आज का सामान्य ज्ञान🎊आइए “अमृत बाजार पत्रिका” के बारे में जानते हैं 

 

आज का सामान्य ज्ञान🎊आइए “अमृत बाजार पत्रिका” के बारे में जानते हैं

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

अमृत बाजार पत्रिका बंगला भाषा का एक प्रमुख भारतीय समाचार पत्र हुआ करता था । भारत के सबसे पुराने समाचार पत्रों में इसकी गणना होती रही है । इसका पहला प्रकाशन 20 फ़रवरी 1868 को हुआ था। इसकी स्थापना दो भाइयों शिषिर घोष और मोतीलाल घोष ने की थी। उनकी माँ का नाम अमृतमयी देवी और पिता का नाम हरिनारायण घोष था जो एक धनी व्यापारी थे।

यह पत्रिका पहले साप्ताहिक रूप में आरम्भ हुई। पहले इसका सम्पादन मोतीलाल घोष करते थे जिनके पास विश्वविद्यालय की डिग्री नहीं थी। यह पत्र अपने इमानदार व तेज-तर्रार रिपोर्टिंग के लिए प्रसिद्ध था। यह ‘बंगाली’ नामक अंग्रेजी भाषा के पत्र का प्रतिद्वंदी था जिसके कर्ताधर्ता सुरेन्द्र नाथ बनर्जी थे। अमृत बाजार पत्रिका इतना तेजस्वी समूह था कि भारत के राष्ट्रीय नेता सही सूचना के लिए इस पर भरोसा करते थे और इससे प्रेरणा प्राप्त करते थे।

ब्रिटिश राज के समय अमृतबाजार पत्रिका एक राष्ट्रवादी पत्र था। शिषिर कुमार घोष बाद में इस पत्रिका के सम्पादक बने। वे उच्च सिद्धान्तों के धनी व्यक्ति थे। ब्रिटिश सरकार ने भारतीय प्रेस को दबाने के लिए 1878 में जब देशी प्रेस अधिनियम लगाया तो सरकार के इस दूषित चाल को भाँपकर, इसके एक हफ्ते बाद ही, आनन्द बाजार पत्रिका को 21 मार्च 1878 पूर्णतः अंग्रेजी भाषा का पत्र बना दिया। पहले यह बंगला और अंग्रेजी में प्रकाशित होती थी। 19 फ़रवरी 1891 को यह पत्रिका साप्ताहिक से दैनिक बन गयी। सन् 1919 में दो सम्पादकीयों के लिखने कारण अंग्रेज सरकार ने इस पत्रिका का जमानत (डिपाजिट) राशि जब्त कर ली। ये दो सम्पादकीय थे- ‘टु हूम डज इण्डिया बिलांग?’ (19 अप्रैल) तथा ‘अरेस्ट ऑफ मिस्टर गांधी : मोर आउटरेजेज?’ (12 अप्रैल)।

जीवनपर्यन्त श्री तुषार कान्ति घोष इसके सम्पादक रहे। उनके कुशल नेतृत्व में पत्र ने अपना प्रसार बढ़ाया और बड़े पत्रों की श्रेणी में आ गया था। इस समूह ने 1937 से ‘युगान्तर’ (जुगान्तर) नामक बंगला दैनिक भी निकालना आरम्भ किया। बहुत अधिक ऋण लद जाने तथा श्रमिक आन्दोलन के चलते 1991 से इसका प्रकाशन बन्द कर दिया गया ।

1950 से पहले प्रकाशित पाठ को बचाने के प्रयास में ‘लुप्तप्राय पुरालेख परियोजना’ के एक भाग के रूप में, सेंटर फॉर स्टडीज़ इन सोशल साइंसेज, कलकत्ता ने 2010 में सुरक्षित भंडारण और पुनर्प्राप्ति के लिए पुराने समाचार पत्रों (एबीपी और जुगांतर) को डिजिटल बनाने की परियोजना शुरू की । अखबार के अभिलेख नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय , दिल्ली में भी उपलब्ध हैं, और 2011 में अखबार की एक लाख से अधिक छवियों को पुस्तकालय द्वारा डिजिटलीकृत किया गया और ऑनलाइन उपलब्ध कराया गया और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र में भी।

 

यह भी पढ़े

बिहार के राघोपुर में अपराधियों का तांडव, राघोपुर हाई स्कूल के नाइट गार्ड को मारी गोली; इलाज के दौरान मौत

डकैतों के निशाने पर पुलिसकर्मियों का घर… नवंबर में तीन जगहों पर लूटपाट

बिहार में साइबर फ्रॉड का पाकिस्तान कनेक्शन सामने आया, अंतरराष्ट्रीय गिरोह के तीन शेयरों को सीमांचल से किया गया गिरफ्तार 

सीवान में दो दिन से लापता युवक का तालाब में मिला शव

पटना पुलिस ने पांच स्नैचर को किया गिरफ्तार, भारी मात्रा में जेवरात और हथियार बरामद

करोड़ों के आभूषण लूटकांड में समस्तीपुर का बदमाश गिरफ्तार, केस में 49 आरोपी भेजे जा चुके हैं जेल

मुजफ्फरपुर में आपराधिक वारदात को अंजाम देने पहुंचे दो शातिर अपराधी, हथियार और कारतूस के साथ पुलिस ने किया गिरफ्तार

मानव अधिकारों के संरक्षण में न्यायालय की भूमिका अहम – जिला जज

पटना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के कर कमलो द्वारा मेधा छात्रवृति सह कंबल वितरण समारोह संपन्न

Leave a Reply

error: Content is protected !!