राज्यसभा में विपक्ष के बोलने के अधिकार और विचार व्यक्त करने का हनन आम बात हो गई है- मल्लिकार्जुन खरगे
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा है। इस दौरान संसद के दोनों सदनों में जमकर हंगामा भी देखने को मिला है। इस बीच राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्षी दलों ने हाल के दिनों में अविश्वास प्रस्ताव की पेशकश की थी। इस प्रस्ताव पर विपक्ष के 60 सांसदों के हस्ताक्षर हैं। हालांकि, पक्ष का कहना है कि हमारे पास बहुमत है और ये अविश्वास प्रस्ताव सफल नहीं हो सकेगा।
इस बीच विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ पर हलावर नजर आए। मल्लिकार्जुन खरगे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा कि हम संविधान के सिपाही तथा रक्षक के तौर पर हमारा निश्चय और ज़्यादा दृढ़ हो जाता है। हम न झुकेंगे, न दबेंगे, न रुकेंगे और संविधान, संसदीय मर्यादाओं तथा प्रजातंत्र की रक्षा के लिए हर कुर्बानी के लिए सदैव तत्पर रहेंगे। वहीं, उन्होंने 10 पॉइंट्स में देश के लोगों ने अपने विचार साझा किए।
संसद में सदस्यों को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है। लेकिन सभापति महोदय विपक्ष को लगातार टोकते हैं, उन्हें अपनी बात पूरी करने का मौका नहीं देते हैं। विपक्ष से बिना वजह प्रमाणीकरण की मांग करते हैं, जबकि सत्ता पक्ष के सदस्यों को, मंत्रियों को और प्रधानमंत्री को कुछ भी कहने देते हैं। वो कोई भी झूठ सदन में कह दें, कोई भी फेक न्यूज़ फैला दें, उन्हें कभी नहीं रोकते। लेकिन विपक्ष के सदस्यों को मीडिया की रिपोर्ट को भी प्रमाणित करने को कहते हैं। और ऐसा न करने पर उन पर कार्यवाही करने की धमकी देते हैं।
सभापति ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए कई बार सदस्यों को थोक मे सस्पेंड किया है। कुछ सदस्यों का निलंबन सत्र पूरा होने पर भी जारी रखा था, जो नियम और परंपराओं के ख़िलाफ़ था।
सभापति ने कई बार सदन के बाहर भी विपक्षी नेताओं की आलोचना की है। वो अक्सर भाजपा की दलीलें दोहराते हैं और विपक्ष पर राजनैतिक टीका टिप्पणी करते हैं।वो रोज़ ही सीनियर मेंबर्स को स्कूली बच्चों की तरह पाठ पढ़ाते है, उनके व्यवहार में संसदीय गरिमा और दूसरों का सम्मान करने का भाव नहीं दिखता है।
उन्होंने इस महान पद का दुरपयोग करते हुए, पद पर आसीन होकर, अपने राजनीतिक विचारक – RSS की प्रशंसा की और यहाँ तक कहा कि “मैं भी RSS का एकलव्य हूँ” जो की संविधान की भावना से खिलवाड़ है।
अध्यक्ष सदन में और सदन के बाहर भी सरकार की अनुचित चापलूसी करते दिखते हैं। प्रधानमंत्री को महात्मा गांधी के बराबर बताना, या प्रधानमंत्री की जवाबदेही की मांग को ही ग़लत ठहराना, ये सब हम देखते आए हैं। अगर विपक्ष वॉकआउट करता है तो उसपर भी टिप्पणी करते हैं, जबकि वॉकआउट संसदीय परंपरा का ही हिस्सा है।
सभापति मनमाने ढंग से विपक्ष के सदस्यों के भाषणों के पार्ट्स expunge करते हैं। यहाँ तक की नेता विपक्ष के भाषण के भी महत्वपूर्ण हिस्सों को मनमाने तरीक़े से और दुर्भावनापूर्ण रूप से expunge करने का निर्देश देते रहे हैं। जबकि सत्ता पक्ष के सदस्यों की बेहद आपत्तिजनक बातों को भी रिकॉर्ड पर रहने देते हैं।
सभापति ने रूल 267 के तहत कभी भी किसी भी चर्चा की अनुमति नहीं दी है। विपक्षी सदस्यों को नोटिस पढ़ने की भी अनुमति नहीं देते हैं। जबकि पिछले तीन दिनों से सत्ता पक्ष के सदस्यों को नाम बुला बुला कर रूल 267 में नोटिस पर बुलवा रहे हैं।
सभापति के कार्यकाल के दौरान संसद टेलीविजन का कवरेज बिल्कुल इकतरफ़ा है। ज़्यादातर समय केवल चेयर और सत्ता पक्ष के लोग दिखाए जाते हैं। विपक्ष के किसी भी आंदोलन को ब्लैकआउट कर देते हैं। जब कोई विपक्षी नेता बोलता है, तो कैमरा काफी समय के लिए चेयर पर रहता है। संसद टीवी के प्रसारण के नियम मनमाने ढंग से बदल दिए गए हैं। जनरल पर्पज कमेटी (GPC) की मीटिंग के बगैर बदल दिए हैं।
शॉर्ट ड्यूरेशन डिस्कशन और कॉलिंग अटेंशन अब बहुत कम लगाए जाते हैं। UPA के वक्त हर हफ़्ते दो कॉलिंग अटेंशन और एक शॉर्ट ड्यूरेशन डिस्कशन लगता था। अब नहीं होता। Half an Hour Question, Statutory Resolution भी नहीं होते। सारे बिल भी स्टैंडिंग कमेटी को नहीं भेजते हैं। पब्लिक इम्पोर्टेंस के मुद्दे पर भी चर्चा नहीं होती है।
सभापति ने कई फैसले बिल्कुल मनमाने ढंग से लिए हैं। Statues शिफ्ट करना हो या watch and ward की व्यवस्था बदलना हो, किसी के लिए मशविरा नहीं किया। Statue कमेटी की मीटिंग नहीं हुई। GPC की कोई मीटिंग नहीं हुई, Rules Committee की मीटिंग अब नहीं होती।
विपक्षी सदस्यों को मंत्रियों के स्टेटमेंट पर अब सवाल नहीं पूछने देते हैं। राज्यसभा में स्टेटमेंट पर स्पष्टीकरण की परंपरा थी, वो भी बंद कर दी है।
खड़गे ने कहा, “राज्यसभा के अध्यक्ष स्कूल के प्रधानाध्यापक की तरह काम करते हैं और अनुभवी विपक्षी नेताओं को बोलने से रोकते हुए उन्हें उपदेश देते हैं।” उन्होंने कहा कि राज्यसभा में व्यवधान का सबसे बड़ा कारण खुद सभापति हैं। कांग्रेस प्रमुख ने कहा, “राज्यसभा के अध्यक्ष सरकार के प्रवक्ता के रूप में काम कर रहे हैं।”
अविश्वास प्रस्ताव पर राज्यसभा में अगले सत्र में विचार किया जाएगा। अनुच्छेद 67 (बी) के अनुसार, उपराष्ट्रपति को पद से हटाने के प्रस्ताव का समर्थ करने वाले राज्यसभा के सदस्यों द्वारा 14 दिन का नोटिस लेना आवश्यक है। चल रहे शीतकालीन सत्र में 20 दिसंबर को समाप्त होने वाला है।