अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन सितंबर में भारत यात्रा पर नई दिल्ली आएंगे!
आखिर 2024 क्यों होगा भारत-अमेरिका संबंध के लिए बड़ा वर्ष?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत-अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज आने वाला साल बेहद महत्वपूर्ण होगा. अमेरिका, भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए लगातार कोशिश में है और इस कवायद के तहत अमेरिका की ओर से ये बयान आया है.
अमेरिका का कहना है कि 2024 भारत-अमेरिका संबंधों के लिए एक बड़ा साल होगा. ये बयान दक्षिण और मध्य एशिया के लिए सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू (Donald Lu) की तरफ से आया है. डोनाल्ड लू ने पीटीआई को दिए साक्षात्कार में ये बातें कही है.
डोनाल्ड लू के इस बयान की वजह इस साल हो रही या होने वाली बहुत सारी घटनाएं हैं. ये हम सब जानते हैं कि फिलहाल भारत दुनिया के सबसे ताकतवर आर्थिक समूह G20 की अध्यक्षता कर रहा है. वहीं अमेरिका इस साल एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) की मेजबानी कर रहा है. इसके साथ ही क्वाह समूह में भारत, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ शामिल जापान दुनिया के सबसे विकसित देशों के समूह G7 की मेजबानी कर रहा है. इन बातों के संदर्भ में ही डोनाल्ड लू ने कहा है कि इस साल हमारे कई क्वाड सदस्य देश नेतृत्व की भूमिकाएं में हैं और ये क्वाड सदस्यों को और करीब लाने का अवसर मुहैया कराता है.
द्विपक्षीय संबंधों में नई ऊंचाई दिखेगी
भारत और अमेरिका के बीच संबंधों के लिए जो आधार 2023 में तैयार होगा, उसी के बल पर 2024 में द्विपक्षीय संबंधों में एक नई ऊंचाई दिखेगी. दरअसल जो बाइडेन के जनवरी 2021 में अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद इस साल एक ऐसी घटना होने वाली है, जिससे भारत-अमेरिकी रिश्तों में और प्रगाढ़ता आएगी. जो बाइडेन के राष्ट्रपति बने दो साल से ज्यादा का वक्त हो गया है, लेकिन अभी तक वे भारत की यात्रा पर नहीं आए हैं.
इस साल जो बाइडेन बतौर राष्ट्रपति पहली भारत यात्रा पर आने वाले हैं. भारत की अध्यक्षता में G20 का सालाना शिखर सम्मेलन 9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में होगा. इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भारत आएंगे और ये राष्ट्रपति के तौर पर उनका नई दिल्ली का पहला राजकीय दौरा भी होगा. इस संदर्भ में ही अमेरिका के दक्षिण और मध्य एशिया के लिए सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू का बयान और भी ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है.
जलवायु संकट से निपटने में भारत करेगा नेतृत्व
भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंध को ग्लोबल सामरिक साझेदार का दर्जा हासिल है. इसके तहत भारत और अमेरिका के बीच ऊर्जा क्षेत्र में मजबूत द्विपक्षीय साझेदारी है. अमेरिका का ये भी कहना है कि जलवायु संकट से निपटने में भारत की अग्रणी भूमिका रहने वाली है. हम सब जानते हैं कि भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है. अमेरिका का कहना है कि जितने भी संकट या मुद्दे दुनिया के सामने हैं, उनमें जलवायु संकट सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है.
अमेरिकी मंत्री डोनाल्ड लू का कहना है कि जलवायु संकट का सामना करने में दुनिया की सफलता आंशिक रूप से भारत की ओर से लिए गए फैसलों पर निर्भर करेगी. उन्होंने कहा है कि इस संकट से निपटने में भारत की हर कोशिश को अमेरिका प्रौद्योगिकी और वित्तीय सहायता के माध्यम से समर्थन देगा. डोनाल्ड लू ने तो इतना तक कहा है कि इस ग्रह का भविष्य कुछ हद तक हरित ऊर्जा के क्षेत्र में नेतृत्व करने की भारत की क्षमता पर निर्भर करता है.
भारत अपने लिए पर्याप्त हरित ऊर्जा का उत्पादन करने का लक्ष्य लेकर तो आगे बढ़ ही रहा है, इसके साथ ही भारत दुनिया के लिए सबसे बड़ा हरित ऊर्जा निर्यातक बनना चाहता है. भारत के इस सोच की वजह से अमेरिका भी सहयोग बढ़ाने को इच्छुक है. ऊर्जा क्षेत्र में मजबूत द्विपक्षीय साझेदारी के तहत ही अप्रैल 2021 में, अमेरिका और भारत ने ‘यूएस-इंडिया क्लाइमेट एंड क्लीन एनर्जी एजेंडा 2030 पार्टनरशिप’ की शुरुआत की थी.
मार्च में नई दिल्ली में G20 विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी. इसमें भारत ने जिस तरह का एजेंडा तैयार किया था, उससे दुनिया की जो बड़ी-बड़ी चुनौतियां हैं, उन पर चर्चा का रास्ता खुला है ताकि कोई ठोस समाधान निकल सके. इनमें खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, ऊर्जा सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे शामिल हैं.
