UCC:समान नागरिक संहिता लागू हुई तो क्या होगा बदलाव?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
P.M नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) पर टिप्पणी की है। पीएम मोदी की इस टिप्पणी के बाद राजनीतिक बहस फिर से शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को कहा कि भारत दो कानूनों पर नहीं चल सकता और समान नागरिक संहिता संविधान का हिस्सा है। पीएम के बयान से देश भर में बहस छिड़ गई है, क्योंकि विपक्षी नेताओं ने पीएम मोदी पर कई राज्यों में चुनाव नजदीक आने पर राजनीतिक लाभ के लिए यूसीसी मुद्दा उठाने का आरोप लगाया है।
दोहरी व्यवस्था से कैसे चलेगा देश-पीएम मोदी
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि समान नागरिक संहिता का विरोध वोटबैंक की राजनीति की वजह से की जा रही है। पीएम ने आगे कहा कि एक परिवार में एक सदस्य के लिए अलग कानून और अन्य के लिए अलग कानून से परिवार कैसे चलेगा? दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा? संविधान में नागरिकों को समान अधिकार की बात कही गई है। सुप्रीम कोर्ट ने भी समान नागरिक संहिता लागू किए जाने की बात कही है।
प्रधानमंत्री का यह बयान 22वें विधि आयोग द्वारा 30 दिनों के भीतर यूसीसी पर जनता और “मान्यता प्राप्त” धार्मिक संगठनों के विचार आमंत्रित करने के एक सप्ताह बाद आया है। कांग्रेस नेताओं ने पीएम मोदी पर महंगाई, बेरोजगारी और मणिपुर की स्थिति जैसी वास्तविक समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए यूसीसी मुद्दे का इस्तेमाल करने का आरोप भी लगाया।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने मंगलवार को प्रधानमंत्री की आलोचना करते हुए कहा, “भारत के प्रधानमंत्री भारत की विविधता और इसके बहुलवाद को एक समस्या मानते हैं। इसलिए, वह ऐसी बातें कहते हैं…शायद भारत के प्रधानमंत्री को अनुच्छेद 29 समझ नहीं आता। क्या आप यूसीसी के नाम पर देश से उसकी बहुलता और विविधता को छीन लेंगे?”
कई पार्टियों के अलावा 30 से अधिक आदिवासी संगठनों ने भी आशंका व्यक्त की है कि समान नागरिक संहिता आदिवासी प्रथागत कानूनों को कमजोर कर देगी।
यूसीसी क्या है?
यूसीसी सभी धर्मों के लोगों के लिए व्यक्तिगत कानूनों को एक समान संहिता रखने का विचार है। व्यक्तिगत कानून में विरासत, विवाह, तलाक, चाइल्ड कस्टडी और गुजारा भत्ता जैसे कई पहलू शामिल हैं। हालांकि, वर्तमान में भारत के व्यक्तिगत कानून काफी जटिल और विविध हैं, प्रत्येक धर्म अपने विशिष्ट नियमों का पालन करता है।
भारतीय संविधान में समान नागरिक संहिता का प्रावधान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के मुताबिक, ‘राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।’ यानी संविधान सरकार को सभी समुदायों को उन मामलों पर एक साथ लाने का निर्देश दे रहा है, जो वर्तमान में उनसे संबंधित व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित हैं। हालांकि, यह राज्य की नीति का एक निर्देशक सिद्धांत है, जिसका अर्थ है कि यह लागू करने योग्य नहीं है।
समान नागरिक संहिता के पक्ष में तर्क
- भारतीय संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर का विचार था कि यूसीसी वांछनीय है, लेकिन संविधान सभा में महत्वपूर्ण विभाजन के बाद उन्होंने इसे फिलहाल स्वैच्छिक बने रहने का प्रस्ताव दिया।
- अंबेडकर ने कहा, “शुरुआत करने के तरीके के रूप में, भविष्य की संसद यह प्रावधान कर सकती है कि संहिता केवल उन लोगों पर लागू होगी जो घोषणा करते हैं कि वे इसका पालन करने के इच्छुक हैं। दूसरे शब्दों में, प्रारंभ में, “संहिता का अनुप्रयोग विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक हो सकता है।” अंबेडकर को मानना था कि, यूसीसी को शुरू में एक स्वैच्छिक संहिता के रूप में पेश किया जा सकता है और संसद निश्चित रूप से नागरिकों को इसका पालन करने के लिए बाध्य नहीं करेगी।
- कोड के पक्ष में दलील दी जाती है कि धार्मिक आधार पर पर्सनल लॉ होने की वजह से संविधान के पंथनिरपेक्ष की भावना का उल्लंघन होता है। संहिता के हिमायती यह मानते हैं कि हर नागरिक को अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता का अधिकार, अनुच्छेद 15 में धर्म, जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव की मनाही और अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और निजता के संरक्षण का अधिकार मिला हुआ है।
