साझा हैं बेमिसाल भारत की संस्कृति और संस्कार.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
शक्ति के भी दो पहलू होते हैं- एक, मारने वाली और दूसरी, बचाने वाली। कहावत मशहूर है ‘मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है’ और लोक मानस की इसी कसौटी पर खरा उतरकर यह भारत के लिए महाशक्ति बनने का साल रहा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने न केवल अपनी लक्षित आबादी का टीकाकरण करते हुए विश्व रिकार्ड स्थापित किया बल्कि सुनिश्चित किया कि विश्व के उन सभी देशों को वैक्सीन भेजी जाए, जिन्हें इसकी आवश्यकता है।
असहाय की चिंता और शत्रु को चेतावनी की दृढ़ नीति पर अडिग देश ने चीन के सामने पीछे हटने के सिवा कोई रास्ता नहीं छोड़ा तो वहीं सीमा पार से आने वाले आतंकियों के लिए बंद कर दिए जीवित वापस लौटने के सभी रास्ते।
भारत के लिए वर्ष 2021 विपरीत परिस्थितियों में भी संयम, साहस और संकल्प को सार्थक करने का स्वर्णिम वर्ष रहा। इस बार नागरिकों के आत्म-अनुशासन की बदौलत लाकडाउन में भी जिंदगी और अर्थव्यवस्था चलती रही। एक तरफ तो भारतीय उद्यमिता की अंतरराष्ट्रीय पहचान अधिक पुख्ता हुई तो वहीं खुद देश में युवा उद्यमियों ने इतिहास रचते हुए भारत को विश्व में स्टार्टअप का तीसरा सबसे बड़ा इकोसिस्टम बना दिया।
साल का सबसे बड़ा कमाल केवल यह नहीं था कि कारोबार के कुबेरों ने जनता की जान बचाने को अपने खजाने खोल दिए, यह भी नहीं कि एक भारतीय दवा कंपनी को कोविड वैक्सीन के लिए दुनियाभर से दुआएं मिलीं, न ही यह कि एक भारतीय स्टार्टअप शिक्षा क्षेत्र में दुनिया का अगुवा बन गया, यह भी नहीं कि एक भारतीय एथलीट ने इस साल ओलिंपिक में अपने भाले से स्वर्ण पदक पर निशाना साध लिया। दरअसल, ऐसे कई कमाल मिलकर ही भारत को बेमिसाल बनाते हैं।
वह बेमिसाल भारत, वह अतुल्य देश, जहां सभी एक ही पूर्वज के वंशज हैं और इसीलिए सबके सुख-दुख, संस्कृति और संस्कार साझा हैं। राष्ट्रीय एकता के इसी भाव से आबद्ध देश ने इस साल मां गंगा की आंखों से काशी विश्वनाथ धाम के दर्शन किए तो वहीं यह भी देखा कि यदि इच्छाशक्ति दृढ़ हो तो हर जरूरतमंद परिवार को घर और हर घर को पीने का साफ पानी का वादा दावा कैसे बन जाता है! नाम, प्रभाव तथा घटनाएं और भी हैं, जिनमें 25 का चयन लगातार 13वें साल प्रकाशित झंकार के विशिष्ट अंक इंपैक्ट में ‘दैनिक जागरण’ के संपादक मंडल ने गहन मंथन से किया है..
