टीबी मरीजों की खोज और इलाज के लिए चिकित्सकों को दिया गया प्रशिक्षण

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– एक टीबी मरीज की पहचान होने पर उनके परिजनों की जांच जरूरी
– जिले में 03 हजार 317 टीबी मरीजों को खिलाई जा रही दवाई
– टीबी मरीजों के सहयोग के लिए जिले में 108 निक्षय मित्र

– पूर्णिया जिला का टीबी उपचार सक्सेस रेट 91 प्रतिशत से अधिक

श्रीनारद मीडिया, पूर्णिया, (बिहार):


यक्ष्मा (टीबी) उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत टीबी रोगियों की खोज करते हुए उनकी समय से जांच, नियमित दवा एवं पूरा उपचार के साथ साथ टीबी से बचाव के लिए सभी पल्मोनरी टीबी रोगियों के संपर्क में रहने वाले बच्चों, वयस्कों का भी ट्रीटमेंट किया जाना है।

टीबी उन्मूलन कार्यक्रम की अद्यतन जानकारी के संबंध में जीत 2.0 कार्यक्रम अंतर्गत जिला यक्ष्मा केंद्र, पूर्णिया एवं वर्ल्ड विजन द्वारा जिले के सभी प्रखंडों में कार्यरत दो चिकित्सकों को पूर्णिया जिले के एक  होटल में एकदिवसीय प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण के माध्यम से सभी चिकित्सकों को टीबी मरीजों की पहचान करते हुए उन्हें सही समय पर आवश्यक उपचार उपलब्ध कराने की जानकारी दी गई। एक दिवसीय प्रशिक्षण में सिविल सर्जन डॉ अभय प्रकाश चौधरी, जिला कार्यक्रम प्रबंधक सोरेंद्र कुमार दास, जिला संचारी रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ मिहिरकान्त झा, डीपीएस राजेश शर्मा, डीएएम पंकज कुमार मिश्रा, डब्ल्यूएचओ कंसल्टेंट डॉ. (मेजर) अवकाश सिन्हा, टीबीडीसी पटना से डॉ रंजीत कुमार, वर्ल्ड विजन जिला समन्वयक अभय कुमार श्रीवास्तव, जिला सहायक अजय अकेला, केएचपीटी जिला समन्वयक अरुणेंदु झा, यक्ष्मा केंद्र डेटा ऑपरेटर अमित कुमार, सहित अन्य अधिकारी और सभी प्रखंडों के चिकित्सक उपस्थित रहे।

विश्व स्तर पर भारत में टीबी संक्रमण का अनुमानित बोझ सबसे अधिक :

कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए सिविल सर्जन डॉ अभय प्रकाश चौधरी ने सभी चिकित्सकों को बताया कि विश्व स्तर पर भारत में टीबी संक्रमण का अनुमानित बोझ सबसे अधिक है। लगभग 35-40 करोड़ भारतीय आबादी को टीबी है, जिनमें से 26 लाख लोगों को सालाना टीबी रोग होने का अनुमान है। संक्रमित लोगों में से 5-10 प्रतिशत को अपने जीवन के दौरान आमतौर पर प्रारंभिक संक्रमण के बाद पहले 2 वर्षों के भीतर टीबी रोग हो जाता है। सक्रिय टीबी के रोगी के संपर्क में आने के बाद 75 प्रतिशत आम लोगों में भी टीबी विकसित होने का अनुमान है। इसकी समय पर पहचान करते हुए उनका इलाज होना आवश्यक है। इसके लिए सभी चिकित्सकों को अस्पताल में इलाज के लिए उपस्थित मरीजों पर ध्यान रखना जरूरी है। समय पर मरीजों की पहचान करते हुए उनका उपचार करने से देश टीबी उन्मूलन कार्यक्रम को सफल बना सकता है। प्रशिक्षण में जिला कार्यक्रम प्रबंधक सोरेंद्र कुमार दास ने बताया कि नीति आयोग के रिपोर्ट के अनुसार जिले के सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में टीबी केस पहचान रिपोर्ट 83.15 प्रतिशत है। इसमें  91 प्रतिशत से अधिक टीबी रोगियों को उपचार उपलब्ध कराते हुए उन्हें टीबी मुक्त किया जा रहा है। सभी चिकित्सकों को अपने अस्पताल में संभावित टीबी मरीजों की पहचान करते हुए उनका उपचार करवाना चाहिए जिससे कि देश टीबी मुक्त हो सके।

