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टाइम मैगजीन ने ‘प्यासा’ और ‘कागज के फूल’ को 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची में किया शामिल. - श्रीनारद मीडिया

टाइम मैगजीन ने ‘प्यासा’ और ‘कागज के फूल’ को 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची में किया शामिल.

टाइम मैगजीन ने ‘प्यासा’ और ‘कागज के फूल’ को 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची में किया शामिल.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

गुरु दत्त हिंदी सिनेमा का वह नाम हैं, जो ‘चौदहवीं के चांद’ की तरह फिल्माकाश पर दिखे तो कम समय के लिए, लेकिन उनकी चांदनी की ठंडक सिनेप्रेमियों को आज भी महसूस होती है। नौ जुलाई गुरु दत्त की जन्मतिथि होती है। जन्मतिथि पर किसी को याद करने की रवायत है तो चलिए याद करें उस चित्रों के चितेरे को, जिसने ‘प्यासा’ और ‘कागज के फूल’ जैसी कविताओं को सेल्यूलॉयड पर उतारा। गुरु दत्त हिंदी सिनेमा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं, क्योंकि उनकी फिल्मों को क्लासिक फिल्मों का दर्जा प्राप्त है।

टाइम मैगजीन ने ‘प्यासा’ और ‘कागज के फूल’ को 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची में शामिल किया है। ‘प्यासा’ गुरु दत्त का सपना था। कहते तो यह भी हैं कि यह उनकी अपनी कहानी है। ‘प्यासा’ पर उनके जीवन की छाप होना लाजिमी है, क्योंकि गुरु दत्त ने इसकी पटकथा को अपने संघर्ष के दिनों में आत्मकथ्यात्मक शैली में लिखा था। उन दिनों वह मुंबई के माटुंगा में अपने परिवार के साथ एक छोटे से घर में रहा करते थे। सफलता तो दूर, काम पाने के लिए भी दर-दर भटकना पड़ रहा था।

गुरु दत्त ने संघर्ष का लंबा दौर देखा। जो सफलता उन्हें बाद में हासिल हुई उसके पीछे की कहानी काफी उतार-चढ़ाव से भरी हुई है। वह ‘प्यासा’ पर फिल्म बनाना चाहते थे। छोटी-मोटी सफलताएं मिलने लगी थीं, लेकिन यह उनकी बौद्धिक भूख को शांत करने के लिए नाकाफी थी। ‘प्यासा’ की स्क्रिप्ट लेकर वह निर्माताओं के पास जाया करते। हर जगह से इन्कार मिलता। कहते तो यहां तक हैं कि एक निर्माता ने ‘प्यासा’ की स्क्रिप्ट को गुरु दत्त के सामने ही उठाकर फेंक दिया था। इस बात की सच्चाई तो नहीं पता, पर शायद अवहेलना की यही तड़प इस फिल्म में दिखाई देती है। जो हर उस व्यक्ति के दिल को छू जाती है, जिसने कभी न कभी अवहेलना और सामाजिक उपेक्षा का प्याला पिया है।

गुरु दत्त निर्देशक, निर्माता, स्क्रिप्ट राइटर, सिनेमेटोग्राफर और एक्टर भी थे। 1950 से 1962 का समय गुरु दत्त का था। इसी बीच उनकी ‘प्यासा’ के अतिरिक्त ‘कागज के फूल’, ‘चौदहवीं का चांद’, ‘साहब बीवी और गुलाम’, ‘बाजी’ और ‘मिस्टर मिसेज 55’ आदि फिल्में आईं। अभिनेता के तौर पर वह बेहतरीन अदाकार तो थे ही, हैंडसम भी कुछ कम न थे। सूट-बूट में हैंडसम दिखने वाले अभिनेता तो बहुत हैं, पर धोती-कुर्ता जैसे पारंपरिक परिधान में भी वह गजब के सजीले दिखते थे।

‘साहब बीवी और गुलाम’ के उस गांव के गंवई भूतनाथ को भला कौन भूल सकता है। इन सबसे परे फिल्मी पर्दे पर गुरु दत्त की प्रतिभा उनके कला पक्ष में अद्भुत तरीके से दीप्त हो उठती है। दृश्य को सशक्त बनाने में उनकी लाइटिंग व्यवस्था का जवाब नहीं था। ‘कागज के फूल’ का एक-एक सीन इसका उदाहरण है। गानों के फिल्मांकन में गुरु दत्त सिद्धहस्त थे। स्टोरी की ही तरह वह गानों को फिल्माने में भी बहुत मेहनत करते थे। ‘जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं..’ गाना इस बात का सुबूत है।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी गुरु दत्त निजी जीवन में एकाकी और दुखी थे। कम लोग जानते हैं कि गीता दत्त से पहले भी गुरु दत्त ने दो शादियां की थीं। उनकी पहली पत्नी का नाम विजया और दूसरी का नाम सुवर्णा था। गीता उनकी सर्वविदित पत्नी थीं। हालांकि उनके साथ भी गुरु दत्त का वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं रहा। वहीदा रहमान के प्रति उनका आकर्षक एक ओपन सीक्रेट है। सब जानते हैं कि गुरु दत्त वहीदा रहमान को चाहते थे, लेकिन वहीदा उनके साथ सिर्फ प्रोफेशनल रिश्ता रखना चाहती थीं। वहीदा रहमान से वह अपने रिश्ते को कोई परिणति नहीं दे पाए और गीता से उनकी निभी नहीं।

गुरु दत्त को करीब से जानने वाले बताते हैं कि उनके स्वभाव में एक अजीब-सी बेचैनी थी। वह कभी भी संतुष्ट नहीं होते थे। उनका यह स्वभाव उन्हें काम में सफल और रिश्तों में असफल बनाता था। कैफी आजमी ने आकाशवाणी पर दिए एक इंटरव्यू में गुरु दत्त को बेहद निराशावादी बताया था। उनका मानना था कि उदासी और नैराश्य उन्हें आकर्षति करता था। उन्होंने ‘कागज के फूल’ के समय का एक वाक्या भी सुनाया। फिल्म के क्लाइमेक्स के लिए एक गाना चाहिए था। कैफी आजमी ने एक के बाद एक कई गीत लिखकर गुरु दत्त को दिखाए।

गुरु दत्त को कोई भी गीत पसंद नहीं आ रहा था। मामला झल्लाहट की हद पर पहुंचने वाला था। आखिरी कोशिश के तौर पर कैफी साहब ने निराशा से भरा गीत लिखा-‘देखी जमाने की यारी, बिछड़े सभी बारी बारी..।’ गीत सुनकर गुरु दत्त खुशी से झूम उठे। कैफी साहब इस घटना को गुरु दत्त के निराशावादी स्वभाव से जोड़ते हैं। यही निराशावाद अवसाद का रूप लेकर गुरु दत्त को शराब में डूबो दिया करता था। 10 अक्टूबर, 1964 को गुरु दत्त अपने फ्लैट में मृत पाए गए। उनकी मौत अधिक शराब पीने से हुई थी। शराब उन्होंने जानबूझकर ज्यादा पी या अनजाने में यह कोई नहीं जानता। हां, यह जरूर है कि इस दिन हिंदी सिनेमा ने एक महान फिल्मकार को सिर्फ इसलिए खो दिया, क्योंकि वह अपनी सफलताओं और असफलताओं को संभाल नहीं सका।

गुरु दत्त की फिल्मों को क्लासिक फिल्म का दर्जा प्राप्त है। टाइम मैगजीन ने ‘प्यासा’ और ‘कागज के फूल’ को 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची में शामिल किया है।

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