आजु मिथिला नगरिया निहाल सखिया…

आजु मिथिला नगरिया निहाल सखिया…

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

सर्वेश तिवारी श्रीमुख, गोपालगंज, श्रीनारद मीडिया :

आज भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह की वर्षगाँठ है। यहीं मिथिला की ही थीं सीता, नाता जोड़ दूँ तो बुआ निकल आएंगी। एक पीढ़ी पहले तक हमारे बुजुर्ग अवध वालों से इसी नाते को लेकर ठिठोली करते थे। ठीक भी है, विवाह मात्र दो व्यक्तियों या एक पीढ़ी का सम्बन्ध नहीं जोड़ता, वह युगों युगों तक के लिए सम्बन्ध जोड़ता है। जानते हैं, विवाह के समय वर-बधु को जिस ध्रुवतारे का दर्शन कराया जाता है, वह पृथ्वी से इतनी दूर है कि उसका प्रकाश धरती तक पाँच सौ वर्षों में पहुँचता है। अब यदि उस ध्रुवतारे को साक्षी मान कर दो लोगों की गाँठ बाँधी जाय, तो सम्बन्ध कमसे कम उसका प्रकाश पहुँचने तक तो चले न…

मुझे लगता है ‘सनातन विवाह’ इस सृष्टि की सबसे पवित्र व्यवस्था है। सोचता हूँ, विवाह मण्डप में सखियों की गाली सुन कर राम भी उसी तरह मुस्कुराये होंगे न, जिस तरह हजार वर्षों बाद आज भी एक वर, ससुराल में कन्या की सखियों से “पहुना की बहिना छिनारी…” सुन कर मुस्कुरा उठता है। विदा होने के पूर्व जब अपने नइहर की सम्पन्नता के लिए आशिर्वाद स्वरूप सीता अँजुरी भर-भर चावल पीछे फेंकती हुई आगे बढ़ी होंगी, तो राम को भी हल्का क्रोध अवश्य आया होगा कि सब अन्न जनकपुर की ओर ही क्यों फेंक रही है, कुछ अयोध्या की ओर क्यों नहीं फेंकती। और विदा होती सीता जब अपनी माँ से लिपट कर रो रही होंगी, तब राम ने भी चुपके से अपनी आंखों को गमछे के कोर से उसी तरह पोंछा होगा जिस तरह हजारों वर्षों बाद किसी दिन मैंने… सीता-राम यूँ ही भारत के माता-पिता नहीं हैं न!

अयोध्या जैसे महान साम्राज्य की महारानी बन कर जाती सीता के आँचल में भी उनकी माँ ने हल्दी की दो गाँठ के साथ आधा किलो चावल अवश्य बाँध दिया होगा। उन्हें भी सिखाया गया होगा,”बेटी! पति का साथ कभी न छोड़ना…” सबकुछ आज जैसा ही तो होगा…

यदि सामान्य रूप से देखें तो आप सोचेंगे कि सीता ने राम के रूप में आखिर ऐसा क्या पा लिया था जो उनके जाने के हजारों वर्षों बाद आज भी उनकी धरती पर उनके सौभाग्य की बड़ाई करते हुए फगुआ में गाया जाता है “धनि धनि हे सिया रउरी भाग, राम वर पायो…” भगवान राम की पूरी युवावस्था निर्वासन में ही निकल गयी, उन्होंने सीता को ऐसा कौन सा सुख दे दिया होगा! मिथिला जैसे नगर, ‘जहाँ आज तक बेटियों का माँ दुर्गा के समान आदर होता है’ में जन्म लेने वाली राजकन्या तेरह वर्ष वन-वन भटके, और वर्ष भर किसी दुष्ट के यहाँ कैद कर रखी जाय और तब भी उसे सौभाग्यशालिनी कहें, यह कैसा सौभाग्य है?

