उदयनिधि जी आप जैसे नेताओं का क्या धर्म होता है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन के बयान पर बवाल मचा हुआ है। विवाद सनातन धर्म को लेकर है। हालाँकि उदयनिधि ने अपने बयान पर स्पष्टीकरण दिया है, लेकिन सनातन को ख़त्म करने पर वे अब भी तुले हुए हैं। सवाल यह है कि जो सनातन है उसे कोई ख़त्म कैसे कर सकता है? नेताओं को इस तरह के बयानों से बाज आना चाहिए।

उदयनिधि का कहना है कि सनातन लोगों में, महिला-पुरुषों में भेदभाव करता है, जबकि यह सफ़ेद झूठ है। भेदभाव धर्म नहीं करता, लोग करते होंगे। सनातन ने हमेशा समभाव को ही पल्लवित और पोषित किया है।

मुण्डक उपनिषद में आदि शंकराचार्य और अन्य शंकराचार्यों द्वारा समय-समय पर लिखे गए भाष्य को लेकर पुरी पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने सभी धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन को विद्वत्ता के साथ समझाया है।

वे कहते हैं – वे जो चित्तोजनित शारीरिक सुख को, अनुभूति को ही आत्मा मानते हैं, वे जो केवल चित्त या प्रकारांतर से केवल शरीर को ही आत्मा मानते हैं, उनकी आत्मा शव के समान है।

जैसे शरीर मरता है, उनकी आत्मा भी मर जाती है (वे ऐसा मानते हैं)। सनातन में ऐसा नहीं है। शरीर मरता है, सब कुछ मरता है, लेकिन आत्मा अज है। ब्रह्म है। वह नहीं मरता या मरती।

मुण्डक उपनिषद के मुताबिक सनातनियों का ईश्वर जगत बना भी सकता है और जगत बन भी सकता है। वह राम और कृष्ण की तरह अवतार भी ले सकता है। कहा जा सकता है कि सनातन धर्मियों को जैसा ईश्वर सुलभ है, वैसा और किसी को सुलभ नहीं।

सनातनियों को तीनों तरह के ईश्वर सुलभ हैं। एक निर्गुण-निराकार, दूसरा सगुण-निराकार और तीसरा सगुण-साकार।

ये तीन ईश्वर कौन से हैं? पहला निर्गुण- निराकार ईश्वर वह है जो सच्चिदानंद है। वेदों-शास्त्रों और उपनिषदों में विद्यमान या ये कहें कि जो भी भगवद् तत्व है वह निर्गुण-निराकार ईश्वर है।

दूसरा सगुण- निराकार ईश्वर वह है जिसका आह्वान महाकवि तुलसीदास ने इस चौपाई में किया है- उमा दार दोषित की नाई, सबहिं नचावत राम गोसाईं।

इस चौपाई में ईश्वर की उपादेयता तो नज़र आ रही है पर वह स्वयं नहीं दिखता। इसलिए यह रूप सगुण- निराकार हुआ। इसी तरह राम, कृष्ण, ये सब ईश्वर के सगुण- साकार रूप हैं। इनकी उपादेयता भी है और ये दिखते भी हैं।

शंकराचार्य कहते हैं – परमात्मा तत्व अपने आप में निर्गुण- निराकार है और यही ईश्वर समय- समय पर सगुण- निराकार और सगुण- साकार भी हो ज़ाया करता है। सनातन की व्यापकता देखिए कि एक अवतार के भी कई रूप हैं। उदाहरण के लिए गौड़ी सम्प्रदाय के संतों ने कृष्ण के पाँच रूप माने।

पहला द्वारिकाधीश कृष्ण, जिसके पास अपार ऐश्वर्य है। दूसरा मथुराधीश कृष्ण, जिसके पास ऐश्वर्य तो है, लेकिन द्वारका से कम। तीसरा बृज मण्डलाधीश कृष्ण, जिसके पास ऐश्वर्य भी है और माधुर्य भी। चौथा निकुंज मंदिराधीश्वर कृष्ण, जो राधा और सखियों के साथ बैठा है।

… और पाँचवाँ निवृत्त- निकुंज मंदिराधीश्वर कृष्ण, जिसके पास राधा और रुक्मिणी के सिवाय किसी की पहुँच नहीं है। अलग-अलग भाव और क्रिया के माध्यम से अलग-अलग रूप हो गए।

कुल मिलाकर इतने विस्तृत और महान सनातन के बारे में कोई नेता टिप्पणी करे, यह ठीक नहीं है। इस तरह की टिप्पणियों पर प्रतिबंध लगना चाहिए।

 

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