तवांग में संघर्ष के बाद बढ़ी सतर्कता…माइनस 10 डिग्री में डटे हिमवीर

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच संघर्ष के बाद उत्तराखंड में सीमा पर सतर्कता बढ़ गई है।

अग्रिम मोर्चे पर तैनात भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल की चौकन्नी निगाह

जनपद उत्तरकाशी के नेलांग घाटी में समुद्रतल से लगभग चार हजार मीटर की ऊंचाई और अधिकतम तापमान चार डिग्री व न्यूनतम तापमान माइनस 10 डिग्री तापमान के बीच है।

भारत-चीन सीमा के इस इलाके में अग्रिम मोर्चे पर तैनात हिमवीरों (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल) की चौकन्नी निगाह है।

उत्तराखंड की 345 किलोमीटर सीमा हमेशा से रही है संवेदनशील

तवांग में चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद उपजे तनाव के बीच चीन से सटी उत्तराखंड की 345 किलोमीटर सीमा हमेशा से संवेदनशील रही है। इसमें से 122 किलोमीटर उत्तरकाशी जिले में है। सामरिक दृष्टि से संवेदनशील यह क्षेत्र जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से करीब 122 किलोमीटर दूर है।

नेलांग घाटी में सेना और आइटीबीपी के जवान सतर्क

विषम भूगोल वाली नेलांग घाटी में सेना और आइटीबीपी के जवान सतर्क हैं। उत्तरकाशी के पास चिन्यालीसौड़ में हवाई पट्टी पर भी वायु सेना ने अपने कई विमानों के जरिये पूर्व में कई बार सुरक्षित लैंडिंग और टेकअप कर अभ्यास किए हैं।

चिन्यालीसौड़ हवाई पट्टी भी सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। बीते 9 दिसंबर को वायु सेना के चीता हेलीकाप्टर भी पहुंचे थे, जबकि पांच दिसंबर की रात्रि के समय भी फाइटर प्लेन के जरिये अभ्यास किया था।

चीनी सैनिकों ने नेलांग घाटी में घुसपैठ की थी

वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान चीन सीमा पर गतिरोध बना था। चीनी सैनिकों ने नेलांग घाटी में घुसपैठ की थी। भारतीय सेना ने पीछे धकेल दिया।

उस दौरान सुरक्षा के लिहाज से नेलांग घाटी का नेलांग व जादूंग गांव सेना ने खाली करवाए थी। नेलांग और जादूंग में ग्रामीणों की जमीनों पर सेना और आइटीबीपी ने अपने कैंप बनाए हैं।

चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। पूर्वी लद्दाख के बाद अब उसने अरूणाचल के तवांग में भारतीय सेना से भिड़ने की हिमाकत की है। यहां उत्तराखंड में भी चीन उकसावे की कार्रवाई बार-बार करता रहा है।

चमोली जिले के बाड़ाहोती व माणा पास में चीनी सैनिक कई बार घुसपैठ कर चुके हैं। वहीं, सीमांत क्षेत्र में चीनी हेलीकाप्टर भी अक्सर आसमान में मंडराते देखे गए हैं।

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अरूणाचल व लद्दाख की तरह यहां भी भारतीय सेना चीन को उसकी हिमाकत का मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है। ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड के सीमांत क्षेत्रों में संभावित खतरे का आकलन नहीं किया गया होगा।

उत्तराखंड के सीमांत गांव भी चीन सीमा पर ढाल बनकर खड़े हैं

बीते वर्षों में सीमांत क्षेत्रों में अवस्थापना विकास पर बहुत ध्यान दिया गया है। उत्तराखंड से लगी चीन सीमा पर भारतीय सेना की पहुंच आसान हुई है।

वहीं, बीते दिनों भारत और अमेरिकी सेनाओं ने औली में दो सप्ताह लंबा युद्धाभ्यास भी किया। वैसे तो यह युद्धाभ्यास द्विपक्षीय सैन्य रणनीति का हिस्सा है, पर यह ड्रैगन को भी एक संदेश है। तभी चीन इस पर बिलबिलाया भी। उत्तराखंड के सीमांत गांव भी चीन सीमा पर ढाल बनकर खड़े हैं।

चमोली की नीती घाटी से सटी सीमा संवेदनशील

भारत-चीन के बीत उत्तराखंड में 345 किमी लंबी सीमा है। इनमें चमोली की नीती घाटी से सटी सीमा सर्वाधिक संवेदनशील है। यहां स्थित बाड़ाहोती में चीन बार-बार सीमा का उल्लंघन करता रहा है। लेफ्टिनेंट जनरल मोहन चंद्र भंडारी (सेनि) का कहना है कि चीन की विस्तारवादी नीति को हर कोई जानता है।