नरेन्द्र मोदी : सख्त शासक सक्षम अभिभावक
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा तीन कृषि कानून वापस लिए जाने के निर्णय को विपक्ष भले ही दबाव के सामने घुटने टेकने की संज्ञा दे, किंतु देश के राजनीतिक-सामाजिक पहलुओं की गहरी समझ रखने वाला बौद्धिक जगत इसे पिछले छह वर्षो के मुकाबले कहीं अधिक मजबूत, साहसी और परिपक्व प्रधानमंत्री का ‘मास्टर स्ट्रोक’ मानता है। इसी साल 26 जनवरी को किसान आंदोलन के कारण दिल्ली में लाल किला समेत जगह-जगह अराजक हालात पैदा हो गए थे, जबकि अब वर्ष खत्म होते-होते नाचते-गाते, जश्न मनाते, दिल्ली बार्डर से घर लौटते संतुष्ट किसानों के समूह ने देशवासियों को सुकून का एहसास करवाया।
किसान आंदोलन के उतार-चढ़ाव की कड़ियां जोड़कर नजीर के तौर पर देखें तो विश्वास होता है कि वर्ष 2021 की असाधारण चुनौतियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अधिक मजबूत, साहसी और परिपक्व राजनेता के रूप में विकसित किया है। उनके इन लक्षणों की छाया कोरोना महामारी के विरुद्ध भारत की जंग, चीन समेत अन्य पड़ोसी देशों के साथ टकराव और अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के अवसरों पर भी महसूस की गई,
जब भारत की प्रतिक्रिया में अवसर की नजाकत के अनुरूप वैश्विक महाशक्ति जैसी गंभीरता और आक्रामकता दिखी। कोरोनारोधी टीकाकरण शुरू होते ही उन्होंने घरेलू आलोचना की परवाह न करते हुए भारत के साथ-साथ कई साधनहीन देशों को भी वैक्सीन मुहैया करवाकर किसी महाशक्ति के नेतृत्व जैसा व्यवहार किया। इसके लिए पूरी दुनिया ने उनकी सराहना की।
प्रधानमंत्री मोदी की परिपक्व दूरदृष्टि तब भी दिखी, जब उन्होंने तालिबान शासकों से भारत के राजनयिक संबंध न होते हुए भी भुखमरी व बीमारी से जूझ रहे अफगानिस्तान के लिए सहायता सामग्री भेजी। बहरहाल, मोदी का यह उदार चेहरा तब आक्रामक हो उठता है, जब चीन अपनी सैन्यशक्ति के बल पर भारत को आंख दिखाने का प्रयास करता है। उनके नेतृत्व में देश की पराक्रमी सेना और राजनयिकों ने चीन की आंखों में आंखें डालकर उसे कदम पीछे खींचने पर बाध्य कर दिया। ऐसा नहीं है कि देश की आंतरिक और बाह्य चुनौतियां समाप्त हो गई हैं, इसके बावजूद 2021 के अनुभव से देश का यह विश्वास मजबूत हुआ है कि ‘मोदी हैं तो मुमकिन है।’
योगी आदित्यनाथ : संत का सुशासन
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब हिंदुत्व ही नहीं बल्कि विकास और बेहतर प्रबंधन का भी स्वीकार्य चेहरा बन गए हैं। पिछले एक वर्ष के दौरान तमाम बड़ी चुनौतियों का सामना कर योगी आदित्यनाथ अपनी नेतृत्व क्षमता साबित करने में सफल रहे हैं। राम मंदिर के साथ अयोध्या के विकास, श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के भव्य निर्माण जैसे ऐतिहासिक कार्यों को कर दिखाने के साथ ही योगी आदित्यनाथ ने कई बड़ी योजनाओं-परियोजनाओं को भी अंजाम दिया है।
इनसे राष्ट्रीय स्तर पर योगी आदित्यनाथ अपनी छवि और मजबूत बनाने में कामयाब रहे हैं। केंद्र सरकार की योजनाओं-परियोजनाओं और भाजपा के एजेंडे को राज्य में प्रभावी ढंग से अमली जामा पहनाए जाने से गदगद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी न केवल योगी आदित्यनाथ की आए दिन तारीफ करते हैं बल्कि संघ और संगठन में भी उनका कद और बढ़ा है। सदी के सबसे बड़े वैश्विक संकट कोरोना महामारी से खुद संक्रमित होने के बावजूद योगी आदित्यनाथ ने हौसला बनाए रखा और दिन-रात एक कर उसे प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने में कामयाब रहे। कोरोना प्रबंधन के योगी माडल की देश-दुनिया में तारीफ हुई।
सस्ते व बेहतर इलाज के लिए नए एम्स के साथ ही सभी जिलों में मेडिकल कालेज, पूर्वाचल सहित अन्य एक्सप्रेस-वे के निर्माण, दशकों से लंबित सिंचाई व पेयजल की अजरुन सहायक, सरयू नहर, हर घर नल जैसी परियोजनाओं को तेजी से पूरा कर योगी आदित्यनाथ ने साबित किया कि वह किसी भी चुनौती का सामना करने की भरपूर क्षमता रखते हैं।
