आज गुरुजी की पुण्यतिथि है- संजय सिंह
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
2012 की बात हैं। कॉलेज अभी अभी खुला था । पढ़ाई होने लगी थी । अध्यापक कम थे । विद्यार्थी उत्साहित । गुरुजी सुबह उठते । कॉलेज के अंदर बाहर की सफाई करते । नहा धोकर तुरंत शिक्षक की भूमिका में होते । विद्यार्थियों के प्रिय शिक्षक । साहित्य, दर्शन,राजनीति,समाजशास्त्र, इतिहास सब कुछ पढ़ा सकनेवाले इकलौते शिक्षक ।
परीक्षाएं नजदीक थीं । विद्यार्थी घर पर पढ़ नहीं पा रहे थे । ज्यादातर लड़कियां थीं । घर के काम से उन्हें फुर्सत नहीं मिलती । गुरुजी ने उनके अभिभावकों से बात किया । कहा दिन भर बेटियां कॉलेज में रहेंगी । कुछ दिन घर का काम आप करें ।
सूर्योदय होते ही कक्षाएं शुरू हो जातीं । खाने की व्यवस्था समुदाय कर रहा था । किसी ने चावल दिया, किसी ने दाल, किसी ने खेतों की सब्जियां । बनाने से लेकर परोसने तक का काम गुरु जी का होता ।
एक व्यक्ति चपरासी से लेकर रसोइया तक और कॉलेज प्रोफेसर से लेकर प्राथमिक शिक्षक तक की भूमिकाओं को कैसे जी सकता है ? इतना विविधता भरा सामर्थ्य मैने अपने जीवन में नहीं देखा है । हैंड पंप चलाकर शौचालय में पानी डालते हुए चेहरे पर वही आनंदभाव रहता जो रेडियो पर लता जी के गीत सुनते समय ।
बालपन की छोटी उंगलियों को किताबों के पन्ने पलटने की आदत हुई । जवानी में गति और द्रुत हुई । बूढ़े वह हुए नहीं । जीवन भर अध्ययन ..जीवन भर अध्यापन । मैने अपनी आंखों से देखा है कितने स्वनामधन्य ज्ञानियों का भ्रम टूटते हुए । उनकी बौद्धिकता की परमहंसीय आंच में विवेक होते हुए ।
आज गुरुजी की पुण्यतिथि है । मृत्यु जीवन की सच्चाई है । एक दिन ले जाती है । जीवन और जीवन का काम धरती पर रह जाता है । एक गांव को कर्मक्षेत्र बनाकर गुरुजी ने जो काम किए वे महत्व रखते हैं ।
देश ने कहा जाति तोड़ो । उन्होंने जनेऊ तोड़ दिया । हरिजन सहभोज किया । बिरादरी से निकाले गए । पिता की गालियां सुनीं । तनिक भी विचलित नहीं हुए । अस्पृश्य कही जानेवाली जातियों के टोले में बैठकर बच्चों कोविद्या सिखाई । उनका नाखून काटा। कपड़े धोए। अपने हाथों से नहलाया । उन्हें स्कूल भेजने के लिए उनकी माताओं को विवश किया ।
लड़कियों के लिए इंटर कॉलेज । संगीत महाविद्यालय । पुस्तकालय की नई बिल्डिंग । जीवन भर की कमाई गई पूंजी से कॉलेज। किसी भी संस्था में घर का कोई नहीं ।आनेवाली पीढियां यकीन करती रहें कि एक हाड़ मांस का बना व्यक्ति था जिसने मरुस्थल में पानी का अजस्र स्रोत बना डाला, गुरुजी को याद करना जरूरी है ।
सादर नमन कर्मयोगी ।
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