यह बाघ कुछ समय बाद दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में देखा गया।

किशनपुर वन्य जीव विहार तथा दुधवा राष्ट्रीय उद्यान आपस में 30 किलोमीटर की दूरी पर हैं। इसी तरह दुधवा-कतíनयाघाट जैविक गलियारा विगत वर्षो में कई बार गैंडों के द्वारा प्रयोग किया गया है। उत्तर प्रदेश में कृषि भूमि से होकर वन्यजीवों का यह आवागमन दीर्घकालीन वन्य जीव संरक्षण की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण है।

संरक्षण की प्रक्रिया में स्थानीय समुदाय भी एक महत्वपूर्ण साझीदार है। विश्व बाघ दिवस एक महत्वपूर्ण अवसर है जब हम वन क्षेत्रों के समीप रहने वाले समुदायों तक यह अपील पहुंचा सकते हैं कि वन तथा वन्यजीवों का संरक्षण संपूर्ण मानव जाति के हित में है। पृथ्वी का प्रत्येक जीवित प्राणी एक विशाल जीवन चक्र का हिस्सा मात्र है तथा सभी प्रजातियों का अस्तित्व एक दूसरे पर निर्भर है। जैविक गलियारों के संरक्षण के लिए स्थानीय समुदाय को अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी तथा सरकार एवं वन विभाग के साथ मिलकर सभी प्राकृतिक संरचनाएं जैसे नदी, तालाब तथा कृषि भूमि को इसके वर्तमान स्वरूप में बनाए रखना होगा। वन्य जीव हमारी संस्कृति तथा जीवन का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। इस तंत्र को संरक्षित करने की जिम्मेदारी हम सभी की है।

विश्व बाघ दिवस एक महत्वपूर्ण अवसर है जब हम वन क्षेत्रों के समीप रहने वाले समुदायों तक यह अपील पहुंचा सकते हैं कि वन तथा वन्यजीवों का संरक्षण संपूर्ण मानव जाति के हित में है।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!