बृज किशोर बाबू के त्याग और संवेदना के भाव को समझने का प्रयास ही होगी सच्ची श्रद्धांजलि.

बृज किशोर बाबू के त्याग और संवेदना के भाव को समझने का प्रयास ही होगी सच्ची श्रद्धांजलि.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

सीवान के महान सपूत बृजकिशोर बाबू की जयंती पर मात्र रस्म अदायगी का चलता आ रहा सिलसिला.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सीवान के सपूत और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए चले राष्ट्रीय आंदोलन के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने वाले बृजकिशोर बाबू की जयंती पर एक बेहद सामान्य से आयोजन के माध्यम से महज रस्म अदायगी का सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है। परंतु बृजकिशोर बाबू के व्यक्तित्व और कृतित्व के अनुरूप उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि तो यही हो सकती है कि बृजकिशोर बाबू के त्याग और संवेदना के भाव को समझने का प्रयास किया जाए। हर बच्चा- बच्चा उनके कृतित्व के बारे में जानकारी प्राप्त कर सके। समय समय पर कार्यशालाओं का आयोजन हो। परिचर्चाओं का दौर चले। पेंटिंग और निबंध लेखन प्रतियोगिताओं का दौर चले।

परिस्थितियों से समायोजन का संदेश

बृजकिशोर बाबू का प्रारंभिक जीवन भी आज के छात्रों को बड़ा संदेश देता दिखता है। बृजकिशोर बाबू के पढ़ाई के दौर में भी पिता के असामयिक देहावसान से आए संकट ने विकट परिस्थितियां उत्पन्न की। लेकिन बृजकिशोर बाबू ने परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बनाते हुए अपनी पढ़ाई ठीक से पूरी कर ली। आज के दौर के अभ्यर्थियों के संदर्भ में बृजकिशोर बाबू का यह प्रयास भी बेहद प्रासंगिक है।परिस्थितियों से सामंजस्य का उनका संदेश अमूल्य है।

निर्णय का आधार सदैव रहे तार्किकता

बृजकिशोर बाबू की विद्वता और विनम्रता के कायल गांधी जी और राजेंद्र बाबू भी रहे। इंपीरियल काउंसिल के चुनाव में दरभंगा के महाराज से निकट संबंध होने के बावजूद डॉक्टर सच्चिदानंद सिन्हा का समर्थन उस तार्किक निर्णय का आधार था, जिसे लोकतंत्र का मूल आधार माना जा सकता हैं। जनप्रतिनिधियों के चयन में संबंधों के स्थान पर योग्यता को वरीयता देने का उनका संदेश आज के दौर में भी बेहद प्रासंगिक दिखता है।

राष्ट्र के लिए नागरिकों का योगदान अहम

असहयोग आंदोलन के दौर में गांधी जी के आह्वान पर अपनी चमकती वकालत को छोड़ देना, राष्ट्रहित के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर देना। एक बड़ा संदेश रहा बृजकिशोर बाबू का। आज भी राष्ट्र अपने गतिशीलता और विकास के लिए नागरिकों के योगदान की अपेक्षा रखता ही है। इस संदर्भ में बृजकिशोर बाबू का अपना सब कुछ न्यौछावर कर राष्ट्र सेवा के लिए आगे आना आज के दौर के लिए बड़ा संदेश है।

उनका त्याग राजनीतिक संस्कृति को बड़ा संदेश

बिहार में जब 1934 में भीषण भूकंप आया तो भयंकर तबाही मची। संसाधनों के अभाव और ब्रिटिश हुकूमत की असंवेदनशीलता से बिहार की जनता त्राहिमाम कर उठी। उस समय बृजकिशोर बाबू ने अपनी अस्वस्थता का परवाह न करते हुए बिहार की जनता की सेवा के लिए अथक और समर्पित प्रयास किए। उनका यह योगदान आज के दौर के राजनीतिक संस्कृति के लिए एक बड़ा संदेश है।

संगठनात्मक कौशल की प्रासंगिकता सदैव रही

नामक सत्याग्रह के दौरान बृजकिशोर बाबू की विशेष रणनीति और निर्मित गोपनीय संगठन ने सूचना के प्रसार के लिए महत्वपूर्ण काम किए। आज के दौर भी संगठनात्मक कौशल का अपना विशेष महत्व है। महामारी आदि आपदाओं के समय ऐसे संगठनात्मक कौशल विशेष प्रभाव दिखा जाते है।

इस तरह बृजकिशोर बाबू के व्यक्तित्व का हर एक पहलू जिंदगी और मानवता का संदेश देता है। आवश्यकता इस संदेश को आनेवाली पीढ़ी को बताने, समझाने की है। क्या आज के वाणिज्यिक लाभ को वरीयता देनेवाले संस्थान इस संदर्भ में अपना योगदान निभा पाएंगे?

बृजकिशोर बाबू अमर रहें।

सादर श्रद्धांजलि.

Leave a Reply

error: Content is protected !!