सीवान नगर के दाहा नदी से जलकुंभी हटाने के लिए किया श्रमदान

सीवान नगर के दाहा नदी से जलकुंभी हटाने के लिए किया श्रमदान

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

दाहा नदी संरक्षण अभियान के बैनर तले हुआ आयोजन

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सीवान में कुछ प्रयास बेहद छोटे स्तर पर होते हैं लेकिन उनमें बड़े संदेश छिपे होते हैं। अपने सीवान, गोपालगंज, और छपरा जिले के तकरीबन 95 किलोमीटर के प्रवाह मार्ग में दाहा नदी जलकुंभी से पटी पड़ी है और यह जलकुंभी दाहा नदी के जलीय जैव विविधता को निगलती जा रही है। सीवान के पुलवा घाट के समीप नगर के प्रबुद्धजनों और युवाओं ने सोमवार को सुबह में श्रमदान कर दाहा नदी के कुछ भाग से जलकुंभी को हटाकर नदी के प्रवाह को सुचारू बनाने का प्रयास किया।

यह प्रयास यह गुजारिश करता दिखा कि अपनी दाहा नदी के संरक्षण के लिए अभियान में निरंतरता आवश्यक है। गौरतलब है कि विगत पांच जून को भी दाहा नदी से जलकुंभी की सफाई के स्थानीय प्रबुद्धजनों ने श्रमदान किया था।

दाहा नदी के पूरे प्रवाह मार्ग पर जलकुंभी पसरा हुआ है। जलकुंभी, पानी में उगने वाला एक ऐसा पौधा है जिसे नदियों, तालाबों, बांधों, झीलों आदि के लिए बेहद खतरनाक माना जाता है। यह साधारण जलीय पौधा मीठे पानी के स्रोतों में ऑक्सीजन कम कर, उन्हें बर्बाद कर देता है। जिस भी नदी या तालाब में जलकुंभी उग आए, उसमें मछलियों का जिंदा रहना मुश्किल हो जाता है।

अन्य पौधों की तरह, जलकुंभी में जड़ें, तने, पत्तियाँ, फूल और फल होते हैं। तने की लंबाई 50 सेमी से अधिक हो सकती है। इसकी एक पत्ती की सतह हरी और चिकनी होती है। यह जलीय तैरता हुआ पौधा तेज़ी से प्रजनन करता है और रासायनिक कचरे से प्रदूषित होने के बावजूद किसी भी पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल हो जाता है। इसलिए, इसे खरपतवार माना जाता है। खरपतवार आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र को जबरदस्त नुकसान पहुँचाते हैं।

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि जलीय पर्यावरण में पाए जाने वाले उत्पादक उपभोक्ता के स्वास्थ्य पर जलकुंभी बुरा प्रभाव डालती है। खासबात यह है कि जलीय सतह पर इसकी अधिकता हो जाने से जल के अंदर जो पेड़ पौधे पाए जाते हैं, उनको सूर्य की रोशनी और ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं हो पाती। यही वजह है कि भोजन और ऊर्जा की कमी से वह नष्ट हो जाते हैं जिसका प्रभाव सीधे उत्पादक पौधों पर आश्रित जुप्लैँकटोन , मछलियों व अन्य जीवों पर पड़ने लगता है और भोजन की कमी के कारण वह मरने लगते हैं। इसके असर से पक्षी बड़ी मछलियां और मगरमच्छ भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहते और कुछ ही समय में उस जलीय स्रोत की जैव विविधता नष्ट हो जाती है।

दाहा नदी में पसरी पड़ी जलकुंभी को हटाने के लिए सीवान में पुलवा घाट के समीप नगर के प्रबुद्धजनों और युवाओं ने सोमवार को सुबह में तकरीबन तीन घंटे तक श्रमदान किया। इस अवसर पर प्रोफेसर रवींद्र नाथ पाठक, विद्याभवन महाविद्यालय की प्राचार्या डॉक्टर रीता कुमारी, शिक्षाविद् डॉक्टर गणेश दत्त पाठक, प्रधानाचार्य श्री कृष्ण कुमार सिंह, युवा चित्रकार रजनीश मौर्य, समाजसेवी सूरज कश्यप, कन्हैया जी, बाबू राम, शशि आदि के साथ अन्य युवाओं ने श्रमदान किया। इन लोगों ने दाहा नदी संरक्षण अभियान में निरंतरता को कायम रखने का संकल्प भी दोहराया।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!