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चर्चित मनीष हत्याकांड का ट्रायल दिल्ली हो सकता है शिफ्ट! - श्रीनारद मीडिया
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चर्चित मनीष हत्याकांड का ट्रायल दिल्ली हो सकता है शिफ्ट!

चर्चित मनीष हत्याकांड का ट्रायल दिल्ली हो सकता है शिफ्ट!

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में कानपुर प्रापर्टी डीलर मनीष गुप्ता के सनसनीखेज हत्याकांड का ट्रायल गोरखपुर से दिल्ली ट्रांसफर हो सकता है। पुलिस की पिटाई से मनीष की मौत के बाद उसे इंसाफ दिलाने की जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट की वकील सीमा समृद्धि ने ली है। इसकी पुष्टि खुद मृतक मनीष की पत्नी मीनाक्षी ने की है। संभवत: वह इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी भी देंगी।

कौन हैं सीमा समृद्धि?
निर्भया को इंसाफ दिलाने और दोषियों को फांसी दिलाने में सुप्रीम कोर्ट की वकील सीमा समृद्धि की बड़ी भूमिका थी। वह केस की शुरुआत से ही निर्भया की माता-पिता की वकील रही। सीमा समृद्धि ने सुप्रीम कोर्ट में रातभर दलीलें रखकर निर्भया के दोषियों को 20 मार्च की सुबह फांसी दिलाई थी। वह निर्भया ज्योति ट्रस्ट में कानूनी सलाहकार भी हैं। देश के नामी शिक्षण संस्थानों में से एक दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा हासिल करने वालीं सीमा ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट में वकालत शुरू की थी। वह 24 जनवरी, 2014 को निर्भया ज्योति ट्रस्ट से जुड़ीं। इसके बाद से वह लगातार इससे जुड़ी हुई हैं। इसके साथ ही वे हाथरेप रेप कांड, उन्नाव गैंग रेप सहित कई चर्चित केसों को लड़ने का एलान कर चुकीं हैं।

ऐसे ट्रांसफर होगा केस
दरअसल, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता यानी धारा 406 के तहत सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि वह किसी केस या अपील को एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रांसफर कर सकता है। धारा 406 के अनुसार जब भी सुप्रीम कोर्ट को यह बताया जाता है कि न्याय के लिए यह जरूरी है कि किसी विशेष मामले या अपील को एक हाईकोर्ट से दूसरे हाईकोर्ट या किसी हाईकोर्ट के अधीनस्थ आपराधिक न्यायालय में ट्रांसफर किया जाए, वह इसके निर्देश दे सकता है।

मीनाक्षी गुप्ता ने साफ तौर पर यह कहा था कि उन्हें गोरखपुर पुलिस पर जरा भी भरोसा नहीं है।
मीनाक्षी गुप्ता ने साफ तौर पर यह कहा था कि उन्हें गोरखपुर पुलिस पर जरा भी भरोसा नहीं है।

पीड़ित परिवार में गोरखपुर पुलिस का खौफ
वहीं, 27 सितंबर की रात मनीष गुप्ता हत्याकांड कांड के बाद गोरखपुर पुलिस पर तमाम सवाल खड़े हुए थे। जबकि मृतक की पत्नी मीनाक्षी गुप्ता ने साफ तौर पर यह कहा था कि उन्हें गोरखपुर पुलिस पर जरा भी भरोसा नहीं है। मीनाक्षी की मांगों को पूरा करते हुए सीएम योगी ने इस मामले की जांच कानपुर SIT को सौंप दी। SIT फिलहाल मामले की जांच कर रही है।

लेकिन पीड़ित परिवार और घटना के बाद मनीष के साथ मौजूद उनके दोस्तों में इस कदर खौफ हो गया है कि वह किसी भी हाल में गोरखपुर आने को तैयार नहीं हैं। हालांकि SIT मनीष के दोस्तों संग होटल के रूम नंबर 512 का सीन रिक्रिएशन कराना चाहती है, लेकिन वह आने को तैयार नहीं हुए। उधर, इस मामले में हत्यारोपी बनाए गए रामगढ़ताल थाने के इंस्पेक्टर जेएन सिंह सहित 6 पुलिस वालों को पुलिस गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है।

 अब तक क्या कुछ हुआ

  • 27 सितंबर की देर रात गोरखपुर के होटल में पुलिस वालों पर मनीष को पीट-पीटकर मारने का आरोप लगा।
  • 28 सितंबर को पोस्टमॉर्टम के बाद तीन पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या की FIR, 6 को सस्पेंड किया गया।
  • 29 सितंबर की सुबह परिजन शव लेकर कानपुर पहुंचे। सीएम से मिलने की जिद पर अड़े थे। अंतिम संस्कार करने से भी इनकार किया।
  • 30 सितंबर को प्रशासन के आश्वासन के बाद सुबह 5 बजे मनीष का अंतिम संस्कार किया गया। फिर उसी दिन सीएम ने मनीष की पत्नी से मुलाकात की।
  • 10 अक्टूबर की शाम रामगढ़ताल पुलिस ने इंस्पेक्टर जेएन सिंह और दरोगा अक्षय मिश्रा को गिरफ्तार किया।
  • 12 अक्टूबर को पुलिस ने दरोगा राहुल दुबे और कांस्टेबल प्रशांत कुमार को गिरफ्तार किया। 13 अक्टूबर को पुलिस ने मुख्य आरक्षी कमलेश यादव को गिरफ्तार किया था।
  • 16 अक्टूबर को पुलिस ने आखिरी आरोपी दरोगा विजय यादव को गिरफ्तार किया।