- उनकी दलील है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के अभाव में महिलाओं के मूल अधिकार का हनन हो रहा है। शादी, तलाक, उत्तराधिकार जैसे मुद्दों पर एक समान कानून नहीं होने से महिलाओं के प्रति भेदभाव किया जा रहा है। पक्षकारों का तर्क है कि लैंगिक समानता और सामाजिक समानता के लिए समान नागरिक संहिता होनी ही चाहिए।
- पक्ष में तर्क देने वाले लोगों का कहना है कि मुस्लिम समाज में महिलाएं धर्म के आधार पर चल रहे पर्सनल लॉ की वजह से हिंसा और भेदभाव का शिकार होती हैं। इन महिलाओं को बहुविवाह और हलाला जैसी प्रथाओं का दंश झेलना पड़ रहा है।
समान नागरिक संहिता के विरोध में तर्क
- 21वें विधि आयोग के “पारिवारिक कानून में सुधार” पर अगस्त 2018 के परामर्श पत्र के अनुसार, इस बिंदु पर यूसीसी न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है। व्यक्तिगत कानूनों में भेदभाव और असमानता से निपटने के लिए, सभी धर्मों में मौजूदा पारिवारिक कानूनों को संशोधित और संहिताबद्ध किया जाना चाहिए।
- अल्पसंख्यक समुदाय के लोग यूनिफॉर्म सिविल कोड का खुलकर विरोध करते आए हैं। विरोध में तर्क देने वाले लोगों का कहना है कि संविधान के मौलिक अधिकार के तहत अनुच्छेद 25 से 28 के बीच हर शख्स को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मिला हुआ है। इसलिए हर धर्म के लोगों पर एक समान पर्सनल लॉ थोपना संविधान के साथ खिलवाड़ करना है।
- मुस्लिम इसे उनके धार्मिक मामलों में दखल मानते हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) हमेशा से यूनिफॉर्म सिविल कोड को असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी बताता रहा है। ये बोर्ड दलील देता है कि संविधान हर नागरिक को अपने धर्म के मुताबिक जीने की अनुमति देता है। इसी अधिकार की वजह से अल्पसंख्यकों और आदिवासी वर्गों को अपने रीति-रिवाज, आस्था और परंपरा के मुताबिक अलग पर्सनल लॉ के पालन करने की छूट है।
यदि यूसीसी लागू होगा तो क्या-क्या बड़े बदलाव होंगे?
- यूनिफार्म सिविल कोड लागू होने से सभी समुदाय के लोगों को एक समान अधिकार दिए जाएंगे।
- लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा।
- समान नागरिक सहिंता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा।
- कानून के तहत सभी को व्यक्ति को समान अधिकार दिए जाएंगे।
- लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ा दी जाएगी, ताकि वह कम से कम ग्रेजुएट हो जाएं।
- ग्राम स्तर पर शादी के रजिस्ट्रेशन की सुविधा होगी। बगैर रजिस्ट्रेान के सरकारी सुविधा बंद हो जाएगी।
- पति-पत्नी दोनों को तलाक के समान आधार और अधिकार उपलब्ध होंगे। अभी पर्सनल लॉ बोर्ड में अलग-अलग कानून हैं।
- बहुविवाह पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी।
- उत्तराधिकार में लड़के-लड़की की बराबर की हिस्सेदारी (पर्सनल लॉ में लड़के का शेयर ज्यादा होता है) होगी।
- नौकरीपेशा बेटे की मौत पर पत्नी को मिलने वाले मुआवजे में माता-पिता के भरण-पोषण की जिम्मेदारी भी शामिल होगी।
- पत्नी की मौत के बाद उसके अकेले माता-पिता का सहारा महिला का पति बनेगा।
- मुस्लिम महिलाओं को गोद लेने का हक मिलेगा, प्रक्रिया आसान कर दी जाएगी।
- हलाला और इद्दत पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी।
- लिव-इन रिलेशन का डिक्लेरेशन देना होगा।
- बच्चे के अनाथ होने पर गार्जियनशिप की प्रक्रिया आसानी की जाएगी।
- पति-पत्नी में झगड़े होने पर बच्चे की कस्टडी ग्रैंड पैरेंट्स (दादा-दादी या नाना-नानी) को दी जाएगी।
- जनसंख्या नियंत्रण पर भी बात होगी।
दुनिया के किन देशों में लागू है यूनिफॉर्म सिवल कोड
दुनिया के कई देशों में समान नागरिक संहिता लागू है। इनमें हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं। इनके अलावा इजरायल, जापान, फ्रांस और रूस में भी समान नागरिक संहिता लागू है। यूरोपीय देशों और अमेरिका में धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होता है। दुनिया के ज्यादातर इस्लामिक देशों में शरिया पर आधारित एक समान कानून है, जो वहां रहने वाले सभी धर्म के लोगों को समान रूप से लागू होता है।
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