भारत की आर्थिक वृद्धि का हिस्सा बनना चाहता है अमेरिका
भारत की आर्थिक गतिविधियों में भी अमेरिका अपनी साझेदारी बढ़ाने को लेकर इच्छुक है. हफ्ते भर पहले आए द्विपक्षीय व्यापार के आंकड़ों से भी दोनों देशों के मजबूत होते आर्थिक रिश्तों का पता चलता है. वित्त वर्ष 2021-22 की भांति ही वित्त वर्ष 2022-23 में भी चीन की बजाय अमेरिका ही भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा. अमेरिका का मानना है कि भारत जितनी अधिक तरक्की करेगा, ये अमेरिका के साथ ही दुनिया के लिए उतना ही बेहतर होगा और संपन्न भारत के पास जलवायु परिवर्तन और भविष्य की महामारियों जैसी वैश्विक समस्याओं से निपटने के लिए ज्यादा संसाधन होंगे. अमेरिकी मंत्री डोनाल्ड लू तभी कहते हैं कि अमेरिका, भारत की आर्थिक वृद्धि का हिस्सा बनना चाहता है.
जिस तरह से अमेरिका का चीन के साथ कूटनीतिक के साथ ही कारोबारी रिश्ते पिछले कुछ सालों में तेजी से बिगड़े हैं, उसके लिए भारत का महत्व और बढ़ गया है. दुनिया के तमाम देश आर्थिक मंदी के साये में हैं, तो भारत दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ रहा है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की ताजा रिपोर्ट भी यही कहती है.
फिलहाल भारत 3,000 अरब डॉलर से ज्यादा के साथ दुनिया की पांचवी अर्थव्यवस्था है. जिस तरह से भारत की आर्थिक वृद्धि दर है, अगले एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था 10,000 अरब डॉलर के पार पहुंचने का अनुमान है और अमेरिकी थिंक टैंक इसे भलीभांति समझ रहे हैं.
भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग के लिए नई रूपरेखा
चाहे व्यापार हो या फिर रक्षा सहयोग, इनके अलावा वैश्विक समस्याओं से जुड़े मुद्दों पर भी सितंबर में जो बाइडेन की पहली भारत यात्रा के दौरान G20 शिखर सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत हो सकती है. रक्षा सहयोग को नया आयाम देने को लेकर भी दोनों देशों के बीच उस वक्त घोषणा हो सकती है. हाल ही में अमेरिकी मंत्री डोनाल्ड लू ने कहा था कि भारत-अमेरिका के बीच एक प्रमुख द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर काम चल रहा है और अगले कुछ महीने में इसके बारे में घोषणा की जाएगी. ये सहयोग भारत को अत्याधुनिक आधुनिक रक्षा उपकरण बनाने में सक्षम बनाने से जुड़ा है. इससे भारत के लिए अपनी जरूरतों को पूरा करने के मकसद से विश्व स्तरीय रक्षा उपकरण का उत्पादन करने में तो मदद मिलेगी ही, साथ ही दुनिया का एक प्रमुख हथियार निर्यातक बनने के नजरिए से भी काफी अहम होगा.
भारत और अमेरिका पहले से ही रक्षा क्षेत्र में प्रमुख साझेदार हैं. ये इससे जाहिर होता है कि बीते 20 साल में दोनों देशों के बीच 20 अरब डॉलर से ज्यादा का रक्षा व्यापार हुआ है. रक्षा सहयोग में नए आयाम जोड़ने के लिए दोनों देशों के रक्षा मंत्रालय लगातार इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं. इससे पहले 2015 में दोनों देशों ने अगले 10 साल के लिए रक्षा सहयोग से जुड़े विजन 2025 की घोषणा की थी.
जो बाइडेन के सितंबर में होने वाली भारत यात्रा को देखते हुए अमेरिका जिस तरह का उत्साह दिखा रहा है, वो वैश्विक समीकरण में बड़े बदलाव की कोशिश के तौर पर देखा जाना चाहिए. जिस तरह से अमेरिका खुलकर चीन से जुड़े सीमा विवाद मुद्दों पर भारत का लगातार साथ दे रहा है, उसके भी मायने हैं. एक तरफ तो अमेरिका ये भी कहता है कि वो भारत और चीन के बीच सीधी बातचीत के जरिए समाधान का समर्थन करता है,
तो दूसरी तरफ अमेरिका की ओर से ये भी बयान आता है कि इस बात के कम ही साक्ष्य हैं कि चीन भारत के साथ सीमा विवाद से जुड़ी बातचीत को सही मंशा और गंभीरता से ले रहा है. इस तरह के बयान बाइडेन प्रशासन की तरफ से आता है, वहीं अमेरिकी सेना की तरफ से ये भी कहा जाता है कि चीन से भारत और अमेरिका को एक जैसी सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. अमेरिका के हिंद-प्रशांत रणनीति के लिहाज से इस वक्त भारत से ज्यादा महत्वपूर्ण देश कोई और नहीं है.
इन सब बातों के होते हुए भारत के लिए कूटनीतिक तौर से दो पहलू बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. पहला चीन हमारा पड़ोसी देश हैं और दूसरा उसके साथ हमारा व्यापार बहुत ही ज्यादा है. अमेरिका के बाद चीन ही भारत का दूसरा सबसे बड़ा साझेदार है. अभी भी हम कई चीजों के आयात को लेकर काफी हद तक चीन पर निर्भर हैं.
ऐसे में भारत की ओर से कोई भी कदम सिर्फ़ उसके हितों को देखते हुए ही उठाया जाना चाहिए, न कि अंतरराष्ट्रीय दबाव या फिर अमेरिका जैसे पावरफुल देश की ओर से मिल रहे समर्थन की वजह से. इन सब बातों के बीच ये तो तय है कि अमेरिका अब भारत के साथ अपने संबंधों को न सिर्फ वैश्विक कूटनीति के हिसाब से बढ़ाना चाहता है, बल्कि उसकी मंशा ये भी है कि वो आने वाले समय में भारत का रूस से भी ज्यादा भरोसेमंद साझेदार बन सके.
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