गाँधी जी की आज एक बार फिर जयंती है।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मोहन दास करमचंद गांधी आज आनंदित है। आनंदित भी क्यों ना हो, आज उनकी 155 वीं जयंती है। देश के प्रत्येक गांव, नगर, विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, में गांधी जी की जयंती मनाई जा रही है। उनकी आदमकद प्रतिमा उनके तैल चित्र पर पुष्प अर्पित किए जा रहे हैं। प्रातः से ही बच्चों ने प्रभातफेरी निकाल रखी है।

स्वच्छता पखवाड़ा का समापन दिवस भी मनाया जा रहा है। कुछ सरकारी एवं कुछ गैर सरकारी आयोजनों में गांधीजी पूरी तरह से आज निखर कर सामने आ रहे है। सेमिनार एवं संगोष्ठी का आयोजन भी रहा है। सुभाष चंद्र बोस द्वारा राष्ट्रपिता की उपाधि से सम्मानित किए गए गांधीजी आज हमारे बीच प्रत्यक्ष रूप से तो नहीं है किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से वह सदा विद्यमान रहेंगे। गांधी जी जैसे व्यक्तित्व को हमने अपने विविधता के नाम पर विचारों में उलझा कर रख दिया है, उन्हें अपने विचारों से भला एवं बुरा कहने की परिपाटी बना ली है।

बताया जाता है कि विश्व के 150 से अधिक देशों के विश्वविद्यालयों में गांधी अध्ययन केंद्र है और हो भी क्यों ना क्योंकि 20वीं शताब्दी में चार विचारधाराओं ने पूरे विश्व को प्रभावित किया, उसमें गांधीवाद, डार्विनवाद, मार्क्सवाद और फ्राइडवाद रहा।

गांधी जी के नाम पर भारतवर्ष में जिस प्रकार की आस्था और श्रद्धा देखनी चाहिए, वह नहीं है। वह केवल राजनीति रूप से ही हमारे विभिन्न नगरों के चौक-चौराहा,खेल मैदानों एवं प्रतिष्ठानों में विद्यमान है। विडंबना है कि नई पीढ़ी को गांधी के वचनों से अवगत नहीं कराया जा रहा है और वह जानना भी नहीं चाहते, इसलिए गांधी के प्रति कोई विशेष श्रद्धा ना होकर नई पीढ़ी आत्म केंद्रित, आत्ममूढ़ हो गई है।

गांधी जी के नाम पर कई विद्यालय, महाविद्यालयों,प्रतिष्ठानों में औपचारिक कार्यक्रम के बाद अवकाश भी घोषित है। कार्यक्रम को लेकर बहुत ज्यादा लोगों में गंभीरता नहीं है फिर यह हम मान सकते हैं कि गांधी जी की जो भावना हमारे राष्ट्र के प्रति थी, वह हमारी भावना गांधी के प्रति नहीं है।

बहरहाल गांधी को भुला देना अपने राष्ट्र को, राज्य को, देश को भुला देना है। गांधी जी पर विचार होना चाहिए, गांधी हमारे श्रद्धा के केंद्र होने चाहिए, गांधी हमारी नित्य दिनचर्या में आने चाहिए, गांधी जनमानस की चर्चा है, वृति है, आलेख है, संबोधन है और सबसे बढ़कर वह हमारे भविष्य है।

 

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