कानपुर के प्रापर्टी डीलर मनीष गुप्ता हत्याकांड में गिरफ्तार किए गए एक लाख के इनामी दरोगा विजय यादव ने SIT से पूछताछ के दौरान खुद को बेगुनाह बताया। दरोगा का कहना था कि कमरे के अंदर वे गए ही नहीं थे। वे तो सिर्फ घायल होने की सूचना पर राहुल दुबे के साथ होटल आए थे। इंस्पेक्टर साहब ने घायल मनीष को हास्पिटल ले जाने के लिए उन्हें बुलवाया था। दरोगा ने कहा कि इसके बाद हमलोग हास्पिटल ले गए थे।

इंस्पेक्टर ने बताया ​था हादसा
हालांकि इससे पहले इंस्पेक्टर जेएन सिंह और चौकी इंचार्ज रहे अक्षय मिश्रा, दरोगा राहुल दुबे और कांस्टेबल प्रशांत भी खुद को बेगुनाह बता चुके हैं। जबकि इंस्पेक्टर जेएन सिंह और चौकी इंचार्ज रहे अक्षय मिश्रा ने घटना को हादसा बताया था। उनका कहना था कि मनीष गुप्ता ने ज्यादा पी रखी थी। नशे की हालत में ही उसे चोट आई और अस्पताल ले जाने के दौरान उसकी मौत हो गई थी। वहीं, दरोगा विजय यादव ने इंस्पेक्टर जेएन सिंह द्वारा लिखी गई जीडी के इर्द-गिर्द ही अपनी पूरी कहानी बताई।

दरोगा बोले- मामला बढ़ा तो डर गए थे
विजय यादव ने बताया कि मैं राहुल दुबे के साथ क्षेत्र में था रात में इंस्पेक्टर साहब के हमराही ने फोन किया बताया कि साहब बुला रहे हैं। हमलोग होटल पहुंचे तो एक युवक घायल हाल में मिला उसके नाक के पास से खून निकल रहा था। उस वक्त तक हमें यह भी नहीं पता था कि यह युवक कौन है और कहां से आया है। उसे हास्पिटल लेकर गए। वहां से बीआरडी मेडिकल कालेज ले गए। विजय यादव ने कहा कि उनकी इस मामले में कहीं से कोई गलती नहीं थी पर जिस तरह से आरोप लग रहा था इससे वे डर गए थे। जब केस दर्ज हुआ तो उन्होंने जिला छोड़ दिया था।

SIT ने कोर्ट किया पेश, जेल गए दरोगा
वहीं, करीब 5 घंटे की पूछताछ के बाद SIT ने शनिवार की देर शाम 6 बजे दरोगा विजय यादव को रिमांड मजिस्ट्रेट अमित कुमार की अदालत में हत्या और साक्ष्य छिपाने और दफा 34 एक्ट के तहत पेश किया। कोर्ट ने उन्हें न्यायिक हिरासत में लेते हुए जेल भेज दिया। जबकि रात करीब 7 बजे विजय यादव को मंडलीय कारागार के नेहरू बैरक में दाखिल किया गया। जेल आने की सूचना पर जेल प्रशासन ने पहले से ही तैयारी कर ली थी। बैरक के अंदर उन्हें इंस्पेक्टर जेएन सिंह, अक्षय मिश्रा, राहुल दुबे और प्रशांत कुमार और कमलेश यादव मौजूद मिले।

रात के अंधेरे में ही हुई आखिरी आरोपी दरोगा की पेशी
दरअसल, कानपुर के प्रापर्टी डीलर मनीष गुप्ता गुप्ता की होटल में पुलिस पिटाई से मौत को लेकर लोगों में गुस्सा देखते हुए अधिकारियों ने दरोगा विजय यादव को भी रात के अंधेरे में ही कोर्ट में ले जाना मुनासिब समझा। कैंट पुलिस ने विजय यादव को दिन में 12.40 बजे गिरफतार किया और 5.40 बजे तक पूछताछ के बाद SIT ने कोर्ट में पेश किया।

इंस्पेक्टर जेएन सिंह और दारोगा अक्षय मिश्रा तथा उसके बाद दरोगा राहुल दुबे और कांस्टेबल प्रशांत कुमार और कमलेश यादव को भी रात के अंधेरे में ही कोर्ट में पेश किया गया था। विजय यादव के कोर्ट पहुंचने से पहले पुलिस की भारी भरकम सुरक्षा रही। दीवानी कचहरी के सभी गेट पर पुलिसकर्मी मौजूद रहे। अदालत से जेल भेजने के दौरान जेल पर भी पुलिस मौजूद रही। अन्य पांच पुलिसकर्मियों की तरह दरोगा विजय यादव को भी नेहरू बैरक में ही रखा गया।

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