U-Turn movie review: यू टर्न की कहानी है बेहद सपाट, लॉजिक और एंटरटेनमेंट दोनों की कमी

U-Turn movie review: यू टर्न की कहानी है बेहद सपाट, लॉजिक और एंटरटेनमेंट दोनों की कमी


फ़िल्म – यू टर्न

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निर्माता -एकता कपूर

निर्देशक -आरिफ खान

कलाकार -अलाया एफ, मनु ऋषि, प्रियांशु पेंन्युली, राजेश शर्मा, श्रीधर, ग्रुषा कपूर

प्लेटफार्म -जी 5

रेटिंग -दो

साउथ की फिल्मों के हिंदी रीमेक सिनेमाघरों से लेकर ओटीटी प्लेटफार्म तक में एक के बाद एक हिस्सा बनते जा रहे हैं. जी 5 की फिल्म यू टर्न 2018 में रिलीज कन्नड़ फिल्म का हिंदी रिमेक है. इस फिल्म की कहानी कई दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं में बन चुकी है, तो हिंदी से कैसे अछूती रहती थी. यातायात नियमों के तोड़ने के गंभीर परिणामों के बारे में बताती इस फिल्म की कहानी में मूल फिल्म से थोड़ी बदलाव भी किए है, जो गैर जरूरी से लगते हैं. फिल्म की कहानी बहुत सपाट रह गयी है, जिसमे लॉजिक के साथ-साथ एंटरटेनमेंट भी नदारद है. यह फिल्म रिमेक है, लेकिन ओरिजिनल वाली आपने नहीं भी देखी है, तो फिल्म में ऐसा कुछ नहीं हैं, जो आपके लिए कुछ नया प्रस्तुत कर रही है.

कहानी में नयापन नहीं है

फिल्म की कहानी राधिका बक्शी (अलाया एफ) की है. जो पेशे से एक पत्रकार हैं. जो फ्लाईओवर पर होने वाले हादसों पर स्टोरी कर रही है. इस दौरान वह दस ऐसे लोगों की लिस्ट बनाती है, जो फ्लाईओवर पर यू टर्न लेने के लिए फ्लाईओवर के बीच से पत्थर को हटाते हैं, लेकिन उसे वह वापस उस जगह पर नहीं रखते हैं, जिससे दूसरे लोग एक्सीडेंट का शिकार होते हैं, जो लोग डिवाइडर से पत्थर हटाकर यू टर्न ले रहे हैं, एक के बाद एक उनकी मौत होने लगती हैं, जिसके बाद पुलिस की जांच की सुई राधिका पर मुड़ जाती है. जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ती हैं. कहानी के नए सिरे खुलते हैं, जो शुरुआत में हॉरर फिल्म सी लगने वाली यह फिल्म सस्पेंस मर्डर ड्रामा में बदल जाती है. फिल्म का कांसेप्ट संवेदनशील है, लेकिन यह फिल्म यातायात नियमों की अनदेखी मुद्दे को सही ढंग से परदे पर नहीं ला पायी है.फिल्म का फर्स्ट हाफ दिलचस्प है. दूसरे हाफ में कहानी बुरी तरह से लड़खड़ा जाती हैं.परदे पर जो कुछ भी हो रहा है. उसमें सिनेमेटिक लिबर्टी जरूरत से ज्यादा ले ली गयी है. फिल्म का हॉरर वाला पार्ट इस फिल्म को और कमज़ोर कर गया है. वह सीन जबरदस्ती खिंचा हुआ भी जान पड़ता है. जिससे फिल्म स्लो भी हो गयी है.फिल्म का जो सस्पेंस है, वह सेकेंड हाफ की शुरुआत में ही समझ आने लगता है, इसलिए क़ातिल कौन है. उसका चेहरा देखकर आपको हैरत नहीं होती है.

कमज़ोर स्क्रीनप्ले ने परफॉरमेंस को भी किया कमजोर

अभिनय की बात करें, तो इस फिल्म में अभिनय के कई परिचित चेहरे हैं. सबने अपने हिस्से की भूमिका को अच्छे से निभाया भी है, लेकिन कमज़ोर स्कीनप्ले ने किरदारों को स्क्रीन पर उस तरह से निखरने नहीं दिया, जैसी जरूरत थी. अलाया एफ और मनु ऋषि की कोशिश जरूर अच्छी है.

कुछ खास है तो कुछ है औसत

फिल्म में गाने के नाम पर सिर्फ एक गीत हैं, जो आखिर में क्रेडिट में बजता है. जिसे नज़रअंदाज कर देना ही बेहतर है. फिल्म में गाने को ना जोड़ना मेकर्स का अच्छा फैसला था. बैकग्राउंड म्यूजिक कहानी के साथ जरूर न्याय करता है.फिल्म की सिनेमाटोग्राफी में कहीं से भी यह नहीं लगता कि फिल्म की कहानी चंडीगढ़ पर बेस्ड है. फ्लाईओवर के सीन जरूर अच्छे बन पड़े हैं. फिल्म के संवाद औसत हैं.



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