जिंदगी के आखिरी पड़ाव में पहुंचने पर दो बुजुर्गों को हुआ कम्बख्त इश्क 

जिंदगी के आखिरी पड़ाव में पहुंचने पर दो बुजुर्गों को हुआ कम्बख्त इश्क

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श्रीनारद मीडिया, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक, कुरूक्षेत्र (हरियाणा):

कम्बख्त इश्क नाटक में बुजुर्गो की प्रेम कहानी का दिखा दर्द।
जीवन के अकेलेपन को दूर करने के लिए कम्बख्त इश्क का लिया सहारा।

हरियाणा कला परिषद द्वारा साप्ताहिक संध्या में नाटक कम्बख्त इश्क का मंचन हुआ। श्याम कुमार के निर्देशन में बुजुर्गों के जीवन के सत्य को नटसम्राट दिल्ली के कलाकारों ने रोचक ढंग से दर्शाया। इस अवसर पर उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम के अधीक्षक अभियंता अशोक यादव बतौर मुख्यअतिथि पहुंचे। कार्यक्रम से पूर्व हरियाणा कला परिषद के निदेशक नागेंद्र शर्मा ने पुष्पगुच्छ भेंटकर मुख्यअतिथि का स्वागत किया। मंच का संचालन विकास शर्मा द्वारा किया गया। सत्यप्रकाश के लेखन तथा श्याम कुमार के निर्देशन में नाटक कमबख्त इश्क ने लोगों को खूब गुदगुदाया।

नाटक का कथानक दो बुजुर्गों के इर्द गिर्द घूमता है, जिनके लिए उनके बच्चों के पास समय नहीं है। भाग-दौड़ वाली जिदगी और बच्चों के प्रेम अभाव के चलते बुजुर्ग प्यार की आड़ में बच्चों का ध्यान खींचते हैं। कहानी एक डाक्टर के क्लीनिक से शुरु होती हैं, जहां लीला की मां श्रीमती राधा और जय के पिता मिस्टर मेहता अपना ईलाज करवाने आते हैं। क्लीनिक में ही दोनों को एक-दूसरे का साथ अच्छा लगता है। दोनों बुजुर्ग बार-बार एक दूसरे से मिलने का बहाना ढूंढने लगते हैं।

उनके बच्चों की परेशानी उस समय और बढ़ जाती है जब दोनों बुजुर्गों में प्यार हो जाता है और दोनों अपने बच्चों के बाहर जाते ही छुप-छुप कर मिलने लगते हैं। जब बच्चों को अपने मां-बाप के प्रेम प्रसंग के बारे में पता चलता है, तो वे दोनों अपने-अपने माता-पिता को कमरे में बंद रखना शुरु कर देते हैं। एक दिन बुजुर्ग महिला अपनी बेटी से झूठ बोलती है कि वो गर्भवती है और बच्चा मिस्टर मेहता का है। उनके इस झूठ में उनका डॉक्टर भी साथ देता है।

बच्चे हार कर इस शादी के लिए राज़ी हो जाते हैं। लेकिन बुर्जुगों को झूठ का सहारा लेना ठीक नहीं लगता और वे अपने बच्चों को सच बता देते हैं कि उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया है, जिससे हमारे बच्चों को समाज में सर झुकाकर जीना पड़े। जय और लीला को अपने माता-पिता के अकेलेपन पर तरस आता है और खुद उन्हें समय न देने के कारण शर्मिंदा हो जाते हैं। और अंत में बच्चे बुजुर्गों की शादी करवा देते हैं। एक हल्की फुल्की मनोरंजक कथा को कलाकारों ने रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया।

अंत में मुख्यअतिथि अशोक यादव ने कलाकारों को सम्मानित कर अपने विचार सांझा करते हुए कहा कि बच्चों को अपने मां बाप को कभी भी अकेलेपन से जूझने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए। आजकल के एकाकी परिवार में जहां बच्चे अपने तक सीमित रह गए, उन्हें अपने मां-बाप का ख्याल उसी तरह से रखना चाहिए, जिस तरह से वे अपने बच्चों का रखते हैं। वहीं नागेंद्र शर्मा ने मुख्यअतिथि को स्मृति चिन्ह भेंटकर आभार जताया।

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