 

एक टीबी मरीज की पहचान होने पर उनके परिजनों की जांच जरूरी :

चिकित्सकों को प्रशिक्षण देते हुए डब्ल्यूएचओ कंसल्टेंट डॉ (मेजर) अवकाश सिन्हा ने बताया कि टीबी बीमारी किसी भी व्यक्ति को नाखून और बाल को छोड़कर कहीं भी हो सकती है। टीबी बीमारी की पहचान चार तरह से किया जा सकता है। दो सप्ताह से अधिक खांसी होना, बुखार, वजन का लगातार कम होना और रात में बहुत पसीना आना। इसके अलावा बच्चों में किसी टीबी मरीजों में सम्पर्क में आने से या वजन बढ़ाने में हो रही समस्या भी टीबी ग्रसित होने की पहचान हो सकती है। इसके अलावा टीबी मरीजों के सम्पर्क में आने वाले परिजनों, एचआईवी संक्रमित, डाइबिटीज, कैंसर होने वाले मरीजों को भी टीबी ग्रसित होने की संभावना है। अस्पताल में ऐसे मरीजों की पहचान होने पर उनकी टीबी जांच जरूर करवानी चाहिए। टीबी संक्रमित मरीजों की पहचान होने पर उनके संपर्क में रहने वाले अन्य लोगों की भी टीबी जांच होनी चाहिए। समय पर टीबी की पहचान कर इसका नियमित इलाज करने से लोग टीबी बीमारी से सुरक्षित हो सकते हैं। सभी चिकित्सकों को अपने सरकारी एवं प्राइवेट स्वास्थ्य केंद्र में जांच के लिए उपस्थित हो रहे मरीजों में टीबी के लक्षण का भी ध्यान देते हुए और ऐसे मरीजों का उपचार करवाना चाहिए। इसके साथ साथ अन्य लोगों को टीबी बीमारी के लिए जागरूक करना चाहिए ताकि ज्यादातर लोग ऐसे मरीजों की पहचान कर समय पर इलाज करवा सकें।

जिले में 03 हजार 317 टीबी मरीजों को खिलाई जा रही दवाई :

जिला संचारी रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ मिहिरकान्त झा ने बताया कि जिला यक्ष्मा केंद्र पूर्णिया से कुल 03 हजार 317 मरीजों का इलाज किया जा रहा  है। इसके लिए सभी मरीजों को हर माह आवश्यक दवाई के साथ बेहतर प्रबंधन के लिए खाद्य सामग्री भी दी जाती है। टीबी ग्रसित मरीज कुपोषण से ग्रसित होते हैं। जिन्हें पर्याप्त आहार की जरूरत होती है। ऐसे मरीजों को सहयोग करने के लिए यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम के तहत निक्षय प्रोग्राम भी चलाया जाता है। जिसके तहत सामान्य लोगों द्वारा टीबी मरीजों को गोद लेकर उन्हें स्वस्थ होने तक पोषण सामग्री प्रदान की जाती है। पूर्णिया जिले में टीबी मरीजों को गोद लेने वाले 109 निक्षय मित्र हैं। जिनके द्वारा मरीजों को समय समय पर पोषण सामग्री दी जाती है।

पूर्णिया सहित पांच अन्य जिलों में चल रहा है जीत 2.0 कार्यक्रम:

वर्ल्ड विजन इंडिया के जिला समन्वयक अभय कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि टीबी मरीज के संपर्क में रहने वाले 5 आयु वर्ग से ऊपर के बच्चों का एक्सरे करना बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है। जीत 2.0 कार्यक्रम राज्य के 5 जिलों जिसमें पूर्णिया, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी और सारण में चलाया जा रहा है। कॉन्ट्रेक्ट ट्रेसिंग के दौरान टीबी मरीज के संपर्क में रहने वाले 05 आयु वर्ग के छोटे-छोटे बच्चे को चिकित्सकों के द्वारा लिखी गई दवा आइसोनियाजाइद और 05 आयु वर्ग के ऊपर के लोगों को एक्सरे के बाद आइसोनियाजाइद दवा छः महीनें तक लगातार खिलायी जाती है। जिससे टीबी संक्रमण का फैलाव जड़ से खत्म किया जाए।

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