पर नहीं। एक पति-पत्नी के रूप में वे तेरह वर्ष उनके जीवन के सर्वश्रेष्ठ वर्ष थे जो उन्होंने वन में बिताया था। सोचता हूँ, चित्रकूट की उनकी पर्णकुटी के बाहर वसंत ऋतु में जब किसी गुलाब की टहनी से पहली कली फूटती होगी, तब उसे देख कर दोनों एक ही साथ मुस्कुरा उठते होंगे। पर्णकुटी की मेढ़ पर बैठा कोई कौवा जब कर्कश स्वर में बोलता होगा तो दोनों के मुँह से एक ही साथ “कोह…” की दुत्कार निकलती होगी और फिर चिहुँक कर दोनों खिलखिला उठते होंगे। उन तेरह वर्षों में दोनों ने प्रत्येक सूर्योदय में सूर्य को सङ्ग-सङ्ग प्रणाम किया होगा, प्रत्येक सन्ध्या में उन्होंने चन्द्रमा को एक साथ देखा होगा, वन में बहने वाली हवा का एक ही झोंका उन दोनों के केशों को उड़ा देता होगा, हर वर्षा में वे दोनों एक ही मेघ के जल से भीगे होंगे, या स्पष्ट कहें तो दोनों ने इन तेरह वर्षों को एक साथ जिया होगा। सुख और भी कुछ होता है क्या??

सच कहूँ तो विश्व इतिहास की सभी सभ्यताओं के पौराणिक पुरुषों में अपनी पत्नी से जितना प्रेम राम ने किया उतना किसी ने नहीं किया। राम ने सीता को अपने जीवन के तेरह वर्ष दे दिए, आज हम तेरह दिन नहीं दे पाते।

तनिक सोचिये तो, कितने पुरुष हैं जो अपनी पत्नी के लिए रोते हैं? समानता और आधुनिकता के लंबे लम्बे दावों के बाद भी कोई पति अपनी पत्नी के लिए दुनिया के सामने नहीं रोता, उसका पुरुषवादी अहंकार उसे कठोर बना देता है, पर राम अपनी पत्नी के लिए पेंड़ की डालियाँ पकड़-पकड़ कर रोये थे। सोचता हूँ, कैसा होगा वह क्षण, जब तात्कालिक विश्व का सर्वश्रेष्ठ योद्धा राम अपनी आँखों मे जल भर कर एक मासूम बच्चे की तरह मूक पशु-पक्षियों से पूछता होगा “किसी ने मेरी सीता को देखा है?” कोई सन्देह नहीं कि तब राम के साथ सारी प्रकृति रोयी होगी। यह राम के प्रेम की ही शक्ति थी, जो उन्होंने उस अपरिचित क्षेत्र में बानर-भालुओं की उतनी बड़ी सेना खड़ी कर ली। सीता भाग की धनी तो थीं ही जो उन्हें राम मिले।

कितना अद्भुत है, कि जब रावण ने राम और सीता को अलग किया तो उन्हें मिलाने के लिए समूची सृस्टि उतर आई। बानर सुग्रीव, भालू जामवंत, गिद्ध जटायू, राक्षस विभीषण, देवता इंद्र… ऐसा और कहीं हुआ है क्या?

आजकल जब कोई मित्र अपने विवाह की वर्षगाँठ पर पत्नी के साथ मुस्कुराती हुई तस्वीर फेसबुक पर डालते हैं, तो उनकी तस्वीर से झलकता “प्रेम” उन्हें अनायास ही मेरे राम-सीता की महान परम्परा से जोड़ देता है।

राम-सीता भारत के बाबा-अईया हैं। उनकी कृपा हमेशा बनी रहे हमपर… जय हो भारत की! जय हो धर्म की!

सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज बिहार।
17 दिसंबर 2023 विवाह पंचमी

यह भी पढ़े

रघुनाथपुर पुलिस ने शराब से लदी मोटरसाकिल को किया जब्त,दो नामजद

आजु मिथिला नगरिया निहाल सखिया…

 लीबिया में जहाज डूबने से बच्चों महिलाओं समेत 61 प्रवासियों की मौत

रघुनाथपुर : भाजपा मंडल उपाध्यक्ष को पितृ शोक, इलाके में  शोक

पटना में अपराधियों ने युवक को मारी गोली, गंभीर हालत में अस्तपाल में भर्ती

Leave a Reply

error: Content is protected !!