भारतीय सेना : आक्रमक रक्षा नीति
वीरता और कौशल की मिसाल मानी जाने वाली भारतीय सेना यदि हर गुजरते दिन के साथ सशक्त होती जा रही है तो इसका सबसे बड़ा कारण सोच और चुनौतियों का सामना करने के तरीके में आया परिवर्तन है। अब सैन्य ढांचा और उसकी नीति अपना प्रभाव महसूस कराने वाली है। इस नीति में संयम के साथ आक्रामकता भी है। आक्रामकता भी केवल दुश्मनों के लिए।
नया नजरिया यह है कि पाकिस्तान को उसकी कोई भी हरकत बहुत महंगी पड़ेगी और चीन एकाधिकारवादी रवैये तथा मनमानी के बारे में सोचे भी नहीं। डोकलाम में चीन को पीछे हटने के लिए मजबूर कर भारतीय सेना ने वह कर दिखाया जो बीजिंग ने कभी सोचा भी नहीं होगा। गलवन का घटनाक्रम तो सैन्य पराक्रम का शिखर ही था।
चीन को अब यह भी पता है कि सैन्य तैयारी के जरिये उसके आगे निकलने के दिन लद गए। चाहे सीमा के अंतिम छोर तक सड़क बनाने की बात हो या मोर्चे पर तैनात सैनिकों को संचार, हथियार और अन्य सुविधाओं से लैस करने की जरूरत-नया भारत हर चुनौती के लिए तैयार है। साल के अंत में प्रथम चीफ आफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत की हेलीकाप्टर हादसे में मृत्यु सैन्य सुधार के सूत्रधार की विदाई अवश्य है, लेकिन यह उनका ही योगदान है जो आज चीन डोकलाम और गलवन के घाव सहला रहा है।
जिस जनरल का नजरिया यह रहा हो कि पाकिस्तान को जब चाहेंगे तब निपटा देंगे, चुनौती तो चीन से है, उसकी नीति और तैयारी के बारे में और क्या कहा जा सकता है! यह भारतीय सेना के मनोबल की बानगी है, उसकी बहादुरी का प्रमाण और इस सबसे ऊपर सैन्य तैयारियों की झलक! विजय की इस संरचना के आधार स्तंभ हैं-नई रक्षा नीति, जनरलों का जज्बा और सैनिकों का शौर्य।
आक्सीजन की किल्लत : सांसों पर गहराया संकट
कोविड-19 की पहली लहर में भारत ने भयभीत लोगों का पलायन देखा तो वहीं 2021 में इलाज के इंतजार में बेबसी। दोनों ही मंजर देशव्यापी थे। इस साल कोरोना वायरस के नए वैरिएंट डेल्टा ने वह प्रकोप दिखाया कि जनता हक्की-बक्की रह गई और सरकार भौंचक्की। यह तब था जब कोविड-1 9 के शुरुआती दौर से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार-बार हरसंभव माध्यम से देश को आगाह करते आ रहे थे।
आश्चर्य होता है कि शीर्ष नेतृत्व के इतना समझाने के बाद भी केंद्र से लेकर राज्य तक जैसे किसी को अंदाज ही नहीं था कि स्थिति इतनी गंभीर भी हो सकती है। यह कहना स्थिति को बहुत कमजोर करके आंकना होगा कि बेड से लेकर आक्सीजन तक के इंतजाम नाकाफी हुए।
दरअसल संक्रमण के दुष्प्रभावों से निपटने की जो भी तैयारी थी, वह बादल फटने में छतरी से बचाव की कोशिश से अधिक बेहतर नहीं थी। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के कारण अस्पतालों में आक्सीजन उपलब्धता को लेकर विकट स्थिति उत्पन्न हुई। राजधानी नई दिल्ली से लेकर देश के लगभग सभी राज्यों के कई छोटे-बड़े अस्पताल आक्सीजन की कमी की गुहार लगाते देखे गए और इंटरनेट मीडिया मदद की मांग करते संदेशों से भरा रहा। कहीं सिलिंडर की कमी तो कहीं आक्सीजन की। जैसे-तैसे आक्सीजन सिलिंडर मिलता तो अस्पतालों में भर्ती होने के बाद बेड भी बड़ी मुश्किल से उपलब्ध थे।
मरीज गाड़ियों, आटो-टेंपो, कुर्सी आदि पर बैठकर कोरोना के खिलाफ जीवन की जंग लड़ते रहे और जिनपर जिम्मेदारी थी, वे दोषारोपण का फुटबाल खेल रहे थे। ‘जो इतिहास से सबक नहीं सीखते वे इसे दोहराने को अभिशप्त होते हैं’, उम्मीद करें और प्रार्थना भी कि अब जब ओमिक्रोन और डेल्मीक्रोन जैसे नए वैरिएंट दुनिया को डरा रहे हैं, एक देश के रूप में अपनी सुव्यवस्था से हम विंस्टन चर्चिल का यह कथन गलत साबित कर सकें।
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