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वेदाध्यायी साक्षात् शिव - जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती महाराज - श्रीनारद मीडिया

वेदाध्यायी साक्षात् शिव – जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती महाराज

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श्रीनारद मीडिया / सुनील मिश्रा वाराणसी यूपी

वाराणसी / वेद और शिव में कोई अन्तर नहीं है। वेद ही शिव है और शिव ही वेद है। वेदाध्यायी साक्षात् शिव हैं। उक्त उद्गार परमाराध्य पूज्यपाद अनन्तश्रीविभूषित उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती महाराज ने आज श्रीविद्यामठ केदारघाट वाराणसी में आयोजित वसन्त पूजा के अवसर पर व्यक्त किए।उन्होने कहा कि लोग जब काशी आते हैं तो वे गोस्वामी तुलसीदास जी की पंक्ति जहॅ बस शम्भू भवानी के आधार पर यहाॅ भगवान् शिव को खोजते हैं पर हमारे शास्त्र यह स्पष्ट उद्घोष करते हुए कहते हैं कि वेदो शिवः शिवो वेदः वेदमूर्ति सदाशिवः अर्थात् वेद और शिव दोनों मे अमेद है और वेदमूर्ति को सदाशिव कहा गया है। इसलिए जो वेद का अध्ययन-अध्यापन करता है वह साक्षात् शिव ही होता है। इसलिए यदि काशी में भगवान् शिव का दर्शन करना हो तो वेदमूर्तियों का दर्शन करना चाहिए।इन वेद शाखाओं का सम्पन्न हुआ पारायण।
ऋग्वेद शाकल
कृष्ण यजुर्वेद तैत्तिरीय
शुक्ल यजुर्वेद माध्यान्दिनी
शुक्ल यजुर्वेद काण्व
सामवेद कौथुम
सामवेद कौथुम (मद्र पद्धति)
सामवेद कौथुम (गुर्जर पद्धति)
सामवेद राणायनी
सामवेद जैमिनी
अथर्ववेद शौनक
अथर्ववेद पैप्पलाद

आचार्य धनंजय दातार जी ने कहा कि वर्तमान में चारों वेदों की उपलब्ध इन उपर्युक्त सभी शाखाओं का अध्यापन लम्बे समय से श्रीविद्यामठ में चल रहे गुरुकुल में शंकराचार्य महाराज जी के मार्गदर्शन में होता आ रहा है। आज इसी मठ से पढे हुए अनेक छात्र वैदिक विदान् के रूप में देश भर में वेद प्रचार कर रहे हैं। जिस प्रकार से ऋतुओं में वसन्त ऋतु सबसे अधिक पसन्द को जाती है उसी प्रकार से वेद के सन्दर्भ में वसन्त पूजा सबसे अधिक लोकप्रिय है। इस पूजन के माध्यम से वेद की सभी शाखाओं का समय-समय पर पारायण वैदिकों द्वारा करके वेद को उसके उसी रूप में संरक्षित करने का कार्य किया जाता है।कार्यक्रम के दौरान काशी करवट मन्दिर के श्रीमहंत व केंद्रीय ब्राम्हण महासभा के प्रदेश अध्यक्ष पं अजय शर्मा ने शिव को प्रिय ऋतुफल नारंगी पूज्य शंकराचार्य जी महाराज को समर्पित किया।और गिरीश चन्द्र जी ने पूज्य महाराजश्री को चांदी का मुकुट भेंट किया जिस मुकुट को महाराज जी ने वेद के उद्भट विद्वान आचार्य लक्ष्मीकांत दीक्षित जी को भेंट कर दिया। धर्म रक्षा के लिए हम सबको मिले हैं।

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द जी महाराज,आचार्य लक्ष्मीकान्त दीक्षित जी ने कहा कि आज हम सबको पूज्यपाद स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती जी महाराज धर्म रक्षा के लिए प्राप्त हुए हैं। यह हम सबके लिए गौरव का विषय है। काशी विद्यापीठ के प्रो. आचार्य राममूर्ति जी ने कहा कि धर्म की रक्षा के लिए गौ और ब्राह्मणों की रक्षा आवश्यक है।कार्यक्रम के दौरान दी सेंट्रल बार एशोसिएशन के नवनिर्वाचित अध्यक्ष श्री प्रभु नारायण पाण्डेय जी ने पूज्य महाराजश्री से लिया आशीर्वाद। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से उत्तर प्रदेश प्रधानाचार्य परिषद् के अध्यक्ष डाक्टर हरेन्द्र राय जी, डा चारुचन्द्र राम त्रिपाठी जी, भारत धर्म महामण्डल के डा परमेश्वर दत्त शुक्ल जी, डा श्रीप्रकाश पाण्डेय जी, धर्मशास्त्री आचार्य अवधराम पाण्डेय जी आदि उपस्थित रहे। श्री गिरीश जी ने सपत्नीक पूज्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर जी महाराज को रजत मुकुट पहनाया।पूज्यपाद शंकराचार्य जी महाराज के प्रवचन के पूर्व ब्रह्मचारी मुकुन्दानन्द जी ने पारम्परिक विरुदावली का पाठ किया। बसंत पूजन कार्यक्रम में प्रमुख रूप से सर्वश्री-वैदिक आचार्य दीपेश दुबे जी,अनंत भट्ट जी,बालमुकुंद मिश्रा जी,साध्वी पूर्णम्बा दीदी जी,साध्वी शारदम्बा दीदी जी,पं अमित तिवारी जी,ब्रम्हचारी रामानंद जी,शैलेन्द्र योगी जी। उक्त जानकारी शंकराचार्य जी महाराज के वाराणसी क्षेत्र के प्रेस प्रभारी सजंय पाण्डेय ने दी है।

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