इसी नीति के तहत वो एलएसी पर बार-बार इस तरह की हरकत करता है। हालांकि, युद्ध जैसे हालात नहीं बनेंगे। उनका कहना है कि उत्तराखंड में सेना व आइटीबीपी पूरी तरह मुस्तैद है। चीन की किसी भी हरकत का जवाब देने में समक्ष है।

किसी भी संभावित खतरे से निपटने के लिए हम तैयार

लेफ्टिनेंट जनरल गंभीर सिंह नेगी (सेनि) का कहना है कि सीमांत क्षेत्रों में संभावित खतरे का आकलन जरूर किया गया होगा। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य की बात है कि सीमांत क्षेत्रों की लंबे वक्त तक उपेक्षा की गई। पर अब सीमांत क्षेत्रों के विकास को लेकर केंद्रीय नेतृत्व की सोच में बड़ा बदलाव आया है।

ढांचागत विकास पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है। जिस तरह से औली में संयुक्त युद्धाभ्यास किया गया, वह दिखाता है कि किसी भी संभावित खतरे से निपटने के लिए हम तैयार हैं। यह हमारी रणनीति का प्रतिबिंब है।

चीन ने एक बार फिर नापाक चाल चलने की कोशिश की। 9 दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर से सटे बॉर्डर पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। चीन की ओर से 300 सैनिकों ने यांगत्से इलाके में भारतीय पोस्ट को हटाने की कोशिश की थी,लेकिन भारतीय जवानों ने चीनी सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब दिया।

बता दें कि चीन ने तवांग सेक्टर में यांग्त्से क्षेत्र में यथास्थिति बदलने का एकतरफा प्रयास किया, जिसका भारत के जवानों ने बहादुरी से जवाब दिया है। गौरतलब है कि इस झड़प में किसी भी भारतीय सैनिकों की मौत नहीं हुई और कोई गंभीर रूप से घायल नहीं हुआ। पिछले कुछ समय से चीन द्वारा सीमा पर ड्रोन्स भी भेजे जा रहे थे।

भारत के खिलाफ चीन के नाकाम मंसूबों को धवस्त करने के लिए तेजपुर एयरफोर्स स्टेशन (Tejpur Air Force Station) से सुखोई-30 एमकेआई (Sukhoi-30MKI) फाटर जेट्स की सॅार्टेज की गईं। एमकेआई को रूसी भाषा में (Modernizirovannyi Kommercheskiy Indiski – Modernised Commercial Indian) कहते हैं।

दिलचस्प बात है कि चीन को सुखोई-30 एमकेआई की ताकत से चीन भी कांपता है। सुखोई-30 एमकेआई रूस के सुखोई-27 का एडवांस्ड वर्जन है। इंडियन एयरफोर्स के पास 272 सुखोई-30 एमकेआई हैं। इसे तेजपुर एयरफोर्स स्टेशन पर 2009 में ही तैनात किया गया है। यह इकलौता ऐसा फाइटर जेट है, जिसे अलग-अलग देश अपने भौगोलिक स्थिति के हिसाब से ढाल लेते हैं।

भारत में सुखोई-30एमकेआई को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) बनाती है. हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने साल 1997 में रूस से इसका लाइसेंस लिया था। इस फाइटे जेट की लंबाई 72 फीट, विंगस्पैन 48.3 फीट, ऊंचाई 20.10 फीट, वजन 18,400 किलोग्राम है। इसमें लीयुल्का एल-31 एफपी आफ्टबर्निंग टर्बोफैन इंजन लगे हैं।

इस इंजन की अपनी एयरोडायनमिक बनावट है, जिसकी बदौलत यह जेट 2120 किमी प्रतिघंटा की स्पीड से उड़ता है। इसकी रेंज 3000 किलोमीटर है। यह जेट 57 फीट तक की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है। यह जेट एक मिनट में 150 राउंड फायर करती है। इसमें 12 हार्ज प्वाइंट्स लगे हैं। गौरतलब है कि इस जेट में 4 तरह के रॅाकेट लगा सकते हैं। इस जेट में चार प्रकार के मिसाइल और 10 तरह के बम लग सकते हैं।

इस जेट के हार्डप्वाइंट्स में हथियार को दागने की सुविधा ज्यादा है। यह कुल 8130 किलोग्राम वजन का हथियार उठा सकता है। बता दें कि इस जेट में ब्रम्होस मिलाइलें भी तैनात हो सकती हैं। ब्रम्होस मिसाइल की ताकत को सभी देश भलिभांति जानते हैं।

 

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